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यह सवाल आप सब से हैं – “क्या आरक्षण होना चाहिए”

मेरे बड़े-बुज़ुर्ग एक बात कहते थे “ज़रूरत से ज्यादा मदद इंसान को पंगु बना देती हैं”

यह बात हमारे भारत देश पर एकदम सही बैठती हैं. आरक्षण वह मदद हैं जिसने हमारे देश को उस इंसान की तरह पंगु बना दिया हैं.

हमारे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 के अनुसार संविधान समानता के अधिकार की बात कहता हैं.

लेकिन सच कहूँ तो यह बात अब एक मज़ाक लगती हैं कि कैसी समानता? कहाँ की समानता? आरक्षण ने इस अनुच्छेद को मात्र एक चुट्कुला बना कर रख दिया हैं.

जब हमारा संविधान बना था, तब आरक्षण को सिर्फ दस साल तक रखने की बात कही गयी थी, वह भी उन लोगों के लिए जो सिर्फ जाति से नहीं बल्कि जीवन के हर पक्ष में कमज़ोर और पिछड़े थे. आज़ादी के बाद का वह दस साल तो  गुज़र गया लेकिन हमारे नेता ये भूल गए की आरक्षण को भी बंद करना था. नतीजा यह हुआ कि आरक्षण एक नासूर बनकर हमारे देश को इतना खोखला कर चूका हैं कि अब देश की कई संपन्न जातियां भी इसकी मांग कर रही हैं.

आज गुजरात में इसी आरक्षण की आग ने पुरे गुजरात को जला कर रख दिया हैं.

पुरे विश्व में जिस गुजरात को एक मॉडल स्टेट के रूप में देखा जाता था, आज वहीँ गुजरात धूं-धूं कर के जल रहा हैं और इसके पीछे की वजह जाति के आधार पर आरक्षण की मांग हैं.

एक दिन पहले गुजरात में सबसे संपन्न मानी जाने वाली पटेल या पाटीदार के नाम से मशहूर एक जाति ने खुद को OBC आरक्षण देने के लिए आन्दोलन किया था जो हिंसक हो गया, अंततः प्रशासन को इस आन्दोलन से निपटने के लिए फ़ोर्स का इस्तेमाल करना पड़ा. कई सम्पतियाँ और करोड़ रूपए के नुकसान के बाद अहमदाबाद जैसे शहरों में इन्टरनेट की सुविधा तक बंद करनी पड़ी ताकि आन्दोलन को और हिंसक होने से रोका जा सके.

लेकिन सवाल अभी भी यही हैं कि क्या आरक्षण अब एक हथियार के रूप में तो इस्तेमाल नहीं किया जाने लगा हैं?

हर जाति, हर वर्ग के लोग जातिगत आधार पर आरक्षण की मांग करने लगे हैं और यदि इस मांग को धमकी कहे तो ज्यादा सही होगा क्योंकि आरक्षण की मांग करने वाले यह सभी लोग खुले तौर पर सरकार को धमकी देते हैं कि अगर हमें आरक्षण नहीं दिया गया तो इसके भुगतान के लिए भी आप तैयार रहे.

कुछ दिन पहले राजस्थान में जाट आरक्षण ने पूरें देश को परेशान कर रखा था और इस मुद्दे को सुलझाने के लिए खुद सुप्रीमकोर्ट को बीच में आना पड़ा था. इस पुरे मामले में न्यायालय ने कहा था कि “जाति को पिछड़ेपन का एकमात्र आधार मानना गलत है. पिछड़ेपन की पहचान सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक आधार पर हो सकती है”

कोर्ट द्वारा कही गयी यह बात बिलकुल सही हैं क्योकि अब आरक्षण राजनैतिक नफे-नुकसान को ध्यान में रख कर दिया जाने लगा. वोट बैंक बनाने के लिए आज हर पार्टी मौक़े के अनुसार आरक्षण की बात करती हैं और इसका फायदा उठाने में लगी रहती हैं.

लेकिन 60 साल से चले आ रहे आरक्षण के बाद भी इसका असर पुरे देश में प्रभावी रूप से कहीं नहीं दिखता हैं. आरक्षण आज भी उन लोगों को नहीं मिलता जिन्हें इसकी असल में ज़रूरत हैं. ऐसे में आप ही बताएं कि देश किस ओर जा रहा हैं? हम कब तक इन पार्टी और चाँद सरफिरें लोग के हाथ उल्लू बनाते रहेंगे? क्या हमें अपनी क़ाबलियत पर इतना भी भरोसा नहीं हैं जो अपनी प्रगति के लिए हमें आरक्षण जैसी बैसाखी की ज़रूरत हैं?

आप ही बतायिएँ आरक्षण क्या इतना ज़रूरी हैं?

Sagar Shri Gupta

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Sagar Shri Gupta

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