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हुमायूँ एक कायर और असफल राजा था ! हुमायु की कायरता का सच्चा इतिहास पेश होगा आपके सामने, पहली बार

दिल्ली का शासक हुमायूँ

बाबर के बाद दिल्ली का शासक हुमायूँ रहा था.

हुमायु के शासन का समय काल (1530 से 1540) और (1555 से 1556 ई.) बताया जाता है.

भारतीय इतिहास की पुस्तकों में लिखा है कि जहाँ बाबर तो शराबी था वहीं दूसरी तरफ दिल्ली का शासक हुमायूँ पक्का अफीमची और विलासी था.

बाबर भी हुमायूँ के इस व्यवहार से दुखी था.

बाबर जब मरा तो बड़े ही दुखी मन से उसने बाबर को राजा बनाने की इच्छा व्यक्त की थी. बाबर का मुख्य सलाहकार और प्रधानमंत्री खलीफा भी यही बोलता था कि हुमायूँ को राजा ना बनाये जाए. यह व्यक्ति राजा बनने के योग्य नहीं है.

तो आज हम आपको बताने वाले हैं कि दिल्ली का शासक हुमायूँ इतिहास का एक कायर और असफल राजा था. हम आपको यहाँ जो भी बातें बताने वाले हैं वह सभी सबूत के आधार पर ही बताई जा रही है-

इतिहास की पुस्तक – मुस्लिम शासक था भारतीय जन-समाज पुस्तक, जिसके लेखक डा. सतीश चन्द्र मित्तल है, यह पुस्तक हुमायूँ का सही चरित्र पाठकों के सामने रखती है.

हुमायूँ की कायरता देखिये-

दिल्ली का शासक हुमायूँ अपने जीवनकाल में कुछ ही गिने-चुने युद्ध लड़ा था. सबसे बड़ी बात यह थी यह युद्ध भी छोटे-छोटे थे और उनमें भी सफलता नाम मात्र की मिली थी. मुख्य रूप से हुमायूँ के संघर्ष अफगानों, गुजरात के बादशाह बहादुरशाह और अपने ही कुछ रिश्तेदारों से यह संघर्ष हुए थे.

चौसा की लड़ाई (1538-39) में व् पुनः कन्नौज की लड़ाई में तो हुमायूँ की बहुत बुरी दुर्गति हुई थी. कुछ लेखक बताते हैं कि हुमायूँ सेना का नेतृत्व नहीं करता था. वह सेना में छुपकर रहता और अपनी कायरता को दिखाता. हुमायूँ की सेना का मनोबल यही देखकर टूट जाता था.

दिल्ली का शासक हुमायूँ आखिर व्यस्त कहाँ रहता था?

दिल्ली का शासक हुमायूँ

हुमायूँ युद्ध की जगह शराब और शबाब में व्यस्त रहता था, जो भी खजाना हुमायूँ के पास था वह उसे बस विलासिता में लूटा रहा था. यह व्यक्ति कई बार अपनी बहन और रिश्तेदारों के सामने भी यह बात रख चुका था कि वह अफीम खाने का आदि है. अफीम के बिना वह रह नहीं सकता है.

लोगों की भलाई के लिए क्या किया?

हुमायूँ ने असल में लोगों की भलाई के लिए भी कुछ ख़ास नहीं किया. जनता यह देखती थी कि हुमायूँ के महल में रोज पार्टियाँ हो रही हैं. महीने में कम से कम 10 बार शाही पार्टियाँ होती थी और जनता के लिए हुमायूँ के पास समय नहीं होता था.

तो कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि समकालीन इतिहासकारों ने हुमायूँ के चरित्र को काफी बढ़ा-चढ़कर पेश किया है.

दिल्ली का शासक हुमायूँ असल में ना तो अपने पिता की तरह एक योधा था और ना ही एक कुशल शासक था. युद्ध से डरने वाला जो शासक था उसका ही नाम हुमायूँ था. हुमायूँ द्वारा कोई भी जनहित का कार्य नहीं किया गया था. असल में हुमायूँ इतिहास का एक कायर योधा और असफल राजा था.

इस सच को आज ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुचाएं जाने की आवश्यकता है.

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