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जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं #LongLiveRG

आज कांग्रेस कार्यकर्ताओं की इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हुई.

हर साल 19 जून को कांग्रेस कार्यकर्ता राहुल बाबा का जन्मदिन धूम-धाम से मनाते थे, पर मन में कहीं न कहीं मलाल रह जाता था कि उनका युवराज उनके साथ नहीं.

जी हाँ राहुल गाँधी हर साल अपना जन्मदिन विदेश में मनाते थे पर इस साल वो राजधानी दिल्ली में ही हैं.

तो हुई ना कार्यकर्ताओं के लिए ख़ुशी की बात.

इस मौके पर हम भी राहुल गाँधी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते है.

राहुल के इस कदम से कम से कम ये कहा जा सकता है की राहुल अब जनता के नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं.

उन्हें समझ आ गया है की जनता के बीच जाने के लिए संगठन मजबूत करना होगा, जो की कार्यकर्ताओं से ही होगा. इसलिए शुरुआत कार्यकर्ताओं को खुश करने से की है.

“सत्ता जहर है”

राहुल को सत्ता सौपने से पहले उनकी माँ ने यही कहा था. क्योंकि गाँधी परिवार के लिए सत्ता ज़हर ही साबित हुई.

कहा जा सकता है की राहुल देश के सबसे शक्तिशाली परिवार की संतान हैं तो उनके लिए सब कुछ आसान नहीं रहा.

जब आप बड़े परिवार से आते हैं तो आपसे उम्मीदें भी बढ़ जाती है और अगर आपसे थोड़ी भी कमी रह जाए तो फिर आलोचनाएँ भी बहुत झेलनी पड़ती है.

राहुल ने भी कम आलोचनाएँ नहीं झेली. राहुल का काफी मजाक बनाया गया. आज के दिन को विश्व पप्पू दिवस के तौर पर पेश किया गया. किसी की भी इतनी आलोचनाओं के बाद उसके आत्मविश्वास में कमी जरूर आ जाती है. पर अब लगने लगा है की राहुल को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. और अब वो पूरी तैयारी के साथ मैदान ए जंग में उतर आये हैं.

किसानों का मुद्दा हो या दलित का मुद्दा राहुल गाँधी हमेशा इन मुद्दों पर काम करने की कोशिश करते आये हैं.

कांग्रेस के युवराज ने अपनी ही सरकार के खिलाफ जाकर आर्डिनेंस को फाड़ कर फेक दिया और नॉन सेंस बताया. हालांकि इस घटना को इस तरह से देखा गया कि राहुल गाँधी ने मनमोहन सिंह को शर्मिंदा कर खुद को हीरो की तरह पेश किया.

2014 की करारी हार के बाद राहुल गाँधी को अपने नेतृत्व में क्या कमी रह गयी ये सोचना पड़ा. अपनी गलतियों से राहुल सीखते नज़र आ रहे हैं. और जो राहुल पहले शायद ही लोकसभा में बोलते दिखाई देते हों. अब हर मुद्दे पर लोकसभा में बोलते नज़र आते हैं. लोकसभा ही क्या अब राहुल जहाँ भी जाते हैं वही भाषण देते हैं.

उनकी शैली में भी काफी बदलाव भी आया है.

जो मुद्दे पहले कांग्रेस प्रवक्ता ही उठाते थे अब राहुल गाँधी उन मुद्दों पर भी बोलते हैं.

इसका हालिया उदाहरण सुषमा स्वराज से इस्तीफे की मांग है.

राहुल गाँधी के इस गुण को अब सराहा जा रहा है और जो कार्यकर्ता अपनी उम्मीद खो चुके थे उन्हें नए राहुल गाँधी में उम्मीद की किरण नज़र आ रही है.

Neha Gupta

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