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क्या आप जानते हैं भारत की इस पहली बोलती हुई फिल्म की खासियत !

आलम आरा

वैसे भारतीय सिनेमा का इतिहास काफी पुराना है लेकिन 14 मार्च 1931 के दिन को कभी नहीं भुलाया जा सकता है.

इस खास दिन भारतीय सिनेमा ने गूंगी फिल्मों को बोलना सिखा दिया था. यानी इसी दिन पहली बार बोलती हुई फिल्म मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा हॉल में प्रदर्शित हुई थी.

इस फिल्म के निर्देशक अर्देशिर ईरानी हैं जिन्होंने सिनेमा में ध्वनि की अहमियत को समझते हुए कई समकालीन सवाक फिल्मों से पहले पूरा किया.

आखिर भारत की पहली बोलती हुई फिल्म कौन सी है और उसकी क्या खासियत है, चलिए हम आपको बताते हैं.

भारत की पहली बोलती फिल्म है आलम आरा

भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा ने भारत के सिनेमा जगत को एक नये आयाम पर पहुंचाने का काम किया. इस फिल्म में एक बंजारन लड़की और एक राजकुमार की प्रेम कहानी को दर्शाया गया है.

इस फिल्म की खास बात तो यह रही है कि ये फिल्म अपनी कहानी के चलते नहीं बल्कि अपनी आवाज के चलते उस दौर की सबसे कामयाब फिल्म रही. आपको बता दें कि इस फिल्म से पहले भारतीय फिल्म जगत में मूक फिल्मों का चलन था.

आलम आरा फिल्म से जुड़ी कुछ खास बातें

– हालांकि इस फिल्म से पहले भी बोलती फिल्म बनाने की कोशिश हुई थी लेकिन वो असफल रही. लेकिन निर्देशक आर्देशिर ईरानी ने हॉलीवुड की तर्ज पर बोलती फिल्म आलम आरा बनाकर पहली बोलती फिल्म मेकर का खिताब अपने नाम किया.

आलम आरा से ना सिर्फ बोलती फिल्मों की शुरूआत हुई बल्कि फिल्मी संगीत की भी नींव इसी फिल्म से रखी गई. क्योंकि गानों के मामले में भी इस फिल्म ने पहला स्थान हांसिल किया था.

कहा जाता है कि आलम आरा जैसी फिल्म बनाने के लिए ईरानी और उनके यूनिट इम्पीरियल स्टूडियो ने टैनोर सिंगल सिस्टम कैमरा विदेश से मंगाया. यह कैमरा आवाज और फोटो दोनों को एक साथ रिकॉर्ड करती थी.

उस दौर में फिल्म के ज्यादातर कलाकार मूक फिल्मों के दौर के थे लिहाजा उन्हें बोलती फिल्मों में काम करने का कोई तजुर्बा नहीं था. इसके लिए उन्हें घंटों तक इस फिल्म में काम करने के लिए ट्रेनिंग दी जाती थी.

इस फिल्म की कहानी एक पारसी नाटक पर आधारित है. जोसेफ डेविड द्वारा निर्देशित एक नाटक को देखकर आर्देशिर ईरानी काफी प्रभावित हुए और उन्होंने कुछ गाने डालकर इस नाटक को फिल्म में तब्दील करने का फैसला किया.

बड़ी दिलचस्प है इस फिल्म की कहानी

एक राजकुमार और बंजारन की प्रेम कहानी पर आधारित ये फिल्म एक काल्पनिक, ऐतिहासिक कुमारपुर नगर के शाही परिवार के बारे में है. फिल्म में एक राजा और उसकी दो झगडालू पत्नियां दिलबहार और नवबहार हैं. दोनों के बीच झगड़ा तब बढ़ जाता है जब एक फकीर भविष्यवाणी करता है कि राजा के उत्तराधिकारी को नवबहार जन्म देगी.

भविष्यवाणी को सुनकर गुस्साई दिलबहार बदले की भावना से राज्य के प्रमुख मंत्री को अपने प्यार के जाल में फंसाने की साजिश रचती है लेकिन मंत्री के इंकार करने पर उसे कैदखाने में डलवा देती है और उसकी बेटी आलम आरा को जंलग में फेंकवा देती है. बाद में उसकी परवरिश बंजारे करते हैं.

बड़ी होने पर आलम आरा वापस उसी नगर में आती है और राजकुमार को उससे प्यार हो जाता है. दिलबहार को उसके किए की सजा मिलती है और आलम आरा के पिता की रिहाई के साथ ही दोनों की शादी हो जाती है.

गौरतलब है कि भारत की यह पहली सवाक फिल्म इतनी लोकप्रिय हुई कि भीड़ पर नियंत्रण करने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा और इन्ही खासियतों की वजह से यह फिल्म इतिहास के पन्नों में हमेशा-हमेशा  के लिए अमर हो गई.

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