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ईद-उल-अजहा : किसने बनाया काबा और क्यों हज यात्री मारते है शैतान को पत्थर

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ईद-उल-अजहा… या क़ुरबानी की दावत

इस्लाम धर्म का ये  सबसे प्रमुख त्याग और समर्पण का त्यौहार है.  इसे भारत में बड़ी ईद भी कहा जाता है. इस दिन अल्लाह को जानवरों की कुर्बानी दी जाती है.

ईद -उल-फितर को मीठी ईद कहा जाता है और ईद -उल -अजहा को नमकीन ईद. क्योंकि ये ईद नमकीन पकवानों के साथ मनाई जाती है.

इस ईद को बकर ईद भी बोलते है, आम तौर पर माना जाता है कि इस ईद का सम्बन्ध बकरे से है. लेकिन बकर ईद में ‘बकर ‘ शब्द का अर्थ बड़े जानवर से है.

ईद-उल-अजहा के दिन कुरबानी देने के पीछे भी एक कहानी है.

इस कहानी के अनुसार अलाह ने अब्राहम को आदेश दिया कि वो अपनी बीवी और बच्चे को कनान लेकर आये, उन्हें छोड़कर जाते हुए अब्राहम के पुत्र ने पुछा कि क्या ये अल्लाह का हुकुम है जिसकी वजह से उन्हें अकेला इस रेगिस्तान में छोड़कर जाया जा रहा है.

अब्राहम जाते हुए अपनी बीवी और बच्चे के लिए काफी मात्रा में खाना और पानी छोड़कर गया था. लेकिन समय के साथ साथ वो सब सामग्री खत्म हो गयी.

अब्राहम की बीवी अपनी पुत्र के लिए पानी की तलाश में भटकती भटकती बेसुध हो गयी. कथा के अनुसार गब्रिअल नामके फ़रिश्ते ने उस जगह पर एक जलधारा प्रकट की जिससे ना सिर्फ अब्राहम के बेटे की जान बची बल्कि उस राह से आने जाने वालों को भी सुविधा हो गयी.

इस पवित्र जल को अल जम जम कहा जाता है.

समय बीतने के बाद अल्लाह ने अब्राहम को आदेश दिया की मक्का में वो अल्लाह की शान में एक इमारत बनाये. चुने और गारे से मक्का में इमारत का निर्माण किया गया जहाँ मुसलमान समुदाय के लोग अल्लाह की शान में नमाज़ अदा करने आते थे. अब्राहम द्वारा बनाई गई इस इमारत का नाम काबा पड़ा. समय के साथ साथ मक्का व्यापार का एक बड़ा केंद्र बन गया. इसका कारण था अल जम जम जल स्त्रोत.

समय के साथ साथ एक बात की चिंता अब्राहाम को खाये जा रही थी. वो ये थी की अल्लाह के आदेश के अनुसार उसे अपनी सबसे प्यारी चीज़ की क़ुरबानी अल्लाह को देनी थी.  अब्राहम के लिए सबसे प्यारा इस दुनिया में कुछ था तो वो था उसका बेटा.

अब्राहम बेटे की कुर्बानी के लिए तो तैयार था पर अपने बेटे को कुर्बानी अली जगह तक लाने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी. लेकिन फरिश्तों का आदेश था और वो पूरा करना ही था. ऐसे में अब्राहम ने अपने पुत्र को कुर्बानी की बात बताई. अब्राहम के पुत्र ने एक पल भी ना लगाते हुए कहा कि उसे अल्लाह पर भरोसा है और उसके पिता बेफिक्र हो उसकी कुर्बानी दे.

इस दौरान शैतान ने अब्राहम और उसके परिवार को अल्लाह की बात मानने से रोकना चाह. अब्राहम ने पत्थर मार कर शैतान को भगाया. हज के दौरान आज भी शैतान को पत्थर  मार कर इस रस्म को दोहराया जाता है.

जब भरे बाज़ार अब्राहम अपने प्यारे पुत्र की कुर्बानी देने गया और जैसे ही उसने अपने बेटे का सर काटा तो देखा कि उसका बेटा सही सलामत है और जहाँ क़ुरबानी दी गयी उस जगह एक भेड़ का सर कटा है.

अब्राहम ख़ुदा के इम्तिहान में सफल हुआ. उसी दिन की याद में ईद-उल-अजहा  मनाया जाता है.

भारत में भी ये पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. कहा जाता है कि मुग़ल बादशाह जहाँगीर जनता के साथ ईद-उल-अजहा  मनाया करते थे.

बादशाह के दरबार में बहुत से गैर मुस्लिम दरबारी भी थे , उन्हें बुरा ना लगे इसके लिए ईद-उल-अजहा  के दिन गोश्त के साथ विशुद्ध शाकाहारी भोजन भी दावत में होता था.

त्याग समर्पण और भाईचारे के इस मौके पर सभी को हमारी तरफ से ईद-उल-अजहा  की बहुत बहुत बधाई.