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भगत सिंह को जेल से छुड़ाने वाले प्लान ‘दी फिलासफी आफ बम’ की मास्टर माइंड थी यह महिला!

दुर्गा भाभी

आजादी की लड़ाई में भारत की वीर महिलायें भी अपना पूरा सहयोग दे रही थीं.

इन नामों में सबसे ऊपर दुर्गा भाभी का नाम आता है. वैसे अधिकतर लोगों ने दुर्गा भाभी का नाम भी सुना है और जानते भी हैं कि वह स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर के साथ सहयोगी थीं. इनका पूरा नाम वैसे दुर्गावती देवी था.

किन्तु दुर्गा भाभी का परिचय बस इतना ही नहीं है. वाकई में यह महिला दुर्गा का अवतार थीं. उस समय जब भगत सिंह को जेल से बाहर लाने का प्रयास किया जा रहा था तो दुर्गा भाभी ने ही एक प्लान भी तैयार कर लिया था.

तो आज हम आपको दुर्गा भाभी के जीवन से जुड़े कुछ बहादुरी के किस्से बताते हैं, इनको पढ़कर आप खुद बोलेंगे कि हाँ यह महिला अंग्रेजों के लिए दुर्गा ही थी-

दुर्गा भाभी

‘दि फिलासाफी आफ बम’ की मास्टर माइंड दुर्गा जी – 

भगत सिंह को जेल से बाहर लाने का प्रयास किया जाना था. चंद्रशेखर चिंतित थे कि यह सब कैसे होगा और कौन करेगा. चिंता यह थी कि बंदूकों के दम पर तो भगत सिंह को बाहर नहीं लाया जा सकता है तो अब क्या प्लान बनाया जाये? तब दुर्गा भाभी ने ‘दि फिलासाफी आफ बम’ का प्लान रखा और भगत सिंह को जेल से बाहर लाने का प्रयास करने की योजना बना दी थी. दुर्गा भाभी ने ‘दि फिलासाफी आफ बम’ के दस्तावेज तैयार करके जब सबके सामने रखे तो सब हैरान थे कि एक महिला कैसे बम के फार्मूले पर इतने अच्छे से काम कर सकती हैं. यह योजना बाद में बेशक सफल नहीं हुई किन्तु ‘दि फिलासाफी आफ बम’ का दस्तावेज जरूर अमर हो गये थे.

लाला जी का बदला लेना ही था – 

अंग्रेजों ने लाला लाजपत राय जी को शहीद कर दिया था और अंग्रेज अन्दर ही अन्दर जश्न मना रहे थे.

अंग्रेजों को पता था कि अफसर साण्डर्स को मारने का प्रयास भगत सिंह और उनके साथी कर सकते हैं इसलिए चप्पे-चप्पे पर पुलिस थी. दुर्गा भाभी ने सन 1927 में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिये लाहौर में बुलायी गई बैठक की अध्यक्षता की थी. इसी बाद से साबित होता है कि दल में इनकी भूमिका कितनी अहम थी. बैठक में दुर्गा भाभी ने सबके सामने अंग्रेज पुलिस अधीक्षक स्काट को मारने का जिम्मा खुद लेने की बात रखी थी किन्तु संघठन इस बात के लिए राजी नहीं हुआ था.

बड़ा महत्वपूर्ण काम करती थीं दुर्गा जी –

दल में दुर्गा भाभी सबसे अधिक महत्वपूर्ण काम करती थीं. हथियारों को ले जाना और सही जगह से हथियार लाकर, दल तक पहुचाने का कम दुर्गा भाभी का था. यहाँ तक कि यह महिला दल के लिए एक महत्वपूर्ण खबरी भी थीं. कहाँ क्या हो रहा है और अंग्रेज क्या कार्यवाही करने वाले हैं, यह सब जानकारी दुर्गा भाभी तक कहीं न कहीं से आ जाती थी. रणनीति बनाने में भी यह महिला काफी आगे थी. जब भगत सिंह असेंबली में बम फेंकने जा रहे थे तो दुर्गा भाभी ने अपनी बांह काटकर खून से उनका तिलक किया था. चंद्रशेखर आजाद आखिरी लड़ाई जिस बन्दुक के लड़ रहे थे वह भी इनकी ही लाइ हुई थी.

यह दर्शाता है कि वह दल के लिए कितनी महत्वपूर्ण थीं. अगर वह लालची होतीं तो आजादी के बाद कोई बड़ा पद ले सकती थीं किन्तु कांग्रेस से ही इनका मोह भंग हो गया था. आजादी बाद इन्होने स्कूल चलाकर बच्चों की भविष्य को रोशनी देने का काम किया था.

आज दुर्गा भाभी के सही और पूर्ण इतिहास को हमारी किताबों में भी जगह नहीं दी गयी है.

इस दुर्गा ने आजादी की लड़ाई में अपना पति और परिवार खो दिया था और अंग्रेजों से 47 तक अकेले संघर्ष करती रही थीं. इस देवी को हमें कोटि-कोटि नमन करना चाहिए.

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