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जानिये रिसर्च के जनक दामोदर धर्मानंद कोसांबी के किस्से

दामोदर धर्मानंद कोसांबी

भारत के मशहुर गणितज्ञ, इतिहासकार और राजनैतिक सलाहकार एवम् विशेषज्ञ रहे दामोदर धर्मानंद कोसांबी की पैदाइश 31 जुलाई सन् 1907 को गोवा के एक प्रसिद्ध स्थान कोसबेन में हुई थी…

उनके पिता का नाम धर्मानंद कोसांबी था। इनके पिता बौद्ध धर्म के प्रकंड विद्वान हुआ करते थे। उनके ज्ञाम के किस्से जगह जगह मशहूर थे। लेकिन ऐसा हरगिज नहीं था कि दामोदर को प्रसिद्धी अपने पिता के नाम से मिली थी, बल्कि दामोदर ने अपना नाम खुद बनाया और इसे लोगों के जहन में प्रसिद्ध बनाया था।

दामोदर धर्मानंद कोसांबी की शिक्षा

धर्मानंद कोसांबी अमेरिका के हारवर्ड विश्वविद्धयालय में बतौर अध्यापक काम करते थे।

इसलिए उनकी आगे की सारी शिक्षा उन्होंने अमेरिका में ही पूरी की। दामोदर धर्मानंद को इतिहास, गणित और विज्ञान में खासकर रूची थी। वह इन विषयों के हर पहलु पर गहन रिसर्च करते थे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वह भारत वापस आ गए। भारत आने के बाद कुछ वर्षों तक वह ‘काशी विश्व हिन्दू विश्र्वविद्यालय’ और अलीगढ़ मुस्लिम विश्र्वविद्यालय में बतौर अध्यापक कार्यरत रहे। इसके बाद उन्होंने बतौर गणित प्रोफेसर पूना के ‘फर्ग्यूसर कालेज में’ 16 साल तक काम किया। इस दौरन वह अन्य कई विषयों पर रिसर्च करते रहे।

दामोदर धर्मानंद कोसांबी

इतिहास संग कई ग्रंथों के रचयिता थे दामोदर धर्मानंद

दामोदर धर्मानंद ने सिर्फ हिंदी, गणित और विज्ञान में ही नही बल्कि भारतीय इतिहास और संस्कृत की भी कई किताबों की रचना की थी। उनकी इन रचनाओं में ‘मिथ एंड रियलिटी’, ‘स्टडीज इन द फार्मेशन ढफ इंडियन कल्चर’ और ‘द कल्चर एंड सिविलाइजेशन ऑफ एंशेंट इंडिया इन हिस्टोरिकल आउटलाइन’ प्रमुख थी।

दमोदर धर्मानंद के भाभा से थे मतभेद

दामोदर धर्मानंद और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रिय मित्र होमी जहाँगीर भाभा के बीच खासा मतभेद थे। दरअसल धर्मानंद को टी.आई.एफ.आर में रहते हुए भारत के संदर्भ में परमाणु ऊर्जा की तुलना में सौर ऊर्जा को श्रेष्ठ ठहराने के कई तर्क थे, लेकिन होमी उनके इस विचार से एकमत नहीं थे। जिस कराण दोनों के बीच मतभेद इतने बढ़ गए कि होमी भाभा ने दामोदर धर्मानंद को अपने संस्थान से हटा दिया।

दामोदर धर्मानंद कोसांबी

नालंदा और दामोदर धर्मानंद के बीच संबंध

इतिहास में खासा रूचि रखने वाले इतिहासकार दामोदर धर्मानंद का कहना था कि नालंदा एक अदभुद नाग स्थलों में से एक है। अपनी किताब में उन्होंने नालंदा पर रिसर्च के दौरान लिखा कि “कभी-कभी विशेष अवसरों पर भिक्षुओं से भोजन प्राप्त करने के लिए आदिम नाग दयालु सर्प का रूप धारण कर प्रकट होते है” उनका यह भी कहना था कि बौद्ध कथाओं में भी सर्पनागों का जिक्र किया गया है। धर्मानंद का मानना था कि “बुद्ध ने आदिवासी नागों को अपने धर्म में दिक्षित किया था, व विषैले सर्प को भी अधिकार में किया था, व मुचलिंद नामक दैवू नाग ने प्रकृति से उसकी रक्षा की थी”

दामोदर धर्मानंद कोसांबी

नालंदा के बौद्ध केन्द्र को लेकर दामोदर का यह भी कहना था कि बौद्ध केन्द्र के विकास नाग कबीले के लोगों के व्यापक धर्मांतरण के करण हुआ था। इसके अलावा भी दामोदर धर्मानंद ने ऐसे कई अद्धभुत राज व इतिहास के पन्नें लिखे थे जिनसे काफी लोग अंज्ञान थे, और कई बार तो दामोदर को अपने विचारों के अलग होने के चलते उनका दंड भी भुगतना पड़ा था।

दामोदर धर्मानंद कोसांबी – भारत के इस महान लेखक, विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, इतिहासकार, गणितज्ञ और रचयिता दामोदर धर्मानंद का अंत 29 जून सन् 1966 में हुआ।