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करोड़ों का व्यापार पर सरकार करने ही नहीं देती!

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यूँ तो करने के लिए बहुत सी नौकरियां हैं, ढेरों किस्म के काम-धंदे हैं लेकिन एक व्यापार ऐसा है जो सदियों से चला आ रहा है और उसकी खपत में कभी भी किसी भी तरह की कमी नहीं आई है|

अगर आपने अभी तक इसका अंदाजा नहीं लगाया तो बताये देते हैं कि वो व्यापार है वेश्यावृत्ति!

जी हाँ, इतिहास टटोलेंगे तो जानेंगे कि यही एक व्यापार है जो हर देश में हर समुदाय में सैकड़ों साल से फलता-फूलता चला आ रहा है और बावजूद इसके कि इसका सर कलम करने के हज़ारों प्रयास नाक़ाम रहे हैं|

हमारे देश का इतिहास देखें तो इसा पूर्व की दूसरी सदी में सुद्रका द्वारा लिखी गयी एक संस्कृत कहानी में वसंतसेना नाम के किरदार का ज़िक्र हुआ है|

यह कोई और नहीं, एक वेश्या ही थी!

उस दौर में वेश्याओं को नगरवधू के नाम से भी जाना जाता था जिनका मुख्य कार्य होता था नाचना और गाना|

मशहूर किरदार आम्रपाली को आचार्य चतुरसेन ने वैशाली की नगरवधू के नाम से बहुचर्चित किया था| ऐसे ही कई उदहारण हैं जो बताते हैं कि हमारा देश वेश्यावृत्ति से अनजान नहीं है|

लेकिन अब इस काम को हीन समझा जाता है, वेश्याओं का जीवन गली के कुत्ते से भी बदतर है और जानते-बूझते भी सरकार उनके लिए कुछ नहीं करती है| माना कि हमारे सिद्धांतों के अनुसार यह काम ग़लत है, लेकिन सेक्स एक ऐसी ज़रुरत है जो मनुष्य को किसी भी हद तक ले जाती है|

दुनिया भर में इसी बात पर वाद-विवाद चल रहा है कि इस व्यवसाय को किस तरह क़ानून के दायरे में लाकर इसे थोड़ी बहुत इज़्ज़त दी जा सके| इस में काम करने वाली औरतों-लड़कियों को उनका हक़ मिल सके, उनका शोषण न हो और ज़बरदस्ती इस धंदे में किसी को ना लाया जाए!

यह सब आसान नहीं है क्योंकि कुछ हद तक हमारी सोच भी इस व्यवसाय को तुच्छ समझने के लिए ज़िम्मेदार है| जो मर्द रात ढलते ही इन वेश्याओं के पास जाते हैं, वही मर्द दिन में वेश्यावृत्ति के खिलाफ मोर्चा निकलते दिखाई देते हैं| जो सेक्स को छुपा के रखना चाहते हैं, वही लोग इस व्यवसाय को चलाते और उसकी आग को हवा देते नज़र आते हैं|

जब तक हम अपने दोगलेपन से बाहर नहीं आएंगे, जब तक सेक्स को इंसानी ज़रुरत समझ के उस पर खुल के बात नहीं करेंगे, तब तक ये वेश्यवृत्ति यूँही ज़लालत की निगाहों से देखी जायेगी और लाखों-करोड़ों महिलाओं का शोषण होता रहेगा!