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इनके चलते हो गया हिंदी और उर्दू का ब्रेक-अप !

हिंदी और उर्दू का ब्रेकअप

हिंदी और उर्दू का ब्रेकअप – लोगों का कहना है कि अपने हिंदी साहित्‍य में उर्दू को शामिल ना करके रामचंद्र शुक्‍ल जी ने हिंदी का बहुत नुकसान किया है लेकिन अगर वो ऐसा सोचते भी हैं तो कोई उनके स्‍तर पर हिंदी के इतिहास पर काम करके उर्दू को उसमें शामिल भी नहीं कर पाया। आज के दौर में भी रामचंद्र शुक्‍ल की ही किताब सबसे ज्‍यादा फेमस और बैस्‍ट मानी जाती है।

हिंदी और उर्दू का ब्रेकअप कैसे हुआ ?

शुक्‍ल जी का मानना है कि उर्दू में लिखी गज़लों को पढ़कर ऐसा लगता है कि जैसे किसी हॉस्‍पीटल का रुख कर लिया हो। ऐसा महसूस होता है कि इनमें कोई कराह रहा हो। कोई चिल्‍ला रहा होता है तो कोई दर्द से कपड़े फाड़ रहा होता है। शुक्‍ल जी का मानना था कि उर्दू की गज़लों में सिर्फ महबूब ही होता है।

उर्दू के बारे में अपने विचारों को व्‍यक्‍त करते हुए वो एक शेर का जिक्र किया करते थे और कहते थे कि इसी गज़ल को देख ला, ऐसा लगता है जैसे शायर साहब ने आशिक को खटमल का बच्‍चा समझ रखा है।

इंतेहा-ए-लागरी से जब नज़र आया न मैं

हंसके वो कहने लगे बिस्‍तर को झाड़ा चाहिए

इसका मतलब है कि मुझमें इतनी कमज़ोरी है कि मैं बिस्‍तर पर लेटा हुआ सामने वाले को नज़र ही नहीं आ रहा। इसलिए अगर मुझे खोजना है तो बिस्‍तर को झाड़ना पड़ेगा। मैं तुम्‍हे कहीं गिरा मिलूंगा।

दुखद बात है कि शुक्‍ल जी का उर्दू पर ये मज़ाक भारी पड़ गया। आज उर्दू धीरे-धीरे बाहर ही निकल गई है और गालिब से लेकर मीर तक, सब हिंदुस्‍तान से बेगाने हो गए।

आज भी शुक्‍ल जी हिंदी के महान कवियों में से एक हैं। उन्‍हें उर्दू की गजलें बिलकुल भी पसंद नहीं थी और इसीलिए वे उर्दू भाषा का समर्थन नहीं करते थे। कहा जाता सकता है कि शुक्‍ल जी की वजह से हिंदी और उर्दू का ब्रेकअप हो गया।