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भारतीय मूल की इस 11 साल की बच्ची को मिला ‘टाॅप यंग साइनटिस्ट’ का ख़िताब

गीतांजलि राव – हूनर की न कोई उम्र होती है न कोई धर्म ।

शायद पुराने वक्त में ऐसी चीजों को चमत्कार कहा जाता था जिन्हे आज हम विज्ञान की ताकत कहते हैं।

प्राचीन काल से ही विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने अपनी अलग पहचान बनाई है। इसलिए सालों पहले ही आर्यभट्ट ने ये बता दिया था कि पृथ्वी गोल है। और शायद ये बहुत कम लोगों को पता हैं कि ऋग्वेद में हजारों सालों से पहले ही लिख  दिया गया था कि नौ ग्रह होते हैं। जबकि साइंटिस्ट ने बहुत सालों के बाद इसकी पुष्टि की थी। आप सोच रहे  होंगे कि मैं भारत के विज्ञान का इतिहास क्यों बता रही हूँ । क्योंकि ये बातें ये साबित करती है कि भारतीय वर्ल्ड में कही भी हो विज्ञान के क्षेत्र में किसी से कम नहीं है।

गीतांजलि राव

और इसी बात का सबूत है भारतीय मूल की अमेरिका में रहने वाली 11 साल की गीतांजलि राव। जिन्हें यंगेस्ट साइंटिस्ट का आवार्ड दिया गया है । वो भी उनकी अनोखी खोज के लिए, जिसके कारण अब दुनिया भर के लोगों को फायदा मिलेगा ।

दरअसल गीतांजलि राव की सांइस में काफी दिलचस्प है। उनकी इसी रुचि के कारण उन्हें केवल 11 साल की उम्र में अमेरिका के टाॅप साइंटिस्ट के साथ 3 महीने बिताने का मौका मिला। हालांकि उनके साथ 9 और बच्चों को भी चुना गया था। लेकिन गीतांजलि राव ने इस मौके का बेहतरीन फायदा उठाया । और एक ऐसी इनवेनशन कर डाली जिसकी मदद से कुछ ही मिनटों में बिना किसी खर्च के पानी में लेड की जांच की जा सकती है । जिसे हजारों लोगों खतरनाक बीमारियों का शिकार होने से बच सकते हैं।

गीतांजलि के उपकरण का नाम कार्बन नैनोट्यूब्स है जिसका नाम ग्रीक देवी  टेथीज के नाम पर रखा गया है। जिन्हें शुद्ध जल की देवी माना जाता है।

आपको बात दे पानी में लेड का पता लगाने के लिए बङे बङे देश करोङो रुपये खर्च करते हैं। पानी के सैम्पलस को  लेब मे ले जाकर जांच करने में वक्त भी काफी लगता है। लेकिन गीतांजलि राव की इनवेनशन के कारण अब पानी में  फोन की मदद से लेड का पता लगाना आसान हो गया है। साथ ही इस इनोवेशन को कही भी आसानी से ले जाया जा सकता है। पानी में मौजूद  पानी को बुरी तरह से प्रदूषित करता है। जिस पानी का इस्तेमाल करने से लोगों को  स्कीन, पेट, लीवर संबंधी खतरनाक बीमारियां होती हैं।

गीतांजलि राव को  इस इनवेनशन के लिए ‘टाॅप यंग साइनटिस्ट आवार्ड’ दिया गया है । साथ ही 25 हजार डाॅलर यानि 16.22 लाख रुपये ईनाम में दिए गए हैं।  गीतांजलि ने महज 11 साल की उम्र में ये किताब पाया है जो काबिले तारीफ है।