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जय कपीश तिहुं लोक उजागर

Panchmukhi Hanuman

पिता केसरी और माता अंजनी के पुत्र हनुमान का चरित्र रामकथा में प्रखर होकर उभरा है. राम के आदर्शों को गरिमा देने में हनुमान जी का बड़ा योगदान है. रामकथा में हनुमान के चरित्र में हम जीवन की उन्नति के सूत्र हासिल कर सकते हैं. वीरता, साहस, सेवाभाव, स्वामिभक्ति, विनम्रता, कृतज्ञता, नेतृत्व और निर्णय जैसे हनुमान के गुणों को हम अपने भीतर उतारकर सफलता के मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं.

हनुमान जी के भीतर अदम्य साहस और वीरता बाल्यकाल से ही दिखती है. वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि बालपन में हनुमान सूर्य को फल समझकर उसे खाने आकाश में उड़ चले. उधर राहू भी सूर्य को ख़त्म करने जा रहा था. लेकिन हनुमान जी की जोरदार टक्कर से राहू घबराकर इंद्र के पास पहुंच गया. इंद्र ने वज्र का प्रहार हनुमान की हनु (ठुड्डी) पर किया, तभी से उनका नाम हनुमान पड़ गया. राम के कठिन प्रयोजन को सिद्ध करने में हनुमान जी का साहस ही रंग लाया. सीता हरण के बाद न सिर्फ तमाम बाधाओं से लड़ते हुए हनुमान समुद्र पार कर लंका पहुंचे बल्कि अहंकारी रावण को बता दिया कि वो सर्वशक्तिमान नहीं है. जिस स्वर्ण-लंका पर रावण को अभिमान था, हनुमान ने उसे जला दिया. ये रावण के अहंकार का प्रतीकात्मक दहन था. लक्ष्मण के मूर्छित होने पर संजीवनी बूटी ही नहीं, पूरा पर्वत हनुमान लेकर आए.

हनुमान जी की निष्काम सेवाभावना ने उन्हें भक्त से भगवान बना दिया. एक दंतकथा है कि भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने भगवान राम की दिनचर्या बनाई जिसमें हनुमान जी को कोई काम नहीं सौंपा गया. उनसे राम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने को कहा गया. हनुमान जी भूख, प्यास व निद्रा का परित्याग कर चुटकी ताने सेवा को तत्पर रहते. रात्रि में माता जानकी की आज्ञा से उन्हें कक्ष से बाहर जाना पड़ा. वे बाहर बैठकर निरंतर चुटकियां बजाने लगे. इससे भगवान राम को लगातार जम्हाई आने लगी. जब हनुमान ने भीतर आकर चुटकी बजाई तब जम्हाई बंद हुई.

अपार बलशाली होते हुए भी हनुमान जी के भीतर अहंकार नहीं रहा. जहाँ उन्होंने राक्षसों पर पराक्रम दिखाया, वहीं वे श्रीराम, माता सीता और माता अंजनी के प्रति विनम्र भी रहे. उन्होंने अपने किए हुए सभी पराक्रमों का श्रेय भगवान राम को ही दिया है.

वहीं, भगवान राम की वानर सेना का भी हनुमान जी ने नेतृत्व किया था. समुद्र के पार जाने पर जब वे शापवश अपनी शक्तियों को भूल बैठे थे, तब भी याद दिलाए जाने पर उन्होंने समुद्रपार जाने में तनिक भी देर नहीं लगाई. वहीं, लक्ष्मण को चोट लग जाने पर जब वे संजीवनी बूटी लाने पर्वत पर पहुंचे, तमाम भ्रम होने पर भी उन्होंने पूरा पर्वत ले जाने का त्वरित फैसला लिया. भगवान हनुमान जी के इन गुणों को अपनाकर हम भी अपनी सभी तरह की कठिनाइयों से पार पा सकते हैं. रामकथा में हनुमान जी के सेवाभाव और अन्य गुणों ने ही उन्हें भक्त से भगवान बना दिया. तो क्यों न हम सब भी उनके गुणों को जीवन में उतारकर सफलता की ओर अग्रसर हों और जीवन का असली आनंद उठाएं.

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