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अंग्रेज चले गये थे किन्तु पुर्तगालियों की कैद में थे कई राज्य ! गोवा और दमन की आजादी का सबसे बड़ा कवरेज

गोवा और दमन की आजादी

अंग्रेज तो देश को आजाद कर सन 1947 में चले गये थे लेकिन देश के कई भाग ऐसे थे जो अभी भी पुर्तगालियों के कब्जे में थे.

देश के इन भागों को आजादी नहीं मिल पाई थी. सभी को यह बात दर्द दे रही थी कि अभी आजादी की एक लड़ाई और लड़नी होगी.

जब देश आजाद हो रहा था तब पंडित नेहरू ने यह मांग रखी थी कि अब गोवा को भी आजादी दे दी जाये. लेकिन अंग्रेजों ने जानबूझकर इस मुद्दे को अनसुलझा रखा. पुर्तगाली इस भाग को अपना बता रहे थे. इनके अनुसार जब यह लोग यहाँ आये तो भारत का कोई भी गणराज्य या सरकार यहाँ नहीं थी.

नेहरू सरकार फेल हुई

सन 1954 तक गोवा और दमन की आजादी के लिए किये जा रहे सभी कार्य फेल हुए थे. इसे जवाहर लाल नेहरू के नाकामी ही कहेंगे कि वह इतने साल तक देश को गुलाम बनाये हुए थे. वह तो भला हो कुछ लोगों का कि वह आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे अन्यथा तो शायद आज भी गोवा गुलाम ही बना हुआ होता.

तो फिर कैसे मिली आजादी

गोवा और दमन की आजादी के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी. इसके अलावा इस आजादी का सबसे बड़ा कारण राम मनोहर लोहिया जी के आन्दोलन को भी सूत्रधार माना जा सकता है. लोहिया जी इस आजादी के लिए देश भर में घूम रहे थे. लोहिया जी को पुर्तगाल ने इस आन्दोलन के लिए गिरफ्तार भी कर लिया था.

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दादर को संघ ने आजाद कराया और लता दीदी का योगदान

सर्वश्री विष्णु भोपले, धनाजी बुरुंगुले, पिलाजी जाधव, मनोहर निरगुड़े, शान्ताराम वैद्य, प्रभाकर सिनारी, बालकोबा साने, नाना सोमण, गोविन्द मालेश, वसंत प्रसाद, वासुदेव भिड़े एवं उनके साथी साहसी तरुणों ने अंधेरे एवं मृत्यु के कुएं में छलांग लगा दी थी. यह लोग देश के इस भाग की आजादी के लिए निकल लिए थे. कोई नहीं जानता था कि अब क्या होगा. परन्तु इतने बड़े आन्दोलन को सफल करने हेतु आर्थिक सहायता की जरूरत थी. वह जिम्मेदारी श्री सुधीर फड़के ने ली. उन्होंने स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर को पूरी जानकारी देते हुए पुणे के हीराबाग मैदान में “लता मंगेशकर-रजनी’ का कार्यक्रम आयोजित किया. लता दीदी ने यह कार्यक्रम नि:शुल्क किया था. इस कार्यक्रम के माध्यम से काफी धन संग्रह हुआ था. अत: विभिन्न संस्थाओं और व्यक्तियों से मिलकर और अधिक धन-संग्रह किया गया.
सब तैयारी पूरी कर  दादरा नगर हवेली मुक्ति संग्राम को अंजाम दिया गया. रात के समय में पुलिस चौकी पर हमला हुआ था और पटाखों की आवाज को गोली की आवाज सुनकर पुर्तगाली भागने लगे थे. रात के समय में यहाँ आजादी की लड़ाई लड़ी गयी थी और गुजरात-महाराष्ट्र सीमा पर बसे दादर को आजाद करा लिया गया था.

(लेख का यह भाग पांचजन्य अखबार की जानकारी पर आधारित है)

जब आन्दोलनकारियों पर चली गोलियां

3000 आन्दोलनकारी गोवा की आजादी के लिए आन्दोलन कर रहे थे और पुर्तगालियों ने इन पर गोलियां चला दी थी. इसमें कुछ 30 लोग मारे जा चुके थे. जब यह घटना हुई तो देश में आजादी के लिए फिर बड़ी आग लग गयी. पुर्तगाल इस मामले को कोर्ट में ले जा रहा था. पाकिस्तान भी पुर्तगालियों का साथ दे रहा था.

जब गोवा के लिए भेजी गयी सेना

दादर की आजादी के बाद अब गोवा और नगर हवेली की आजादी के लिए पंडित नेहरू पर दवाब बढ़ रहा था. इसलिए 18 दिसंबर 1961 को ऑपरेशन विजय को अंजाम दिया गया था. लगभग 30000 सैनिक गोवा की आजादी के लिए लड़ने निकल लिए थे. पुर्तगाली सेना के पास दो ही रास्ते थे या तो वह इस सेना को हराए या फिर गोवा को आजाद कर दे.

पुर्तगाली सेना जानती थी कि वह लड़ नहीं सकती है इसलिए उनको यहाँ समर्पण करना पड़ा. लेकिन इस कार्यवाही के पीछे भी नेहरू का नहीं किन्तु अन्य लोगों का ही संघर्ष था कि यह कार्यवाही प्रधानमंत्री को करनी पड़ी थी.

Surrender_with_locals

इसके बाद गोवा को राज्य का दर्जा दिया गया और नगर हवेली को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया.

आज हम इस आजादी के बारें में नहीं जानते हैं लेकिन अगर आप इतिहास उठाकर पढ़ना शुरू करेंगे तो निश्चित रूप से आपको बहुत कुछ जानने को मिलेगा.

इस आजादी के लिए जिन लोगों ने संघर्ष किया था उन वीर लोगों को देश ने याद रखना भी सही नहीं समझा.

इससे बड़ा देश का दुर्भाग्य कुछ माना नहीं जा सकता है.