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जानिए जाटों के सामने क्यों गिड़गिड़ाए अमित शाह

जाटों की रणनीति

इन दिनों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का एक आडियों खूब वायरल हो रहा है.

इस आडियों में अमित शाह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों के स्थानीय जाट नेताओं के सामने मिनते करते सुनाई पड़ रहे हैं.

आखिर रातोंरात ऐसा क्या हुआ कि अमित शाह को जाट नेताओं से मुलाकात कर उन्हें समझाना पड़ा.

दरअसल, इसके पीछे जाटों की रणनीति है और इस जाटों की रणनीति के पीछे काम कर रहा है लोकदल और जाट आरक्षण समिति. ऐसी रणनीति जिसके अमल में आने से भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर नुकसान उठाना पढ़ सकता है.

क्या है वह जाटों की रणनीति और किसने बनाई है भाजपा को रोकने की यह पूरी रणनीति चलिए हम आपको बतातें हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट मतदाता काफी तादाद है. लोक सभा में जाट समुदाय ने भाजपा के समर्थन में जबरदस्त मतदान किया था.  लेकिन हरियाणा जाट आरक्षण के बाद स्थिति बदल गई. हरियाणा में ही नहीं बल्कि उससे सटे उत्तर प्रदेश में रहने वाले जाटों ने भी भाजपा से दूरी बना ली.

अब जब विधान सभा चुनाव है तो ऐसे में जाटों ने लोक सभा की तर्ज पर भाजपा को समर्थन न देकर चौधरी अजीत सिंह की लोकदल पार्टी का  समर्थन करना शुरू कर दिया.

बताया जाता है कि जैसे ही अमित शाह को यह बात पता लगी कि पश्चिमी उत्तर प्रेदश का जाट मतदाता भाजपा की ओर न जाकर इस बार लोकदल की ओर जा रहा है तो उनके पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई.

आनन फानन में अमित शाह ने हरियाणा से भाजपा के नेता चौधरी वीरेंद्र सिंह और मुजफ्फरनगर से भाजपा सांसद और केंद्र में मंत्री सजींव बालियान को एक्टिव किया. तय हुआ कि सभी जिलों से समुदाय में प्रभाव रखने वाले जाट नेताओं को बुलाया जाए.

तय रणनीति के अनुसार दिल्ली में अमित शाह ने सभी से मुलाकात की. उसमें अमित शाह ने कहा कि जाट समुदाय को आरक्षण को लेकर भाजपा से जो नाराजगी है उसको लेकर उन्हें एक बार फिर से विचार करना चाहिए.

भाजपा को हराकर उन्हें क्या मिल जाएगा. यदि भाजपा हारती है तो प्रदेश में सपा की सरकार आएगी और सपा सरकार बनने फिर वही सब होगा जो पहले होता आ रहा है.

अमित शाह इस आडियों में जिस प्रकार बात कहते सुनाई पड़ रहे हैं उससे पता चलता है कि उनको इस बात का आभास हो चुका है कि मामला बहुत ही गंभीर है, क्योंकि यह चुनाव अमित शाह के लिए काफी महत्वपूर्ण है.

बहराल, जिस कारण अमित शाह परेशान है उसके पीछे लोकदल नेता चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी और जाट नेता यशपाल मलिक की वह रणनीति है जिसमें तय हुआ है कि जाट मतदाताओं को इस बात के लिए तैयार किया जाए कि वो किसी भी हालात में भाजपा को वोट न करे.

जाट मतदाता लोकदल को वोट करे चाहे उसका प्रत्याशी हार ही क्यों न रहा हों. इस जाटों की रणनीति से होगा क्या कि एक तो लोकदल का वोट प्रतिशत बढ़ेगा जिससे आने वाले समय में पार्टी की वारगनिंग क्षमता बढ़ेगी. दूसरे भाजपा को जब नुकसान होगा और पता चलेगा कि जाट वोटों के कारण उसे कई सीटों का नुकसान हुआ है तो वह उनके आरक्षण की मांग को गंभीरता पूर्वक सुनेगी.

इसलिए जाट समुदाय में अंदर खाने एक मुहिम चलाई जा रही है कि किसी भी हालत में भाजपा को वोट ना दें. यही वो मुहिम है जिसने अमित शाह के चेहरे की रंगत उड़ा दी है. उनको लगता है कि यदि जाटों का यही ट्रेंड रहा तो इस बार जो उनके हाथ सरकार बनाने का सुनहरा अवसर है वह हाथ से जाता रहेगा.

यही कारण है कि मौके की नजाकत को भांपते हुए अमित शाह ने तुरंत ही डैमेज कंट्रोल के लिए जाट नेताओं को बुलाकर उनसे मिलकर गिले शिकवे दूर करने की कोशिश की है.