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1947 से अब तक की ये तस्‍वीरें दिखाती हैं भारत में कितनी महंगाई थी

भारत में महंगाई

भारत में महंगाई – भारत को आजादी 1947 में मिली थी और तब से लेकर अब तक इसकी तस्‍वीर बहुत बदल चुकी है। जब देश को आजादी मिली थी तब यहां बहुत गरीबी, भूखमरी और महंगाई थी लेकिन तब से लेकर अब तक के भारत में काफी बदलाव आए हैं।

आपने भारत की 1947 की तस्‍वीरें नहीं देखी होंगी कि उस दौर में भारत कैसा लगता था और यहां पर कितनी भारत में महंगाई थी। जी हां, ये बात तो बिलकुल ठीक है कि तब से लेकर अब तक भारत में महंगाई आसमान छू गई लेकिन फिर भी आपका मन कभी ना कभी तो करता होगा कि पुराने जमाने में जाकर सस्‍ती चीज़ों का मज़ा उठाया जाए।

इस पोस्‍ट के ज़रिए हम आपकी यही ख्‍वाहिश पूरी करने जा रहे हैं। आज हम आपको बताएंगें कि 1947 में भारत में कितनी महंगाई थी और आज की महंगाई से जमीन आसमान का फर्क है।

उस दौर में हर चीज़ इतनी सस्‍ती थी कि गरीब इंसान भी इन्‍हें अफोर्ड कर सकता था जब‍क आज तो दाल का भाव भी इतना ज्‍यादा है कि गरीब मजदूर दाल रोटी भी नहीं खा सकता है।

भारत में महंगाई –

1947 में चावल 65 पैसे प्रति किलो हुआ करते थे। आज चावल की कीमत 65 रुपए से भी ज्‍यादा है। चावल की कीमत में इतना उछाल बेचारे गरीबों को भूखा पेट सोने पर मजबूर कर देता है।

खाने में मिठास घोलने वाली चीनी उस समय 57 पैसे प्रति किलो मिला करती थी।

उस दौर में मुंबई में विक्‍टोरिया नाम की टुक-टुक गाड़ी बहुत फेमस हुआ करती थी। आज तो बच्‍चों की छोटी सी कार में पांच मिनट बैठने के ही सौ रुपए लगते हैं लेकिन तब इस गाड़ी में 1 किमी के सिर्फ 1 आना लगते थे।

कहा जाता है कि उस समय लोग प्‍लेन में बैठने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे क्‍योंकि टिकट बहुत महंगी हुआ करती थी लेकिन अगर आज के समय से इसकी तुलना करें तो ये सस्‍ती नहीं बल्कि बहुत सस्‍ती है। उस समय मुंबई से अहमदाबाद का हवाई टिकट 18 रुपए में मिलता था।

आजादी के दौर में तेनाली रमन जैसी किताबे बस 1.5 रुपए में मिल जाया करती थीं। हालांकि, उस समय एक किताब पर इतने पैसे खर्च करना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी।

आज फिल्‍म देखने के लिए कम से कम 500 रुपए खर्च करने पड़ते हैं लेकिन अगर आप पुराने जमाने में जाएं तो इतने में हज़ार फिल्‍म देख लेंगें। तब फिल्‍म की टिकट 40 पैसे से लेकर 8 आने तक की होती थी।

ये थी भारत में महंगाई – ऐसा नहीं है कि उस समय बस चीज़ें ही सस्‍ती मिलती थी बल्कि तब लोगों की इनकम भी बहुत कम हुआ करती थी। तब अच्‍छी कमाई करने वाले इंसान की भी सैलरी 150 रुपए से ज्‍यादा  नहीं होती थी। लेकिन ये बात तो है कि तब लोगों की जरूरतें और आकांक्षाएं बहुत कम थीं और वो उन्‍हें कम पैसों में भी पूरा कर लेते थे जबकि आज तो कितना भी पैसा कमा लो और कितना ही ऐशो-आराम ले लो, आकांक्षाएं हैं कि खत्‍म होने का नाम ही नहीं लेती हैं और शायद कभी खत्‍म भी नहीं होंगीं।