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माँ-बहन और वोह!

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औरतें अगर दुनिया में ना हों तो ज़ाहिर तौर पर इंसान की नस्ल भी ज्यादा समय तक कायम नहीं रह पाएगी.

खैर यह बात तो सिद्ध है कि औरतें होंगी तभी इंसानी नस्ल आगे बढती रहेगी. इसलिए समाज में औरत का दर्जा सबसे ऊंचा होता है.

आज के और मुझे पूरा यकीन है की पहले के वक़्त में, औरत का दर्जा चाहे वह जितना भी ऊंचा रहा हो उतना ही नीचे गिराया गया है. इंसानी समाज में माँ-बहन और बाप-भाईय्यों की जितनी भी गालियाँ होती हैं वे बड़ी ही अभद्र होती हैं. लेकिन जाने क्यों किसी वजह से माँ-बहनों पर दी जाने वाली गालियों की तादात और वज़न बाप-भाईय्यों पर देनेवाली गालियों से कई ज़्यादा अधिक होते हैं.

अगर इन दोनों तरीके की गालियों की कुश्ती लड़ाई जाए तो ज़ाहिर तौर पर ये माँ-बहनों वाली गालियाँ यकीनन जीतेंगी.
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समाज में औरतों की इज्ज़त बहुत होती है भले ही यह चीज़ प्रक्काल्पनात्मक हो! हिन्दुस्तान के सारे धर्मग्रंथों में स्त्री को बहुत ही शफ्फाफ तरीके से दर्शाया गया है! भले ही वह हिडिम्बा या सूर्पनखा क्यों ना हो! सभी खूबसूरत थीं और बड़े-बड़े शूरवीरों से सम्बंधित थीं. लेकिन सवाल यह उठता है कि फिर क्यों स्त्रीयों पर दी जाने वाली गालियाँ तादात में बहुत ज्यादा और अभद्रता में बहुत भ्रष्ट होती हैं?

लोग कहते हैं के औरत शालीनता का प्रतीक होती है. लोग बड़ी इज्ज़त करते हैं. अगर ऐसे आदरणीय  विषयों का वर्णन अपशब्दों के सहारे किया जाए तो यकीनन बुरा मानने वाली बात है. मुझे यह व्याख्या एक हद तक सही और उचित लगता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि गाली देना सही बात है और वह भी माँ-बेहेनों की!

कम से कम गाली देने कि आदत से ही न जाने कोई बदलाव आ जाए.

अच्छा! औरत की छवि, आदमियों की छवि की तुलना में जल्दी बिगाड़ी जा सकती है.
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एक सज्जन मेरे पास आये और कहने लगे के “वह जो बिल्डिंग १३ में रहती है ना, बन-ठन के रहती है, उसके अनैतिक सम्बन्ध हैं!” मैंने कहा “यह अफ़सोस की बात है भई” वह गर्दन हाँ में हिलाने ही लगा कि मैंने कहा कि अफ़सोस की बात इसलिए कि आपसे उस औरत के कोई सम्बन्ध नहीं हैं. शर्मीली हंसी उसके चेहरे को घूंसे मारने लगी और वह मुझसे दूर हट गया.

समाज में ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जो सुधारी जा सकती हैं. लेकिन जब तक संकीर्ण उदारता लोगों के साथ लुका-छुपी खेलती रहेगी तब तक ना समाज का भला हो पाएगा और ना ही निरक्षरता का खात्मा. मेरी बात मानिए, स्त्रियों को गालियों के पात्र बनने का कोई शौक नहीं है. इसलिए अपनी जुबान पर लगाम देना अनुवार्य है.