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जानिए क्या करें मकर संक्रांति के दिन?

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति, साल का ये पहला त्योहार पूरे भारत देश में मनाया जाता है.

मकर संक्रांति को सूर्य देवता के संक्रमण के त्यौहार के रूप में जाना जाता है. एक जगह से दूसरी जगह जाने या एक दूसरे का मिलना ही संक्रांति होता है. कहते हैं सूर्य देवता जब धनु राशि से मकर राशि पर पहुंच जाते हैं, तो मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है.

राशि परिवर्तन

सूर्य देव के द्वारा राशि में परिवर्तन को ही संक्रांति कहा जाता है और ये परिवर्तन साल में केवल एक बार हीं आता है.

सूर्य का मकर राशि पर जाने का महत्व इसलिए भी ज्यादा हो जाता है, कि उस समय दक्षिणायन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है और उत्तरायण को देवताओं का दिन माना जाता है.

कैसे मनाएं संक्रांति

1 – मकर संक्रांति के दिन सुबह – सवेरे उबटन इत्यादि लगाकर तीर्थ के जल से मिले जल से हीं स्नान करना चाहिए.

2 – अगर आपके पास तीर्थ का जल उपलब्ध नहीं हो, तो ऐसी स्थिति में दही और दूध से मिले जल से स्नान करना चाहिए.

3 – मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदियों या फिर किसी तीर्थ स्थान में स्नान करने का अधिक महत्व होता है.

4 – स्नान करने के बाद अपने आराध्य देव की पूजा – पाठ करनी चाहिए.

5 –  इस पुण्यकाल में कठोर बोली बोलना, दांत मांजना, गाय, भैंस का दूध निकालना, फसल तथा वृक्ष काटना और मैथुन क्रिया विषयक कार्य नहीं करना चाहिए.

6 – मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने का विशेष महत्व है.

पुण्य पर्व है संक्रांति

देवताओं का आयन है उत्तरायण. यह पर्व पुण्य का है. शुभ कार्यों की शुरुआत इस पर्व से होती है. कहा जाता है कि मकर संक्रांति यानी कि उत्तरायण में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो तो उसके मोक्ष प्राप्ति की संभावनाएं बढ़ जाती है. पुत्र की राशि में पिता का प्रवेश पुण्य प्राप्ति होने के साथ पापों का विनाश करने वाला भी है.

सूर्य पूर्व दिशा में उदित होकर 6 महीने उत्तर दिशा की ओर और 6 महीने दक्षिण दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होता है.

कहते हैं दक्षिणायन का समय देवता की रात्रि का समय होता है और उत्तरायण का समय देवताओं के दिन का समय होता है. वैदिक काल में दक्षिणायन को पितृयान और उत्तरायण को देव यान के रूप में कहा गया है. मकर संक्रांति के बाद माघ मास में उत्तरायण में सारे शुभ काम किए जाते हैं.