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गौ माता पर इतनी राजनीति क्यों हो रही हैं?

holy-cow beef ban

अभी कुछ दिन पहले उत्तरप्रदेश के दादरी कांड में कई दिनों से चल रहे गौमांस के मुद्दे ने आग में घी डालने वाला काम कर दिया हैं.

कई दिनों से चल रहे बीफ और गौ मांस के मामले में वैसे ही राजनीति गरम हो रखी थी और ऐसी घटनायें पुरे देश में शांति का माहौल ख़राब कर रही हैं.

आये दिन देश के नेता गौ माता पर अपने उल-जलूल स्टेटमेंट देकर लोगो की भावनाओं भड़काने की कोशिश कर रहे हैं. कल ही बिहार में लालूप्रसाद यादव की क्षेत्रीय पार्टी रजद के एक वरिष्ट नेता रघुवंश यादव ने बहुत अजीब सी बात कह दिया. रघुवंश यादव ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि “ये तो अपने वेद और रिचाओं में लिखा गया हैं कि हिन्दू ऋषि मुनि भी गौमांस का सेवन करते थे!”

मिडिया में रघुवंश यादव द्वारा दिए गए इस विवादित बयान के बाद रजद के यह नेता चौतरफ़ा आलोचना के शिकार हो गए और इसकी पीछे की वजह भी यह थी कि उनके द्वारा कही गयी इस बात के लिए जब उनसे रेफरेंस माँगा गया तब उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था. मिडिया के साथ राजनीति महकमे में भी इस पुरे विवाद पर रघुवंश यादव और रजद को जमकर खरी खोटी सुनाई गयी.

वैसे यह सवाल सही भी हैं कि क्यों गौमाता को लेकर राजनीति की जा रही हैं और वह भी इतने निचले स्तर पर आकर कि वोट बैंक के लिए यह सारे नेता बे-सिर पैर के स्टेटमेंट दे रहे हैं.

इन सब बातों से पहले यह जानना ज़रूरी हैं कि बीफ और गौ मांस में क्या फर्क हैं?

दरअसल गौमांस गाय के मांस को कहा जाता हैं वही बीफ का मतलब गाय प्रजाति में आने वाले अन्य जानवर के मांस से लिया जाता हैं. इन अन्य जीवों में अधिकतर भैंस या बैल को शामिल किया जाता हैं.

एक जानकारी के मुताबिक भारत पुरे विश्व में बीफ निर्यात में दुसरे स्थान में हैं लेकिन भारत में जितने भी क़त्ल खाने हैं वहां भी गाय की हत्या करने को अपराध बताया गया हैं.

आकड़ों के अनुसार देश में मौजूद कसाई खानों में से लगभग 4000 कत्लखाने ही पंजीकृत कत्लखाने हैं इसके अलावा लगभग 25000 ऐसे कसाई घर जिनका कोई रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ हैं लेकिन इन सब में भी गौ हत्या पर रोक लगी हैं.

आप को यह बात जान कर आश्चर्य होगा कि देश के बहुत से कसाई घर ऐसे हैं जिसको चलाने वाले लोग किसी और धर्म के नहीं बल्कि हिन्दू धर्म से आते हैं. इन लोगों में कई नेता ऐसे हैं जिनका संबंध अभी की तत्कालीन सरकार और आरएसएस से भी हैं.

लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ हैं कि क्यों गौमांस पर हर एक राजनेता राजनीति करने से बाज़ नहीं आता हैं?

हर बार बहुसंख्यक विरोधी बयान देकर नेता क्या साबित करना चाहते हैं?

उन्हें क्यों ऐसा लगता हैं कि जब तक वह हिन्दुओं का अपमान नहीं करेंगे तब तक उन्हें मुस्लिमों का वोट नहीं मिलेगा? क्या हिन्दू इस देश में बहुसंख्यक होते हुए भी बाकि पार्टीयों के बिलकुल महत्व नहीं रखते हैं, जो आये दिन हिन्दू धर्म के बारे में बेतुके बयान देकर उनकी भावनाओं को चोट पहुचाने की कोशिश की जाती हैं?

गौमांस पर प्रतिबंध हिन्दू धर्म के अलावा इस्लाम और मुग़ल काल में भी था फिर आज के नेता बीफ पार्टी कर के क्या बताना चाह रहे हैं कि मुसलमानों का हिमायती उनसे हिमायती और कोई नहीं हैं. आप ही बताएं आज के नेता राजनीति को किस ओर लेकर जा रहे हैं?