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इमरजेंसी : बॉलीवुड को भी नहीं छोड़ा

इमरजेंसी

आज से 43 साल पहले इंदिरा गाँधी ने इमरजेंसी का ऐलान किया था.

इस दिन को आज भी ‘ब्लैक डे’ मनाया जाता है. देश में इमरजेंसी लागू होने से भारतीय राजनीति पूरी तरह हिल गई थी और साथ ही प्रेस और बॉलीवुड से सारे फ्रीडम छीन ली गई थी. इमरजेंसी के दौरान बॉलीवुड के कई डायरेक्टर, एक्टर्स को बहुत ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा था.

सेंसरशिप के फैसले में भी  दखलअंदाजी करने लगे थे, कई सारे मूवी थियेटर को भी जला दिया गया था. इमरजेंसी से जुड़े बॉलीवुड के किस्से के बारे में जानते है चलिए :

शोले का क्लाइमैक्स बदला गया : 

बॉलीवुड की आइकॉनिक फिल्म शोले पर भी इमरजेंसी की प्रभाव टुटा पड़ी थी. फिल्म की आखिरी सीन में दिखाया जाता है कि ठाकुर गब्बर को मरने जा रहा है, उसी समय पुलिस आकर कहता है कि आपको कानून का सामान करते हुआ गब्बर को कानून के हवाले कर देना चाहिए. लेकिन फिल्म के डायरेक्टर रमेश सिप्पी का कहना है कि ”फिल्म का क्लाइमैक्स जैसा दिखाया गया वैसा नहीं था”. सेंसर ने फिल्म के क्लाइमैक्स पर आपत्ति जताई थी. असली क्लाइमैक्स सीन में ठाकुर गब्बर को मार देता है. इस सीन को सेंसर ने कानून का हवाला देकर बदलने को कहा था.

गुलजार की फिल्म ‘आंधी’ पर लगी पाबंदी :

संजीव कुमार-सुचित्रा सेन की फिल्म ‘आंधी’ को इमरजेंसी के दौरान बैन कर दिया गया था.  फिल्म इंदिरा गांधी के जीवन और उनके प्रेम कहानी पर आधारित थी. बैन से फिल्म को और ज्यादा पॉपुलैरिटी मिली. 1977 में कांग्रेस की हार के बाद जनता पार्टी की सरकार ने फिल्म से बैन हटा दिया था और फिल्म का प्रीमियर टीवी पर भी किया गया.

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‘किस्सा कुर्सी का’ पर बैन लगा:

इमरजेंसी के दौरान फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ पर बैन लगा था. फिल्म में संजय गांधी के ऑटो-मैन्युफैक्चरिंग प्लान्स का मजाक उड़ाने का आरोप था.फिल्म सेंसर बोर्ड को अप्रैल 1975 को सर्टिफाई करने के लिए सूपा गया था.  संजय गांधी के समर्थकों ने फिल्म के मास्टर प्रिंट्स और कॉपियों को सेसर बोर्ड से उठाकर जला दिया था. बाद में फिल्म को अलग कास्ट के साथ बनाया गया था.

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नसबंदी के लिए बदनाम हुई अमृता सिंह की मां

इमरजेंसी के दौरान नसबंदी के फैसले ने लोगों को चकित कर दिया था. इस दौरान 60 लाख लोगों की नसबंदी करा दी गई थी. संजय गांधी ने नसबंदी अभियान के लिए कई नामी लोगों को चुना. जिनमें एक्ट्रेस अमृता सिंह की मां रुखसाना भी थीं. संजय रुखसाना के माध्यम से मुस्लिम समुदाय के ज्यादा से ज्यादा लोगों को नसबंदी के लिए राजी कराना चाहते थे. बताया जाता है कि नसबंदी का यह काम इस खौफनाक तरीके से चलाया जा रहा था कि रुखसाना को देखते ही लोग डर जाते थे. रुखसाना, संजय गांधी की करीबी दोस्त बन गई थीं. फिल्म को बैन इसलिए किया गया था क्योंकि फिल्म इंदिरा सरकार के खिलाफ थी. लेकिन फिल्म बाद में टीवी पर चली थी.

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इतना सब कुछ कम था कि, सरकार ने ऑल इंडिया रेडियो पर किशोर के गाने प्रतिबंधित कर दिए थे क्योंकि किशोर ने इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के 20 सूत्री प्रोग्राम के लिए बनाए गाने को गाने से मना कर दिया था.

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ये तो थी बॉलीवुड की कहानी इमरजेंसी के वक्त. तो सोचिए, आज बॉलीवुड का क्या हल होता अगर इमरजेंसी संजय गाँधी के अनुसार 35 साल के लिए चलता रहता.