भारत

फिल्मों में दिखाया जाने वाला फेमिनिज्म और रियल फेमिनिज्म में अंतर

फेमिनिज्म – मीटू कैंपेन के बारे में फिलहाल कुछ दिनों से इंडिया में कुछ सुनाई नहीं दे रहा है।

तनुश्री ने जब इतने सालों बाद नाना पाटेकर का नाम लिया था तो उन्होंने ऐसा करने से पहले काफी हिम्मत जुटाई होगी। क्योंकि हमारा देश वेस्ट और हॉलीवुड से काफी अलग है। यहां रेप होने पर रेपिस्ट से ज्यादा पीड़िता की गलती मानी जाती है। तभी तो तनुश्री के बोलते ही लोग उस पर टूट पड़े और पब्लिक स्टंट बताने लगे हैं। बॉलीवुड में भी एक-दो लोगों को छोड़कर किसी ने उनका साथ नहीं दिया। उन बड़े स्टार्स ने तो अब तक कुछ नहीं बोला जो फेमिनिज्म पर बातें भी खूब करते हैं और फिल्में भी खूब बनाते हैं।

तनुश्री ने जैसे ही नाना पाटकेर का नाम लिया …

एक ट्विटर यूज़र ने उसे प्बलिक स्टंट कररा दिया तो दूसरे ने उससे सहमित जताई।
तीसरे ने काम पाने की तकनीक बताई।

लेकिन कोई बड़ा स्टार्स तनुश्री के लिए नहीं आया

यहां बड़े स्टार्स का मतलब कीरना कपूर और सोनम कपूर जैसे स्टार्स से है जिनकी हाल ही में आई फिल्म “वीरे दी वेंडिग” को इंडिया की बेस्ट फेमिनिस्ट फिल्म माना गया है। लेकिन सवाल है कि ये फेमिनिस्ट रियल में क्यों नहीं फेमिनिज्म का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं?

फिल्म और रियलिटी में अंतर

इन लोगों के कारण ही अंत में लड़कियों का ये मानकर चुप बैठना पड़ता है कि फिल्में और रियलिटी में काफी अंतर है।
अंतर तो है।

उन्हें बैठे-बैठाए सबकुछ मिला है जिसे नेपोटिज्म कहते हैं और जिस पर विद्रोह पिछले कई सालों से कंगना रनौत जताते रही है। लेकिन जब करण जौहर और वरुण धवन, एक अवॉर्ड शो के बड़े स्टेज पर हजारों स्टार्स के सामने नेपोटिज्म की तरफदारी कर कंगना का मजाक उड़ाते हैं और कोई भी महिला एक्टर (पुरुष एक्टर्स से तो कोई उम्मीद ही नहीं है) इस पर एतराज नहीं जताती हैं तो सारे फेमिनिज्म का बना-बनाया कांच का महल बिखरता सा नजर आता है।

क्या फिल्मों में ऑर्गेज्म व पीरियड्स पर बात करने से सबकुछ नहीं होता

क्या फिल्मों में फेमिनिज्म के बारे में बात करने से आपका काम पूरा हो जाता है? आप पब्लिक फिगर हैं तो आपकी समाज के तरफ कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है। कोई समाज के तरफ फर्ज नहीं है। केवल फिल्मों में ऑर्गेज्म और फेमिनिज्म व पीरियड पर बात करना ही आप के लिए काफी है?

अगर ऐसा है तो आप केवल फेमिनिज्म का नाम बदनाम कर रहे हैं और आपको अपनी फिल्मों में एक डिस्क्लेमर यह भी लगा देना चाहिए कि- हम फेमिनिज्म को सपोर्ट नहीं करते हैं और केवल फिल्म को हिट कराने के लिए इसे प्रोडक्ट की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।

इससे ना हमें तकलीफ होगी और आपकी आवाज ना उठाने की आदत से हम आपसे कोई उम्मीद करेंगे।

क्या है फेमिनिज्म?

सबसे पहले लोगों को ये समझने की जरूरत है कि फेमिनिज्म क्या है? खासकर लड़कों को। क्योंकि फिल्मों के फेमिनिज्म के चक्कर में इनके दिमाग में फेमिनिज्म की परिभाषा काफी गलत बैठी हुई है।

फेमिनिज्म लड़कों का हक छीनने के लिए नहीं बना है। जब ये लड़के बस में लेडीज़ सीट मांगने पर कंधे से कंधा मिलाकर चलने की दुहाई देते हैं तो इन्हें कहने का मन करता है कि हम आपसे कंधे से कंधा तब मिला पाएंगे जब आपके कंधे तक पहंचेंगे और आपकी तरह हमारी हड्डियां मजबूत हो पाएंगी।

फेमिनिज्म का मतलब केवल और केवल अपना हक और अपनी जीने की आजादी है।

सेक्स और छोटे कपड़े पहनना

प्लीज… फिल्मों में फेमिनिस्ट लड़की को हमेशा छोटे कपड़े पहने हुए दिखाया जाता है, रियल में उससे यह बहुत अलग है। रियल में एक फेमिनिस्ट लड़की, लड़कों से सेक्स करने और छोटे कपड़े पहनने को फेमिनिज्म नहीं मानती। ब्लकि वह छेड़खानी का पलट कर जवाब देने को फेमिनिज्म मानती है। जब उसके सामने गलत हो रहा होता है और दस लड़के चुप बैठे होते हैं तो वह अपनी दिल की बात सुनकर उस गलत के खिलाफ लड़ती है। वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए लड़ती है। वह जॉब करने के लिए और शादी के बाद जॉब करना और ना करने का फैसला खुद लेने के लिए लड़ती है। वह अपनी खुद की जिंदगी खुद के शर्तों पर जीने को फेमिनिज्म मानती है।
इसलिए फिल्मों को भी इन मुद्दों पर फिल्म बनाने की जरूरत है। ना कि फिल्मों की तरह शादी से डरने वाली लड़की को फेमिनिज्म पर…

समाज में जा रहा गलत संदेश

इससे समाज में एक गलत संदेश जाता है और इससे इन फिल्मों की एक्टर्स का तो कुछ नहीं बिगड़ता। बल्कि बिगड़ता उनका है जो घर से निकलकर कुछ कर गुजरने का सपना देखती हैं। तो उम्मीद है कि बॉलीवुड को इस पर जल्द अक्ल आएगी और वे रियल वाले फेमिनिज्म को ही फिल्मों में पेश करेंगे।

Tripti Verma

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Tripti Verma

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