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सावन में भोलेनाथ को दूध क्यों चढ़ाया जाता हैं?

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सावन में भोलेनाथ को दूध क्यों चढ़ाया जाता हैं?

इसके बारे में अक्सर लोगों का मानना हैं कि केवल आस्था के नाम पर क्यों इतना दूध पर बर्बाद कर दिया जाता हैं?

पर सावन महीने में चलने वाली इस प्रथा के पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प हैं.

हम सभी ने अपने घर के बूजुर्गों से समुद्र-मंथन की कहानी तो सुनी ही होगी, जिसमे विष और अमृत दोनों निकला था.

मंथन से निकले उस अमृत का भोग तो देवताओ ने कर लिया था पर बाकि बचे विष का उपभोग कोई नहीं करना चाहता था. तब भगवान शिव ने विषपान कर के दुनिया को बचाया था. लेकिन इस विषपान के बाद भगवान शिव के शरीर का ताप कम करने और इस विष के इस प्रभाव को ख़त्म करने के लिए इंद्रदेव ने जल और दूध की वर्षा की थी. इस तरह की और कई दंत कहानिया सावन और भगवान शिव के बारे में हम सुनते आये हैं.

लेकिन हिन्दू धर्म में भगवान शिव को दूध चढ़ाने की प्रथा के पीछे एक वैज्ञानिक वजह भी हैं जिसे कम ही लोग जानते हैं.

इंसानी शरीर में तीन तरह के तत्वदोष पाए जाते हैं “वात” “पित्त” और “कफ” और सावन के महीने में इंसानी शरीर में “वात” तत्वदोष अधिक मात्रा में पाया जाता हैं. हरी सब्जी और भाजियों में इस तत्व की मात्रा अधिक होती हैं और हिन्दू धर्म में पूजनीय माने जाने वाली गाय हरी सब्जी और फूल पत्ते ही खाती हैं इसलिए गाय से मिलने वाले दूध में भी “वात” तत्व की मात्रा इस वक़्त अधिक पाई जाती हैं.

आयुर्वेद के अनुसार शरीर में पाए जाने वाले इन किसी भी तीन तत्वदोष में किसी एक की भी मात्रा अगर उचित से कम या ज्यादा होती है तो वह एक तरह का विष बन जाती हैं और शरीर में बीमारी का कारण भी.

हिन्दू धर्म में इस बात को ध्यान में रखते हुए सावन के मौसम में भगवान् शिव को दूध चढ़ाने की प्रथा शुरू हुई.

इस वैज्ञानिक तथ्य के अलावा एक और बात ये भी हैं कि बारिश के मौसम में जमीन में पाये जाने वाले कीड़े-मकौड़ों की संख्या ज्यादा हो जाती हैं और वही जीव हरी सब्ज़ी में भी आ जाते हैं तथा गाय इन्ही हरी साग-सब्ज़ी का सेवन करती हैं. गाय के शरीर में इन कीड़ों से होने वाले दुष्प्रभावों को लड़ने की क्षमता तो होती हैं पर इंसानी शरीर के लिए यह बीमारी की वजह बन सकती हैं.

इसलिए बारिश के मौसम या सावन के मौसम को धर्म से जोड़ दिया गया और हर तरह के विष को सहन करने वाले भगवान शिव की आराधना के रूप में लोगों तक लाया गया.

और इस प्रथा का लोग ने पालन भी किया हैं.

वैसे इस तरह की वैज्ञानिक प्रथाओ को लोगों तक पहुचाने के लिए ये ज़रूरी होता है कि इसे धर्म से जोड़ दिया जाये. लोगों की मान्यता यही होती हैं कि यदि कोई बात उनके धर्म में कही गयी है तो वो अवश्य ही सभी दृष्टिकोण से सही होगी.