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शादी के कार्ड में वर-वधु के नाम के आगे चिरंजीव और आयुष्मती लिखने के पीछे ये है असली वजह !

शादी के कार्ड में

शादी के कार्ड में – आपने अक्सर देखा होगा कि शादी के कार्ड में वर यानी लड़के के नाम के आगे चिरंजीव लिखा होता है और वधु यानी लड़की के नाम के सामने आयुष्मती लिखा होता है.

लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि लड़के और लड़की के नाम के आगे चिरंजीव और आयुष्मती क्यों लिखा होता है. अगर आप इसकी वजह नहीं जानते हैं.

तो चलिए हम आपको बताते हैं कि इसकी शुरूआत कैसे हुई और ऐसा करने के पीछे असली वजह क्या है.

शादी के कार्ड में वर के नाम के आगे इसलिए लिखते हैं चिरंजीव

दरअसल शादी के कार्ड में वर के नाम के आगे चिंरजीव लिखने के पीछे की वजह को जानने के लिए आपको एक कथा जाननी होगी. इस कथा के अनुसार एक ब्राह्मण की कोई संतान नहीं थी इसलिए उसने महामाया की तपस्या की और माताजी ने प्रसन्न होकर ब्राह्मण को पुत्र का वरदान दिया लेकिन उन्होंने साथ ही यह बताया कि वह पुत्र अल्पायु होगा लेकिन महा विद्वान होगा.

कुछ समय बाद ब्राह्मण की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया और उसका लालन-पालन करते हुए पांच साल बीत गए. उस बालक की माता अपने बेटे की सिर्फ 15 साल की आयु को जानकर दुखी हो जाती थी और हमेशा अपने बेटे के प्राण को बचाने की प्रार्थना करती थी.

ब्राह्मण ने अपने पुत्र को पढ़ाई के लिए काशी भेज दिया और दोनों अपने बेटे के वियोग में दुखी रहने लगे. धीरे-धीरे समय बीतता गया और उसके बेटे की मृत्यु की घड़ी नजदीक आने लगी.

इससे पहले काशी के एक सेठ ने अपनी बेटी का विवाह उस ब्राह्मण पुत्र के साथ कर दिया. विवाह के बाद पति-पत्नी के मिलन की रात के साथ ही इस ब्राह्मण पुत्र की मृत्यु की रात थी. यमराज नाग का रुप धारण करके उसके प्राण हरने के लिए आए और उसे डस लिया.

ब्राह्मण पुत्र की नव विवाहिता ने फौरन उस नाग को पकड़ के कमंडल में बंद कर दिया लेकिन तब तक उसके पति की मौत हो चुकी थी. उस ब्राह्मण की दुल्हन महामाया की बहुत बड़ी भक्त थी और वो अपने पति को फिर से जीवित करने के लिए मां की आराधना करने लगी. आराधना में एक महीने का समय बीत गया और यमराज के कमंडल में बंद होने की वजह से यम लोक की सारी गतिविधियां रुक गईं.

जिसके बाद सभी देवों ने महामाया जगदंबा से यमराज को छुड़ाने की प्रार्थना की. तब जाकर माता प्रकट हुई और उस ब्राह्मण पत्नी से नाग रुपी यमराज को आजाद करने के लिए कहा. माता के आदेश का पालन करते हुए उस दुल्हन ने कमंडल से यमराज को आजाद कर दिया.

माता को तथा दुल्हन के सतीत्व को प्रणाम करते हुए यमराज ने उस दुल्हन के पति के प्राण वापस लौटा दिए और उसे चिरंजीवी होने का वरदान देने के साथ ही उसे चिरंजीव कहके पुकारा. बस तभी से लड़के के नाम के आगे चिरंजीव लिखने की प्रथा चली आ रही है.

वधु के नाम के आगे इसलिए लिखते हैं आयुष्मती

लड़की के नाम के आगे आयुष्मती लिखने के पीछे भी एक कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार राजा आकाश धर की कोई संतान नहीं थी. जिसपर नारद जी ने राजा से कहा कि सोने के हल से धरती का दोहन कर उस भूमि पर यज्ञ करने से आपको संतान अवश्य प्राप्त होगी.

नारद के कहने के अनुसार राजा आकाश ने सोने के हल से पृथ्वी का दोहन किया और उसी समय उन्हें भूमि से एक कन्या प्राप्त हुई. जिसे राजा अपने साथ महल में लेकर आए.

महल में पहुंचते ही राजा देखते हैं कि वहां एक शेर खड़ा है जो कन्या को खाना चाहता है. डर के मारे राजा के हाथों से वो कन्या छूट गई जिसे शेर ने अपने मुख में धर लिया. कन्या को मुख में धरते ही वो शेर कमल के फूल में बदल गया.

उसी समय वहां विष्णु भगवान प्रकट हुए और कमल को अपने हाथ से स्पर्श किया. विष्णु के हाथों का स्पर्श पाते ही वो कमल का फूल यमराज बनकर प्रकट हुआ. देखते ही देखते वो कन्या 25 साल की हो गई और यमराज ने उसे आयुष्मती कहकर पुकारा.

राजा ने उस कन्या का विवाह विष्णु जी के साथ कर दिया और यमराज ने उसे आयुष्मती होने का वरदान दिया. मान्यता है कि तब से लेकर अब तक कन्या के नाम के आगे अयुष्मती लिखने की प्रथा चली आ रही है.

बहरहाल शादी के कार्ड में वर और वधु के नाम के आगे चिरंजीव और आयुष्मती लिखने के पीछे बताई गई यह वजह पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है जिसके मुताबिक यह प्रथा सदियों से चली आ रही है.