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गंगा में अस्थियाँ विसर्जित करने के बाद कहाँ जाती है?

अस्थियाँ

अस्थियाँ – शास्त्रों के अनुसार गंगा का आगमन सीधे स्वर्ग से ही हुआ है.

ऐसा कहा जाता है कि गंगा विष्णु भगवान के चरणों से निकली है और भगवान शिव की जटाओं में आकर बसी है. ऐसी मान्यता है कि गंगा का पृथ्वी पर अवतरण ही मनुष्यों के पापों का नाश करने के लिए हुआ है. धार्मिक कथाओं के अनुसार राजा भागीरथ के पूर्वजों को मोक्ष देने के लिए गंगा स्वर्ग से सीधे पृथ्वी पर आई थी.

तभी से मान्यता है कि जो भी गंगा नदी में डुबकी लगाता उसके सभी पाप धुल जाते है. गंगा नदी इतनी पवित्र है कि प्रत्येक हिंदू की अंतिम इच्छा होती है की उसकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में ही किया जाए. लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि हर साल लाखों लोगों की अस्थियाँ गंगा में बहाई जाती है लेकिन ये अस्थियाँ आखिर जाती कहाँ है?

इस बात का जवाब आज तक वैज्ञानिक भी नहीं दे पाए कि असंख्य मात्रा में अस्थियों का विसर्जन करने के बाद भी गंगा जल इतना पवित्र और पावन कैसे है.

जब इन बहाई हुई अस्थियों का पता लगाने के लिए गंगा के आगमन से लेकर गंगा के अंतिम छोर गंगा सागर तक खोज की गई, तब भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला की हर साल लाखों लोगों की अस्थियाँ बहाने के बाद ये अस्थियाँ कहा जाती है. हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद उस व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए मृत व्यक्ति की अस्थि को गंगा में विसर्जन करना उत्तम माना गया है. कहा जाता है कि यह अस्थियाँ सीधे ही विष्णु भगवान के चरणों में वैकुण्ठ चली जाती है.

वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो गंगा जल में पारा होता है जिससे हड्डियों का कैल्शियम और फास्फोरस पानी में घुल जाता है. इसके अलावा हड्डियों में सल्फर भी होता है जो पारे के साथ मिलकर पारद का निर्माण करता है. धार्मिक दृष्टी से देखा जाए तो पारद शिव का प्रतिक है और गंधक शक्ति का प्रतिक है इस प्रकार सभी जीव अंत में शिव और शक्ति में विलीन हो जाते है. तो कहने का मतलब यही है कि गंगा नदी में अस्थियाँ डालने के बाद वो गायब हो जाती है, या ये अस्थियाँ पूरी तरह घूल जाती है.