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चाट पकौड़ी बेचने वाले के बच्चे आज हैं अरबपति !

धीरुभाई अंबानी

धीरुभाई अंबानी – दिल में जज्बा हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता.

हर मुश्किलों का सामना आप आसानी से कर लेते हैं और आपका सफ़र आसान बन जाता है. ऐसे ही मुश्किल भरे राहों को आसान किया दुनिया के एक अमीर आदमी ने.

इस दुनिया से रुखसत हो चुके इस आदमी की औलाद आज अरबों के मालिक हैं. लेकिन कौन जानता था कि आर्थिक तंगी से जूझ रहा ये इंसान जो अपने परिवार को चलाने के लिए चाट बेच रहा है, कल उसकी औलाद दुनिया के अमीर लोगों से एक होगी.

जी हाँ, ये कोई कहानी नहीं बल्कि सच है. एक ऐसा सच जिससे हर इंसान प्रेणना ले सकता है.

ये कहानी है भारत के उद्योगपति मुकेश और अनिल अम्बानी के पिता धीरुभाई अम्बानी की. 28 दिसंबर 1933 को सौराष्ट्र के जूनागढ़ जिले में जन्म लेने वाले धीरुभाई अंबानी को भी शायद ही पता रहा होगा कि किसी दिन उनका परिवार दुनिया के अमीर खानदान में से एक होगा.

बचपन में आर्थिक तंगी देखने वाले धीरुभाई अंबानी का बचपन काफी संघर्ष के बीच बीता. न उनके पास कोई बैंक बेलेंस था और न ही कोई पिता की संपत्ति. उनके पिता स्कूल टीचर थे. जिनके देहांत के बाद परिवार की जिम्मेदारी संभाली और धीरे-धीरे टाटा और बिरला के बीच खड़ा किया.

धीरुभाई अंबानी न सिर्फ खुद बल्कि भरता के तमाम लोगों को करोड़पति बना गए. देश के लोगों के हाथ में मोबाइल फ़ोन देने वाले धीरुभाई अंबानी ही थे. महज़ ५०० रूपए में उन्होंने पहला मोबाइल दे दिया, जिसके बारे में उस समय सोचा भी नहीं जा सकता था. धीरुभाई अंबानी के  करोड़पति बनने का सफर जो वाकई इंस्पिरेश्नल है. परिवार की आर्थिक तंगी के बाद धीरूभाई को जिम्मेदारी लेनी पड़ी. हाईस्कूल के बाद उनको पढ़ाई भी छोड़नी पड़ गई. सूत्रों के मुताबिक, वो हर शनिवार और रविवार को गिरनार पर्वत के पास तीर्थयात्रियों को चाट-पकौड़ी बेचा करते थे. पिता की मौत ने उन्हें पूरी तरह से अकेला कर दिया था. उनेक पास सहारे जैसी कोई चीज़ नहीं थी. शायद इसीलिए वो इतने मुकाम पर पहुंचे.

चाट-पकौड़ी का ठेला लगाने वाले धीरुभाई अंबानी के दिमाग में एक बात आई और वो 1949 में वो काबोटा नाम की शिप में काम करने के लिए निकल पड़े. वहां काम करते हुए उन्होंने कुछ रूपए जमा किये. 1958 में वो 50 हजार रुपये लेकर भारत लौटे और मसालों का छोटा-मोटा काम शुरू किया, जिसके बाद उन्होंने रिलायंस कंपनी खोलकर कपड़ा ट्रेडिंग कंपनी खोली. जिसके बाद वो नहीं रुके और कंपनी को आगे बढ़ाते चले गए. चाट बेचने के बाद शिप पर नौकरी और फिर मसाले का कारोबार, ऐसे ही छोटे मोटे और भी कई काम अंबानी ने किये.

चाट बेचने वाले के संघर्ष और बुध्दिमानी ने उसे दुनिया के अमीर आदमी में शामिल कर दिया. नतीजा ये रहा कि 6 जुलाई 2002 को जब उनकी मौत हुई तब तक रिलायंस 62 हजार करोड़ की कंपनी बन चुकी थी. यमन में उनकी पहली सैलरी 200 रुपये थी, लेकिन रिस्क लेकर उन्होंने करोड़पति बनने का सफर तय किया.

किसी ने सही कहा है कि अगर हौसला हो तो उड़ान भरने के लिए कमज़ोर पंख भी काफी होते हैं. आप भी इस स्टोरी से सीख लेकर खुद को आगे बढ़ा सकते हैं.