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जो बातें कानाफुसी तक सीमित थी अब उन बातों पर फिल्मों के टाइटल भी आ गये !

फिल्मों के टाइटल

फिल्मों के टाइटल – बॉलीवुड में फिल्मों की कहानी जैसे-जैसे बदल रही है, वैसे-वैसे उनके टाइटल भी मनोरंजन होते जा रहे हैं। यदि आप समझ गये हों तो सही है। वरना आपका ध्यान आयुष्मान खुराना की अभिनीत फिल्म विक्की डोनर पर केन्द्रित करते है। जिसमें हीरो स्पर्म डोनर था।

विक्की डोनर जैसी कम बजट की इस फिल्म ने लोगों को काफी आकर्षित किया था। मगर क्या आपने इस बात पर गौर किया कि इस तरह के विषय, आमतौर पर कानाफुसी तक ही सीमित थे। जो आजकल फिल्मों में टाइटल के तौर पर इस्तेमाल किये गये हैं। शायद इस विषय पर आपका ध्यान न गया हो। क्योंकि वर्तमान समय में फिल्में अधिक मुखर अंदाज में बन रहीं है। जिसमें विषय से लेकर उनके डायलॉग भी बेहद वाइल्ड हैं।

हालांकि यह पढ़कर आपको हैरत होगी कि वर्तमान समय में नहीं बल्कि शुरुआत से ऐसे विषयों पर ढ़ेरों फिल्में तैयार हुई हैं। फिर चलिए पढ़ते हैं उन फिल्मों के नाम जो कानाफुसी जैसे विषयों पर आधारित है।

1 – अंधेरी रात में दिया तेरे हाथ में

आमतौर पर यह बात गुपचुप तरीके से कही जाती है। जिसे लोग पर्सनल टॉक भी कहते हैं। मगर गुपचुप तरीके से होने वाली बात पर वर्ष 1986 पर फिल्म अंधेरी रात में दिया तेरे हाथ में रिलीज हो चुकी है।

फिल्मों के टाइटल

2 – घर में राम गली में शाम

यह वाक्य दो लोग तब बोलते हैं जब किसी की निंदा कर रहे हों या चुगली करते वक्त। अक्सर इस बात को लोग काफी कहते हैं लेकिन वर्ष 1988 में बॉलीवुड के बड़े अभिनेता गोविंदा, नीलम, अनुपम खेर, जॉनी लीवर द्वारा यह फिल्म अभिनीत की गई।

फिल्मों के टाइटल

3 – विक्की डोनर

कभी आपने अपने किसी दोस्त से चिला कर पूछा भाई तू स्पर्म डोनर है लेकिन वर्ष 2012 में रिलीज हुई इस फिल्म में विक्की ने स्पर्म डोनर की भूमिका निभाई। जो एक असहज बात है। क्योंकि आमतौर पर स्पर्म जैसे विषय लोग प्राइवेट में बोलना पसंद करते हैं।

फिल्मों के टाइटल

4 – दो लड़के दोनों कड़के

इस फिल्म का टाइटल सुनने में जैसा रोचक है वैसा ही मजेदार फिल्म की कहानी भी मगर यह वाक्य, हम वहां पर सुनते हैं जहां उस बात को सुनने वाला अन्य न हो। मतलब गुपचुप तरीके से । मगर 1979 में इस विषय पर फिल्म बन चुकी है।

फिल्मों के टाइटल

5 – बचके रहना रे बाबा

जब किसी से पीछा छुड़ाना हो तो फिर मुंह से एक बात जरूर आती है बचके रहना रे बाबा। लेकिन अभिनेता की मुख्य भूमिका पर अमिताभ बच्चना इस विषय पर वर्ष 2005 में फिल्म बना चुके हैं।

फिल्मों के टाइटल

ये है फिल्मों के टाइटल – जैसा कि आप शुरुआत में पढ़ चुके हैं कि फिल्मों की कहानी बदल रही है। तो इस तरह से उनके टाइटल भी परिवर्तित हो रहे हैं। हालांकि फिल्मों के टाइटल उन विषयों पर बने हैं जो आमतौर पर लोग गुपचुप तरीके से कहना पसंद करते हैं ।