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शिवपुराण के अनुसार करे अतिथि का सत्कार – रिश्तों में बनी रहेगी मिठास !

अतिथि का सत्कार

भारत में अतिथि देवो भव कहा जाता है – अर्थात अतिथि देवता के सामान होते हैं .

इसलिए अतिथि सत्कार और स्वागत के लिए शिव पुराण में कई जरुरी और महत्वपूर्ण बाते लिखी गई है.

अतिथि के सत्कार और स्वागत की विधि भी बताई गई है, जिसका अनुसरण करने से रिश्ते मजबूत बनाते है, रिश्तों में मिठास कायम रहती है, और समाज में मान सम्मान मिलता है.

तो आइये जानते है क्या क्या लिखा है

सह सम्मान

कोई भी अतिथि बनकर घर आये तो उनका सम्मान और ख़ुशी से स्वागत करना चाहिए. अतिथि भगवान के सामान होता है. इसलिए उनका सम्मान करते हुए अच्छा आचरण, अच्छा व्यवहार करें ताकि उनके मन से आपके लिए आशीर्वाद और शुभकामनाये निकले.

पवित्र साफ़ मन

पवित्र साफ़ मन से किया गया हर काम फल दायक होता है. इसलिए अतिथि का सत्कार भी पवित्र साफ़ मन से करे. आतिथि के लिए भोजन बनाते वक़्त भी साफ़ मन रखें क्योकि मन जैसा होता है, वैसा ही खाने का स्वाद और खाने से वैसी सोच बनती है. इसलिए खाना बनाते और खिलाते समय मन पवित्र रखकर अतिथि का सत्कार करे. मन में किसी प्रकार की कटुता और झल भाव ना रखे, क्योकि किया हुआ ही वापस मिलता है. चाहे कर्म हो या भाव हो.

स्वच्छ तन

घर आए हुए अतिथि  का स्वच्छ तन से सत्कार करें. स्वच्छ तन से सकारात्मक सोच विकसित होती है, जो अतिथि के मन और सोच में आपके लिए भाव जन्म देती है. स्वच्छ साफ़ तन रखकर अतिथि का आव भगत करें, ताकि वह भी स्वस्थ रहे और आपके लिए स्वस्थ  व स्वच्छ सोच रख सके. 

मधुर वाणी

अतिथि सत्कार में मधुर वाणी का विशेष महत्व होता है. मधुर वाणी होने से गरीब के घर बासी खाना खाकर भी उसकी तारीफ़ और सम्मान होता है. इसलिए अतिथि सत्कार में मधुर वाणी के साथ ही अतिथि सत्कार करे.

उपहार दान

घर आए अतिथि को कभी भी खाली हाथ बिदाई नहीं देना चाहिए. अतिथि का खाली हाथ घर से  जाना आपकी दरिद्रता और निर्धनता का प्रतीक होता है, इसलिए अतिथि को बिदाई में कुछ ना कुछ जरुर दे. कुछ ना हो तो फल या मीठा बंधकर दे दें. 

भारतीय संस्कार में अतिथि को देवता की उपाधि दी गई है.  इसलिए अतिथि का सत्कार देवता समान ही करना चाहिए ताकि आपके घर परिवार और रिश्ते में मधुरता, मिठास और प्रेम संबंध बना रहे और लम्बे समय तक चल सके.