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मॉडर्न ज़माने के शायर और उनके कहे कुछ बेहद उम्दा शेर!

मिर्ज़ा ग़ालिब और फैज़ अहमद फैज़ के ज़माने तो अब रहे नहीं लेकिन उन्हीं से प्रेरित हो आज भी बहुत से शायर, मॉडर्न ज़माने के शायर, हमारी ज़िन्दगी को रोशन कर रहे हैं|

चलिए आपको मिलवाएँ ऐसे ही 5 चुनिंदा मॉडर्न ज़माने के शायरों से जिनके शब्द आपकी आत्मा को छू जाएँगे!

1) निदा फ़ाज़ली
दिल्ली में जन्मे निदा फ़ाज़ली बचपन में एक बार सूरदास के लिखे राधा-कृष्ण के भजन को सुन बड़े मोहित हो गए! बस, तभी से उन्होंने शायरी लिखने का मन बना लिया और फिर जुट गए अपना ज्ञान बढ़ाने में! बड़े-बड़े शायरों को पढ़ कर अपनी पकड़ इतनी मज़बूत कर ली कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक विख्यात गीतकार के रूप में जाने जाने लगे! 1998 में इन्हे साहित्य अकादेमी पुरुस्कार से भी नवाज़ा गया|

इनके लिखे दो बहुत ही मशहूर शेर कुछ इस प्रकार हैं:
1)
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफर के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं!

2)
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए!

2) बशीर बद्र
बशीर बद्र अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं और वहीं रह कर उन्होंने पढ़ाई भी की और कुछ समय पढ़ाया भी| उर्दू अकादेमी के अध्यक्ष रह चुके बद्र साहब को 1999 में पद्म श्री से नवाज़ा गया था साहित्य की तरफ़ योगदान के लिए और उसी साल उन्हें उर्दू भाषा के लिए

साहित्य अकादमी पुरुस्कार भी मिला! उनके लिखे कुछ प्रमुख शेर हैं:
1)
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियां जलाने में

2)
कोई हाथ भी ना मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिजाज़ का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो

3) गुलज़ार
सम्पूर्ण सिंह कालरा है इनका असली नाम लेकिन गुलज़ार के नाम से मशहूर इस शायर, गीतकार, कहानीकार, और निर्देशक को देश का बच्चा बच्चा जानते है! दादासाहब फाल्के पुरुस्कार, पद्म भूषण, ऑस्कर, ग्रैमी, और ना जाने कितने पुरुस्कारों से इन्हे नवाज़ा जा चुका है पिछले करीब 50 साल के इनकी फ़िल्मी करियर में!

इनकी लिखी कुछ पंक्तियाँ हैं:
1)
तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी, हैरान हूँ मैं
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं

2)
मौत तू एक कविता है
मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको

4) जावेद अख़्तर
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के एक दिग्गज कहानीकार और गीतकार जावेद अख़्तर साहब भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के ही छात्र रहे हैं| अनेकों-अनेक फिल्में और हज़ारों गाने और ग़ज़लें लिखने वाले अख़्तर साहब को 2013 में उर्दू भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरुस्कार से नवाज़ा गया|

इनकी लिखी कुछ मशहूर पंक्तियाँ हैं:
1)
ये तेरा घर ये मेरा घर किसी को देखना हो गर
तो पहले आके माँग ले मेरी नज़र तेरी नज़र

2)
दिल में महक रहे हैं किसी आरज़ू के फूल
पलकों पे खिलनेवाले हैं शायद लहू के फूल

5) राहत इन्दोरी
इंदौर में जन्मे राहत इन्दोरी एक कपड़ा मिल मज़दूर के बेटे हैं| मगर अपनी लगन और मेहनत से ना सिर्फ यह ग्रेजुएट हुए, बल्कि उर्दू साहित्य में ही एम ए भी की और फिर मध्य प्रदेश की भोज यूनिवर्सिटी से उर्दू साहित्य में ही पी.एच.डी. की डिग्री भी हासिल की! ना सिर्फ इंदौरी साहब ने देश विदेश में अनेक मुशायरों में हिस्सा लिया, अनगिनत पुरुस्कारों के भी हक़दार बने| इतना ही नहीं, हिंदी फिल्मों में गीतकार के तौर पर कई हिट गाने भी दिए!
इनके लिखे कुछ शेर हैं:
1)
दोस्ती जब किसी से की जाए, दुश्मनों से भी राय ली जाए
मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में, अब कहाँ जा के साँस ली जाए

2)
पेशानियों पे लिखे मुक़द्दर नहीं मिले
दस्तार कहाँ मिलेंगे जहाँ सर नहीं मिले
परदेस जा रहे हो तो सब देखते चलो
मुमकिन है वापस आओ तो यह घर न मिले

उर्दू भाषा का हमारी रोज़मर्रा की बोल-चाल में इस्तेमाल कम होता जा रहा है लेकिन शुक्र है कि ऐसे शायर और दिग्गज आज भी हमारे बीच हैं, हमें रास्ते दिखाने के लिए!

उम्मीद है हम सभी इनसे कुछ सीख पाएं और इन के जैसे कुछ शायर अपने बीच पैदा कर पाएँ!

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