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केरल में टीपू सुल्तान ने बोया था हिंदू-मुस्लिम झगड़े का बीज

हिंदू-मुस्लिम

आए दिन देश के किसी ना किसी हिस्से से हिंदू-मुस्लिम के झगड़ों की खबर सुनने के लिए मिलती रही है।

वर्तमान सरकार के राज में तो कम्यूनल राइट्स काफी बढ़ गए हैं। इस साल तो केरल से भी हिंदू-मुस्लिम के झगड़ों की खबर सुनने को मिली। खबर मिली थी कि जुलाई महीने की शुरुआत में केरल से 25 युवा सीरिया गए थे। इससे पहले 2010 में कुछ ऐसी घटना सामने आई थी।

2010 के जुलाई 2010 में स्थानीय इस्लामी कट्टरपंथियों ने प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ काट दिया था क्योंकि उन्होंने एक प्रश्न-पत्र में पैगंबर मोहम्मद से जुड़ा एक ऐसा सवाल रखा जिसे ईशनिंदा से जोड़ कर देखा गया था।

नहीं था एक व्यक्ति का काम

इस मामले में सबसे जरूरी जो बात रही थी वो थी कि इसमें कोई एक व्यक्ति शामिल नहीं था। बल्कि पूरे समूह ने इस काम को अंजाम दिया था। इस मामले में 18 मुसलमानों को बरी कर दिया गया। अब तक तीन अपराधी लापता हैं जबकि 2015 में इस घटना के लिए पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) नाम के संगठन के 13 सदस्यों को दोषी करार दिया गया।

हिंदू-मुस्लिम झगड़े की थी धार्मिक वजह

प्रोफेसर जोसेफ का हाथ काटने के पीछे धार्मिक वजह बताया गया था। ये हमला बिल्कुल वैसी ही था जैसा पिछले साल शार्ली हेब्दो पर हमला हुआ था। शार्ली हेब्दो की घटना में अल कायदा से जुड़े दो भाइयों, सैद कोएची और शेरिफ कोएची, ने पेरिस में इस फ्रेंच पत्रिका के दफ्तर पर हमला किया था।

केरल में ऐसी घटना अपने आप में काफी हैरान करने वाली घटना थी। इस साल तो जमशेदपुर में भी कम्युनल दंगे हुए जिनके बारे में शायद ही किसी ने उम्मीद की होगी। क्योंकि जमशेदपुर में आज तक कभी भी कम्युनल दंगे नहीं हुए थे।

सुन्नी मुसलमान और मुजाहिद मुसलमान

केरल में मुसलमानों की दो कम्युनिटी है- सुन्नी मुसलमान और मुजाहिद मुसलमान। सुन्नी मुसलमानों को काफी शांतिपूर्ण माना जाता है जो अपने आस पड़ोस से बनाकर रखते हैं। वहीं केरल में मुजाहिद मुसलमानों को थोड़ा कट्टर माना जाता है जिनका हिंदुओं के साथ निरस्त्र संघर्ष चलता रहा है। इन मुसलमानों का मुख्य संगठन है ‘केरला नदवात उल मुजाहिदीन’ (केएनएम) और इसके सदस्य खुद को सुधारवादी बताते हैं। लेकिन सुधारवादियों की भी अपनी-अपनी परिभाषा है। खैर परीभाषा जो भी है लेकिन इतना मालूम है कि सुधार बिल्कुल भी नहीं हो रहा है।

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हिंदू-मुस्लिम एतिहासिक बीज

अगर हम कभी भी इतिहास पर एक नजर डालें तो इन झगड़ों का हमें एतिहासिक विवरण मिल जाएगा। इन हिंदू-मुस्लिम झगड़ों के बीज इतिहास के अंदर छुपे हुए हैं। उस इतिहास को बताने से पहले ये मैं साफ कर देती हूं कि टीपू सुल्तान मेरे पसंदीदा राजाओं में से है। लेकिन कभी भी सही चीजों को गलत तरीके से अंजाम दिए जाते हैं जिसके बाद काम तो सही होकर खत्म हो जाता है लेकिन उस गलत तरीके को हर कोई अपने काम को अंजाम देने के लिए यूज़ करने लगता है। कुछ ऐसा ही टीपू सुल्तान के इस तरीके से शुरू हुआ था।

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मस्जिद का गुबंद बनाना

केरल में ये झगड़े इतिहास में मस्जिद का गुबंद बनाने को लेकर शुरू हुआ था। पश्चिम एशिया से केरल पहुंचने वाले पहले लोग मुसलमान नहीं थे। वहां तो अरबवासी उस समय ही पहुंच गए थे जब इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था। सबसे पहले यहूदी और ईसाई पहंचे उसके बाद मुसलमान पहुंचे।

केरल में इस्लाम से जुड़ा पहला विवाद 1498 ईस्वी में शुरू हुआ था जब वहां वास्कोडिगामा पहुंचा था। पुर्तगालियों के पहुंचते ही वहां इस्लाम बनाम ईसाईयत का झगड़ा सुरू हुआ।

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उस समय वहां एक मस्जिद पर गुंबद बनाने को लेकर मुसलमानों का विवाद हो गया। इस झगड़े को निपटोने के लिए टीपू सुल्तान को आमंत्रित किया गया था। उस समय गुंबद बनाने की अनुमति सिर्फ तीन हिंदू मंदिरों को थी। लेकिन टीपू सुल्तान बहुत सख्त था। इसलिए उसने हिंदुओं को गोमांस खाने और इस्लाम कबूलने के लिए मजबूर किया था।

तो ये थी वजह हिंदू-मुस्लिम के झगड़े की। टीपू सुल्तान ने तो केवल अपने मुसलमान होने की परंपरा निभाई थी जो आज तक हिंदु निभा रहे हैं। इस पर आप क्या कहेंगे?