भारत

कैसी थी मुगलों से पहले की दिल्ली !

दिल्ली का इतिहास – देश की राजधानी दिल्ली राजनीतिक गतिविधयों से लेकर अपने दिलचस्प इतिहास के लिए मशहूर है ।

दिल्ली भारत का शायद वो एकलौता है जो पूरी तरह आधुनिक होने के बावजूद भी अपने इतिहास की डोर से जुड़ा हुआ है जिसकी झलक आज भी दिल्ली के लजीज खान -पान, ऐतिहासिक इमारतों में साफ नजर आती है । जब भी हम दिल्ली के इतिहास को याद करते है तो हमें से ज्यादातर लोगों को केवल मुगलकाल याद आता है । हालांकि मुगलकाल का दिल्ली से जुड़ाव होना भी लाजमी है क्योंकि 16वीं शताब्दी में बाबर ने भारत पर आक्रमण के बाद दिल्ली में मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी । इसके बाद दिल्ली पर हुमायूं , अकबर शाहजहां सहित ब्रिटिश काल तक मुगलों ने ही भारत पर राज किया ।

हालांकि यहां पर लोगों को ये जान लेना भी जरुरी है कि मुगल काल से पहले भी दिल्ली का इतिहास था, जो ख़ूबसूरत था और इसे बिल्कुल अलग था।  

दिल्ली का इतिहास –

मुगलों से पहले दिल्ली का इतिहास

महाभारत काल के दौरान दिल्ली को इंद्रप्रस्थ नाम से जाना जाता था । जहां पर पांडव रहा करते थे ।

लेकिन अब आप कहेंगे कि फिर इस जगह का नाम दिल्ली कैसे पड़ा दरअसल दिल्ली नाम दिल्लिका से आया है इस शहर को ये नाम तोमर राजाओं ने दिया था । जिन्होनें कई सालों तक दिल्ली पर राज किया । दिल्ली के सबसे प्रसिद्ध तोमर राजा अनंगपाल थे जिन्होनें दिल्ली पर कई सालों तक राज किया और इस शहर का आज के हरियाणा तक विस्तार किया । अनंगपाल जिस समय राजा थे उस समय दिल्ली की राजधानी अरावली पर्वतों के पास अनंगपुर नाम का गांव था । राजा अंनगपाल ने एक हिंदु राजा थे जिस वजह से उनके शासनकाल के दौरान दिल्ली में हिंदु सभ्यता का वर्चस्व था राजा अनंगपाल ने ही लालकोट का निर्माण कराया था जिसे दिल्ली का पहला लालकिला माना जाता है साथ ही चंद्रगुप्त की वीरता से प्रसन्न होकर अनंगपाल ने ही लौह स्तंभ को कुतुब मीनार के पास स्थापित कराया था ।

हालांकि उस समय वहां पर कुतुब मीनार नहीं हुआ करता था ।  

राजा अंनगपाल के बाद दिल्ली पर उनके नाति और अजमेर के राजा पृथवीराज चौहान ने राज किया था ।  

लेकिन 11वीं शताब्दी आने तक दिल्ली की समृद्धि को देखते हुए दिल्ली पर बाहरी आक्रमण बने लगे जिसके फलस्वरुप मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर अपनी सत्ता स्थापित की और मरने से पहले कुतबुद्दीन ऐबक को दिल्ली सौंप दी। इसके बाद दिल्ली पर बाहरी मुस्लिम शासकों का ही राज रहा । हालांकि मुगल शासन के दौरान बाबर के उत्तराधिकारी हुमायूं की मृत्यु के बाद कुछ समय के लिए दिल्ली पर फिर हिंदु राजाओं का राज हुआ था । दिल्ली पर उस समय हेमचंद्र विक्रामदित्य ने राज किया । लेकिन अकबर के गद्दी पर बैठने के बाद विक्रामदित्य और अकबर के बीच पानीपत की लड़ाई हुई जिसमें विक्रामदित्य हार गए । और इसके बाद दिल्ली हमेशा के लिए मुगलों की हो गई । मुगलों का शासन काल दिल्ली पर बहादुर शाह जफर के साथ साल 1857 में ब्रिटिशों के साथ हुए स्वतंत्रता संग्राम के बाद खत्म हुआ ।

मुगलों ने दिल्ली में कई इमारतें बनाई जो उनके शासन की गवाई देती है लेकिन कहीं ना कही बाहरी आक्रमण कारियों के कारण दिल्ली की असल सभ्यता कहीं दब गई । क्योंकि आक्रमणकारियों ने सबसे पहले दिल्ली की सभ्यता को तहस नहस किया । हालाकिं जो इतिहास में हुआ वो सही था या गलत आज सिर्फ एक इतिहास है । पर शायद हमें कहानी के एक पहले को हमेशा पढ़ने की बजाय बाकी पहलूओं को समझने की कोशिश भी करनी चाहिए ।  

ये है दिल्ली का इतिहास !

Preeti Rajput

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