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तब पाकिस्तान की सुरक्षा के लिए जरुरी था हिन्दुओं का मरना !

बंटवारे के समय की कड़वी सच्चाई

भारतीय नेताओं पर एक आरोप हमेशा से रहा है कि वह सही कार्यवाही करने में हमेशा से ही पीछे रहे हैं.

आजादी से लेकर आज स्वतंत्रता के इतने समय बाद भी भारतीय नेताओं से यह आरोप हट नहीं पाया है. ऐसा ही एक आरोप भारत के बंटवारे में भी भारतीय नेताओं पर लगा हुआ है. खासकर भारत के प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरु को लेकर बोला जाता है कि वह सही प्रतिक्रिया नहीं दे पाए थे और उसकी वजह से पाकिस्तान के अन्दर हिन्दू व सिखों का कत्लेआम हुआ था.

आज हम आपको बंटवारे के समय की कड़वी सच्चाई से वाकिफ कराने वाले हैं-

बंटवारे के समय की कड़वी सच्चाई – 

पुस्तक भारतीय संघर्ष का इतिहास में एक खुलासा –

‘पुस्तक भारतीय संघर्ष का इतिहास’ के पेज 102 पर भारत के बंटवारे के समय की कड़वी सच्चाई बतायी है. यहाँ लिखा है कि एक अंग्रेज उच्च अधिकारी ने जिन्नाह को एक पत्र भेजा था. उसमें लिखा था कि पाक की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि पंजाब में लायलपुर के पश्चिम में एक भी हिन्दू व सिख को ना रहने दिया जाये. वैसे यह पत्र कहाँ से आया था और उसके बाद कहाँ चला गया कोई नहीं जानता है किन्तु जानकार लोग बताते हैं कि इसी पत्र के बाद ही सबसे पहले पश्चिमी पंजाब में 10 व् 11 अगस्त 1947 को दंगे हुए थे.

काश जिन्ना का सुझाव मान लिया जाता –

आजादी से पहले मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत को जनसंख्या की अदला बदली का सुझाव दिया था. जिन्ना ने कहा था कि सभी मुसलमानों को पाकिस्तान भेजा जाये और सभी हिन्दुओं को भारत में रहने दिया जाये. किन्तु उस समय भारतीय नेताओं जिन्ना की यह बात नहीं मानी और इसका परिणाम यह हुआ कि हजारों हिन्दू-सिख पाकिस्तान में काट दिए गये थे.

उस समय भारत के बंटवारे में पाकिस्तान ने तो तय कर लिया था कि हिन्दुओं को पाकिस्तान से निकालना है और तब 1 करोड़ हिन्दू विस्थापित होकर भारत आये थे और कुछ पांच लाख हिन्दुओं की हत्या कर दी गयी थी. भारत का कोई भी नेता उस समय सही फैसला नहीं ले पाया था और उसका परिणाम हम आपको बता ही चुके हैं.

ब्रिटिश लोगों ने भड़काये थे लोग –

पंजाब की प्रशासनिक सेवाओं में जो अंग्रेज अधिकारी थे उन्होंने मुसलमानों को भड़काने का काम किया था.

मुसलमान अपनी मांगें बढ़ा रहे थे और भारत की कांग्रेस उन मांगों को मान रही थी. साथ ही साथ अंग्रेज भी मुसलमानों की हर मांग मान रही थी. किसी भी नेता ने अंग्रेजों से यह नहीं पूछा था कि भारत के दो टुकड़े करने का हक़ आपको किसने दिया है? गाँधीजी भी इस तरह का बर्ताव कर रहे थे जैसे की हमको आजादी भीख में मिल रही थी. पाकिस्तान से मरे हुए हिन्दू जब आय्रे तो उसका परिणाम यह हुआ कि भारत के लोगों ने भी बदला लेने के लिए मार-काट का ही सहारा लिया था.

ये है बंटवारे के समय की कड़वी सच्चाई – तो कुलमिलाकर यह साफ़ होता है कि कैसे अंग्रेजों ने हिन्दुओं को मरवाने के लिए षड्यंत्र रचा था और जब हिन्दू मर रहे थे तो भारतीय नेता कुछ भी नहीं कर पा रहे थे. जिन्ना की मांग थी कि जनसंख्या अदला-बदली हो जाये लेकिन तब शायद किसी भी भारतीय नेता को जिन्ना का यह सुझाव अच्छा नहीं लगा था. लेकिन उस समय जनसंख्या की अदला-बदली हो जाती तो आज की आधे से अधिक समस्याओं का अंत हो सकता था.