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सेक्स एज्युकेशन का अभाव आज भी इंडिया में कायम

एक दशक पहले यौन शिक्षा को लेकर हर तरफ चर्चाऐं हो रही थी.

यह चर्चाऐं किसी पाठशाला, कोलेज, सामाजिक सस्थान में नहीं तो टीवी और विभिन्न माध्यमो द्वारा हो रही थी.

यह शिक्षा किस तरह दी जायेगी कौन से वर्ग को दी जायेगी सारी बाते स्पष्ट रूप से यह मिडिया दिखा रहा था.

मगर सामने आये तथ्य आश्चर्य कर देने वाले है.

मेट्रो शहरों में नाबालिक लडकीयाँ सब से ज्यादा गर्भपात कर रही है. वही दूसरी तरफ महिलायें नसबंदी करा रही है. इन दोनों ही तथ्यों ने यह सोचने पर मजबूर किया है की वाकई में सरकार सेक्स एज्युकेशन को बढावा नहीं दे रही है.

सेक्स एज्युकेशन आज भी इंडिया में Taboo बना है!

सेक्स यह ऐसा शब्द है इंडिया में जिसे सुनकर ही हर किसी के कान खड़े हो जाते है.

विषय कोई भी हो,  मगर उस विषय में सेक्स का शब्द आता है तो वह सुनने कि जिज्ञासा सभी में रहती है.

आज की पीढ़ी के मासूम बच्चे हो या फिर अनुभवी बुजुर्ग, महिलाओं से लेकर मर्दों में सेक्स की बाते सुनना पसंद है.

लेकिन यह बाते वे केवल मजे लेने तक ही सुनते और  अपने निकट परिजनों से करते है,

पाठशालाओं में योन शिक्षा को लेकर पहले माता पिता बाद में शिक्षकों ने भी नाराज़गी जताई थी.

सभी निषेध के बावजूद योन शिक्षा को पाठशालाओं में शुरू करके का सरकार ने निश्चय किया.

मगर सरकार भी खुद इस शिक्षा के हित में पूरा समर्थन करती नहीं दिख रही है. यही एक बडा कारण है कि आज एक दशक बाद सरकारी और निजी दोनों पाठशालाओं में यह शिक्षा का प्रसार नहीं हो रहा है.

 

अधूरे प्रसार का प्रभाव

महानगरों के कुछ तथ्यों को जानते है. इससे यह अनुमान आप लगा सकेंगे की कम विकसित शहर और गांव में योन शिक्षा की क्या स्थिति होगी.

शहरों में जहा मासूम बच्चों को सेक्स के बारे में जानने की इच्छा रहती है. उनको इस ज्ञान की आधी अधूरी जानकारी के कारण माँ बाप बनना पड़ रहा है.

ख़ास करके मुंबई की बात अगर करे तो नाबालिक लड़कियों में गर्भपात जैसे जुर्म ६७% तक हो रहे है.

दूसरी ओर शादी शुदा महिलाओं में नसबंदी का प्रमाण ९८% देखा गया है, जबकी पुरुष नसबंदी करने से अभी भी कतराते है.

क्यों नाबालिक लड़कियां हो रही है गर्भवती ?

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लड़के अगर गर्भवती होते तो शायद यह आकडे कम होते. लेकिन सेक्स का आधा अधुरा ज्ञान, उत्सुकता और प्रेम के चलते, परिणाम लड़कियों को ही भुगतना पड़ता है.

पाठशालाओं में योन शिक्षा इस लिए शुरू करवाई थी क्योंकि माता पिता अपने बच्चों से इस विषय में खुलकर बात नहीं कर सकते है.

मगर वास्तव में मुंबई जैसे शहर में भी सारे स्कूलों और कॉलेज में खुलकर शिक्षक बात नहीं करते. तो सोचिये छोटे शहरों में और गांव में क्या स्थिति होगी.

