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अर्जुन से पहले इन दो पुरुषों पर आया था द्रौपदी का दिल

द्रौपदी के प्रेमी

द्रौपदी के प्रेमी – देखा जाए तो महाभारत के केंद्र मं कोई एक पात्र है तो वह है द्रौपदी का फिर भी द्रौपदी को वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसकी वे हकदार हैं.

महाभारत में द्रौपदी की सबसे अधिक चर्चा चीर हरण वाली घटना को लेकर होता है. शायद इसकी एक वजह यह है कि पुरुषवादी समाज नारी को अबला के रूप में ही देखना चाहता है. पर यदि आप द्रौपदी के चरित्र की गहराई में जाना चाहते हैं तो आपको द्रौपदी के संपूर्ण व्यक्तित्व को देखना होगा.

कम ही लोगों को पता होगा कि द्रौपदी का असली नाम ‘कृष्णा’ था.

द्रौपदी के प्रेमी

द्रौपदी कृष्ण की सखी थी यह तो सब जानते हैं पर द्रौपदी के लिए कृष्ण एक सखा से बढ़कर थे. कृष्ण वह पहले पुरुष थे जिनके लिए द्रौपदी यानी कृष्णा के मन में प्रेम अंकुर फूटा था. पर कृष्ण ने द्रौपदी को ‘सखी’ भर ही माना और उनका स्वंयवर रचवाकर उस प्रेम पर विराम लगा दिया. कृष्ण ने अपनी कृष्णा के इस बलिदान का हमेशा कद्र किया पर कृष्णा का यह एकमात्र बलिदान नहीं था.

कृष्ण द्रौपदी के प्रेमी में से एक थे.

जब द्रौपदी का स्वंयवर रचा गया तो ऐसा नहीं हुआ कि अर्जुन पहली नजर में द्रौपदी को भा गए. अर्जुन के अलावा भी उस स्वंयवर में एक ऐसा शख्स था जो स्वंयवर के शर्तों को पूरा कर सकता था. यह योद्धा कोई और नहीं बल्कि कर्ण था. द्रौपदी के मन में कर्ण के लिए एक नाजुक हिस्सा था पर सभा में उपस्थित लोग नहीं चाहते थे कि द्रौपदी कर्ण को चुनें.

कृष्ण ने भी इसके लिए द्रौपदी पर दबाव बनाया. सभा के दबाव में द्रौपदी को कर्ण को अस्वीकृत करना पड़ा.

इसके बाद अर्जुन ने स्वंयवर के शर्तों को पूरा करके द्रौपदी का परिग्रहण किया. इस तरह अर्जुन तीसरे पुरुष के रूप में द्रौपदी के जीवन में आएं पर द्रौपदी के बलिदानों का सफर अभी यहीं नहीं रूका. माता कुंति के एक भ्रम के कारण द्रौपदी को न सिर्फ अर्जुन बल्कि पांचों पांडवों की पत्नी बनना स्वीकार करना पड़ा. द्रोपदी पांचों पांडवों में विभाजित हुईं. अर्जुन सहित सभी पांडव भाई नई-नई शादियां करते रहें और द्रौपदी उनकी नई पत्नियों का स्वगत करती रहीं.

आगे चलकर पांडव जुए की बिसात पर द्रौपदी को हार गए. भरी सभा में द्रौपदी की इज्जत उछालने की कोशिश हुई और पांडव भाई चुप बैठे रहे. ऐसे में श्रीकृष्ण ने सभा में पहुंचकर द्रौपदी की लाज बचाई.

इस तरह से द्रौपदी के प्रेमी तीन थे.

अक्सर स्त्री के त्याग को समाज में नारी की कमजोरी के रुप में खारिज कर दिया जाता है. स्त्री पुरुषों से शारीरिक रुप से भले ही कमजोर हो सकती है लेकिन उसकी सहनशीलता और त्याग उसकी कमजोरी नहीं बल्कि उसके चरित्र की सशक्तता है.

पुरुष अपने शारीरिक शक्ति के अहम में अक्सर नारी के त्याग की शक्ति को सम्मान देने से चूक जाता है.