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आनंद अमीरी में है या गरीबी में? जवाब पढ़कर आप हैरान हो जाओगे !

आनंद कहाँ है

आज अधिकतर लोग बस जल्दी से जल्दी अमीर बनने के लिए मेहनत कर रहे हैं.

जिसके पास हजारों रुपैय हैं वह लाखों कमाने की होड़ में है और जिसके पास लाखों हैं वह बस करोड़ों की चाह में पागल है.

गरीब दुखी है कि उसको भगवान ने अमीर नहीं बनाया और अमीर दुखी है कि उसको सुख क्यों नहीं दिया है. असल में अमीर भी दुखी है और गरीब भी दुखी है.

पैसा है तो साथ में हजारों बीमारियाँ हैं और पैसा नहीं है तो वह क्यों नहीं है?

इस तरह की बातों के बाद बड़ा सवाल उठता है कि आखिर जीवन में आनंद कहाँ है?

जीवन में सुख कहाँ हैं?

क्यों बेवजह हम खुद को एक रेस में शामिल किये हुए हैं जिसकी हार-जीत से कोई फर्क पड़ता ही नहीं है?

तो आज हम आपको बताते हैं कि आखिर आनंद कहाँ है –

आनंद कहाँ है – आनंद है बस हँसने और दूसरों को हँसाने में –

यकीन मानिये आनंद पैसों में और धन में नहीं है. बल्कि जीवन का असली आनंद है बस हँसने में और वो भी बेवजह हँसने में है. आप यदि हँसते हैं तो आप इस काबिल भी होंगे कि आप दूसरों को हंसा सकें और दूसरों को हँसाने से बढ़कर आपको आनंद कहीं और नहीं मिल सकता है. आपके पास जो है आप उसका सुख नहीं लेते हैं. जितना आपके पास है उसको बांटना खाना सीखिए और तब आप खुद महसूस करेंगे कि आप आनंदित हैं.

आनंद कहाँ है – आनंद आत्मा में है और आत्मा आपसे नाराज है –

असल में आनंद आत्मा के अंदर है लेकिन आज के समय में आत्मा के साथ तालमेल बैठाने का समय ही किसी के पास नहीं है. ऐसा नहीं है कि एक नास्तिक इंसान के पास आत्मा नहीं है, उसके पास आत्मा है और जैसे ही कोई बीमारी या बड़ी समस्या नास्तिक के पास आती है तब नास्तिक की आत्मा ही भगवान को याद करवाती है. नास्तिक तभी तक बोलता है कि भगवान नहीं है जब तक उसके पास कोई बड़ा दुःख नहीं है. असल में आनंद है हमारी आत्मा के अन्दर जो भरा ऐसे भरा हुआ है जैसे कोई नदी पानी से भरी होती है. आनंद इतना गहरा है जैसे समुद्र की गहराई. लेकिन हम उस आनंद में डुबकी नहीं लगा रहे हैं. आत्मा के किनारे तक भी नहीं जा रहे हैं और उस जल रूपी आनंद को छूने की कोशिश भी नहीं करते हैं.

आनंद कहाँ है – जहाँ ख़ुशी है – 

सही बात तो यह है कि जिस चीज में हमको ख़ुशी मिलती है उस चीज से हम दूर भागते हैं. जिस उद्देश्य के लिए हमको इस दुनिया में भेजा गया है उसको तो प्राप्त करने की कोशिश हम करते ही नहीं हैं. आज हमको लगता है कि पैसा ही ख़ुशी है और हम इसी के पीछे भाग रहे हैं. आपको अगर पैसों के पीछे भागने से ख़ुशी मिल रही है तो आप जरुर भागें लेकिन यदि आप भागते हुए दुखी हैं तो आप रुक जाएँ. शायद रुकने पर आनंद प्राप्त हो जाये.

तो शायद आप समझ गये होंगे कि आनंद कहाँ है – आंनद हमारे अन्दर ही है. ना तो गरीब सुखी है और ना अमीर सुखी है बस सुखी वही है जिसने अपनी इच्छाओं को रोक लिया है, जिसने अपनी आत्मा को खोज लिया है.

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