राजनीति

भारत की नई समुद्री कूटनीति देख डरने लगा है चीन।

भारत की समुद्री कूटनीति – आज ग्लोबलाइजेशन के दौर में भारत ने विश्व पटल पर अपनी पहुंच बनाई है जो  वास्तव में काबिले तारीफ है।

भारत की ताकत को आज पूरी दुनिया मानने लगी है इसका पहला कारण है कि भारत युवाओं का देश है, दूसरा यह है कि आज भारत विश्व के किसी भी देश के साथ आंख लड़ाने की जुर्रत कर सकता है।

इसी संदर्भ में अभी हाल ही में भारत ने हिंद महासागर में अपनी शक्ति विस्तृत करने के लिए एक फैसला लिया जिसका नाम है “क्वेड” – भारत की समुद्री कूटनीति !

आपको बता दें हिंद महासागर भारत के व्यापार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जिस पर चीन कब्ज़ा करना चाहता है। आज के दौर में चीन, भारत के लिए एक सरदर्दी बन चुका है जिस तरह चीन अपनी सीमाओं का विस्तार कर रहा है यह भारत के लिए चुनौतीपूर्ण है। वह अपनी चेकबुक नीति यानी ऋण देने की नीति से छोटे-छोटे देशों को अपना साथी बना रहा है मूलतः जो भारत के पड़ोसी है।

अभी हाल ही में जिस तरह मालदीव में चीन ने अपना प्रभुत्व बनाया वास्तव में भारत के लिए परेशानी का सबब है भारत और मालदीव के लंबे समय से अच्छे संबंध रहे हैं लेकिन चीन के दखल के बाद भारत, मालदीव के संबंध में कुछ भी नहीं बोल पा रहा है ऊपर से मालदीव आतंकवादियों का गढ़ बनता जा रहा है।

अभी हाल ही में ISIS से संबंध रखने वाले करीब 400 आतंकी मालदीप से पकड़े गए थे।

इन सब कारणों को देखते हुए भारत को अपनी शक्ति बढाने के जरूरत है और इसके लिए भारत ने कुछ देशों से समझौता किया जिसमें शामिल है भारत, अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया । इस समझौते का मतलब है कि भारत हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में आसानी से व्यापार कर सके। कुछ कूटनीतिक जानकारों का कहना है कि इस समझोते के कारण 21वीं सदी को प्रशांत सदी या हिंद प्रशांत सदी (इंडो पैसिफिक सेंचुरीके नाम से जाना जा सकता है।

आपको बता दें कि क्वेड एक भारत की समुद्री कूटनीति चतुर्भुज है जो समुद्री सुरक्षा और कनेक्टिविटी को बड़ा कर मुक्त शांत और स्थिर इंडो पैसिफिक क्षेत्र को स्थापित करेगा। इस समझौते की शुरुआत पर चर्चा करे  तो माना जाता है कि वह 2007 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने पहली बार क्वेड का विचार दिया था किंतु व्यवहारिक रूप से अमेरिका की ‘पिवोट टू एशिया’  नीति का यह मुख्य एजेंडा रहा है।

भारत की समुद्री कूटनीति के अंतर्गत इसमें भारत के पक्ष क्या हो सकते हैं, इस बारे में बता दें तो चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर एवं बेल्ट- रोड इनिशिएटिव’ के साथ-साथ डोकलाम विवाद और 99 वर्ष की लीज़ प्राप्ति के बाद भारत को कूटनीतिक प्रयासों की आवश्यकता है।इसलिए जनवरी 2015 में बराक ओबामा की भारत यात्रा के समय भारत ने ‘सयुक्त विजन दस्तावेज’ पर हस्ताक्षर किया अपनी एक्ट एशिया नीति को अमेरिका की पिवोट टू एशिया निति से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त किया।

खैर कुछ ऐसे ही समझौते के साथ भारत को जरूरत है कि देश से बाहर अपनी अच्छी पेठ बनाये, और चीन को रोक सके। क्योंकि आज के दौर में भारत के लिए चीन से बड़ी कोई भी समस्या नहीं हो सकती।

Kuldeep Dwivedi

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