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100 करोड़ के अलगाववादी !

अलगाववादी

दुनिया में भारत ही इकलौता देश है जो अपनी आस्तीन में सांप पालता है.

इतना ही नहीं उन्हें दूध भी पिलाता है. पालना पोसना भी ऐसा वैसा नहीं, उनके बिलों में रहने से लेकर हवा में उड़ने तक का खर्च भी सरकार उठाती है.

यही नहीं इन जहरीले सांपों को कोई पत्थर न मार दे इसके लिए सरकार उनको सुरक्षा भी उपलब्ध कराती है और ये सांप है कि इतना सब करने के बाद भी हमें डसने को कोई मौका नहीं छोड़ते हैं.

जी हां बात कश्मीर के अलगाववादियों की ही हो रही है, जो भारत का खाकर भारत के ही खिलाफ आग उगलते हैं. आपको जानकार हैरानी होगी कि पाकिस्तान की खुलकर वकालत करने वाले इन अलगाववादियों पर सरकार सालाना 100 करोड़ रुपये खर्च करती है. अलगाववादी नेता मीर वाइज उमर को 1990 से जेड़ श्रेणी सुरक्षा मिली है. उनकी सुरक्षा में हर वक्त 30 जवान और बुलेट प्रूफ कारों काफिला शामिल हैं. इसी तरह यासिन मालिक, शब्बीर शाह, प्रोफेसर गनी भट्ट और हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी को भी काफी सरकारी सुविधाएं और सुरक्षा मिली हुई हैं.

सरकार चाहे नेश्नल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला की हो या कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आजाद की. सभी के कार्यकाल में कश्मीर के अलगाववादी ने मलाई का मजा लिया है और यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है.

यह कोई आरोप नहीं है बल्कि राज्य सरकार के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं. आंकडों के मुताबिक वर्ष 2010 से अलगाववादियों के होटल बिल पर सरकार हर साल 4 करोड़ रुपए खर्च कर रही है. इस पर पिछले पांच सालों में 21 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं. सवाल ये उठता है कि भारत को दिन रात देश विदेश में गाली देने वाले इन अलगाववादियों की होटलों में अयाशियों के बिलों को सरकारी खजाने से क्यों भरा जा रहा है. आखिर अपने ही देश में उनकों मेहमान बना कर क्यों रखा जा रहा है.

उनके लिए अकेले घाटी में ही 500 होटल के कमरे रखे जाते हैं, दलील दी जाती है. कश्मीर के अलगाववादियों के खर्चों की लिस्ट अंतहीन है. कश्मीर के अलगाववादियों पर हो रहे खर्च का ज्यादातर हिस्सा केंद्र सरकार उठाती रही है. 90 फीसदी हिस्सा केंद्र तो जम्मू-कश्मीर सरकार सिर्फ 10 फीसदी खर्चा ही उठाती है.

राज्य सरकार के मुताबिक पिछले पांच साल में 309 करोड़ तो सिर्फ अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में लगे जवानों पर खर्च किए गए. साल 2010 से 2016 तक 150 करोड़ रुपए यानि निजी सुरक्षा गार्ड के वेतन पर खर्च हुए. पांच साल में इन पर 506 करोड़ का खर्चा आया है जो कि जम्मू-कश्मीर के स्टेट बजट से भी ज्यादा है.

बता दें कि सूबे का बजट 484.42 करोड़ है.

राज्य सरकार इन्हें राजनीतिक कार्यकर्ता मानती है. वहीं दूसरी ओर ये अलगाववादी भारत सरकार की ओर से उनके द्वार तक आए सांसदों से मिलने के लिए गेट तक नहीं खोलते हैं.

इस लिए अब समय आ गया है कि इन अलगाववादियों का सरकारी हनीमून पैकेज खत्म किया जाए.

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राजनीति