२० और २१ साल के मास कॉम के छात्र बताते है कि “उनको पाठशालाओं में शारीर कि साफ़ सफाई और ओपोजिट लिंग से अधिक शारीरिक संबन्ध नहीं बढाने है.”

इसका मतलब है उनको सारी जानकारी इन्टरनेट से ही प्राप्त हो रही है. जब यह बच्चे इस तरह के ज्ञान के भूखे होते है तो अश्लील विडियो देखने लगते है.

इनकी भावनाए जगी हो न हो, लेकिन सेक्स करने की उत्सुकता इनको इससे अछुता नहीं रखती.

यही सबसे बडा कारण है, जिससे नाबालिक लड़कियां अधिक गर्भवती हो रही है.

और प्रेगनेन्सी समझ आने के बाद वे गर्भपात भी कराती है.

पुरषों के मुकाबले महिला अधिक नसबंदी क्यों कर रही है?

पुरषों को नसबंदी करना आज भी अपना स्टेटस कम करने जैसा लगता है.

उन्हें यह भी लगता है कि नसबंदी से वो नामर्द कहलायेंगे और कमजोर भी हो जायेंगे.

महिलायें अब नसबंदी की तरफ बढ़ रही है क्योंकि उन्हें समझ आ रहा है की उनकी शारीरिक क्षमता किस तरह बिगड़ सकती है. बदलते युग में बढती मंहगाई ने कमर तोड दी है. यह भी एक कारन है महिलांये अब २ से अधिक बच्चे नहीं पसंद करती. कई बार पति के दबाव में अकसर महिलायें ही नसबंदी करती है.

आधे अधूरे सेक्स एज्युकेशन का मतलब क्या?

बच्चों में बहुत जिज्ञासा रहती है. ख़ास करके रंगीन बाते और ऐसे वीडियोज की बात हो तो.

कई बार माता पिता के मोबाईल में ऐसे वीडियोज छोटे छोटे बच्चे देख लेते है. माता पिता को ऐसा लगता है बच्चा गेम खेल रहा है.

पाठशालाओं में जाने वाले छात्र भी आज स्मार्ट फोन इस्तमाल करते है. जिसमे इन्टरनेट अच्छा ख़ासा चलता है. सेक्स को जानने की यही उत्सुकता बच्चो को ऐसे सारे वीडियोज देखने के लिए उत्सुक करती है.

आये दिन इंडिया में मनोरंजन की दुनिया अश्लील सिनेमा, बड़े परदे से लेकर छोटे परदे पर लाते है.

प्रसार माध्यमों में विज्ञापन, सड़क के किनारे अशलील होर्डिंग यह सब सेक्स भावनाओं को उकसाती है.

जितनी चीजे काम भावना या उत्सुकता बढाने के लिए हो रही है, उतना प्रसार सेक्स कब करना उचित है, यह नहीं हो रहा है.

आबादी और संक्रमण रोगों पर रोक लगाने के लिए कंडोम के विज्ञापन आप ने देखे होगे.

क्या आपने कभी बच्चों को सेक्स जैसी क्रिया ना करने की सलाह का विज्ञापन कभी देखा है?

यही आधी अधूरी जानकारी नाबालिक बच्चो के जीवन के साथ खेल जाती है.

सेक्स एज्युकेशन की जरुरत केवल बच्चो के लिए ही नहीं बल्की युवाओं को भी देनी चाहिए. गर्भपात एक जुर्म है मगर इसे करने की अनुमति केवल रेप पीड़ित या फिर शारीरिक स्थिति को देखते हुए डॉ ऐसा निर्णय ले सकता है.

किंतु यह जुर्म आज भी छुपे तरीके से समाज में जारी है.

नसबंदी से महिलायें और पुरषों को कोई हानी नहीं होती इसकी भी जागरूकता फैलाने की बेहद जरुरत है.

मगर सरकार आती है जाती है, वोटो के लिए कई उपाय योजनाये बनाती है. लेकिन जमीनी तौर पर काम हो रहा है की नहीं, यह जानने की जहमत कभी नहीं उठाते.