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मासूमों को लिए कोर्ट पर वक़्त नहीं और अमीर घंटों में रिहा हो जाता है

विक्की (परिवर्तित नाम) विक्की से एक मुलाक़ात लगभग 6 महीने पहले हुई थी.

8 साल का विक्की पिछले 5 साल से जेल में बंद है. बाल सुधार घर में उसको भेजने से पहले कोर्ट ने इसकी उम्र पर कोई रहम नहीं किया और इस बच्चे पर चल रहे रेप के केस को भी आज तक निपटा नहीं पाया है.

इसी तरह से 12 साल के राजू पर भी रोबरी का केस उसके मालिक ने लगाकर दुकान से भगा दिया और राजू तबसे घर जाने की आस में दिन काट रहा है.

आप अगर कभी किसी बाल सुधार ग्रह जाते हैं तो आप पलभर में इस तरह की कहानियों से वाकिफ हो सकते हैं. आप बात कीजिये इन बच्चों से इनकी दर्द भरी दास्तान सुनकर आप रो देंगे.

हमारे सिस्टम और कोर्ट पर इन बच्चों के लिए कोई वक़्त नहीं है. एक तरफ जहाँ कुछ लोगों के लिए यही सिस्टम मजाक है, कुछ लोग घंटों में जेल से बरी हो जाते हैं और कुछ लोगों पर तो इस कोर्ट का कानून लागू ही नहीं होता है.

वहीँ इन गरीबों के केस की फाइल देखना किसी को अच्छा नहीं लगता है. इनके माँ-बाप गरीब हैं यही इनका कसूर है.

आज इन बच्चों में से बहुत से बच्चों ने तो जेल से छुटने की उम्मीद को खत्म कर दी है. 8 साल का बच्चा रेप कर सकता है, 12 साल का रोबरी, हम यह नहीं कह रहे हैं कि कोर्ट गलत कर रहा है, हु बोल रहे हैं कि जब एक अमीर का केस 1 घंटे में सुना जा सकता है तो गरीब मासूमों का केस 1 महीने में भी पूरा क्यों नहीं हो पा रहा है?

क्यों सालों से ये बच्चे जेल में हैं?

क्यों इनका बचपन खराब किया जा रहा है?

कल अगर एक मासूम बेह्गुनाह साबित होता है तो क्या कोर्ट उसका बचपन वापस ला सकती है?

क्या है बाल सुधार ग्रह?

केन्द्र सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी सहित किसी भी संस्थान द्वारा चलाए जा रहे सामाजिक संस्थान, जहां बच्चों को हिरासत में या उपचार के उद्देश्य से या सुधार व संरक्षण के लिए रखा गया हो, उसे बाल सुधार ग्रह कहा जाता है. जिन नाबालिक बच्चों को किसी कारण से जेल भेजा जाता है उसे यही रखा जाता है.

बच्चों को बीमार बना देता है वहां का वातावरण

इसी साल फरवरी में खबर आई थी उत्तर प्रदेश की मेरठ से 91 बाल कैदी फरार हो गए थे. गृह की ऊंची दीवार को चादरों से की रस्सी बनाकर वे भाग गये थे. ऐसे केस देश में होते ही रहते हैं.

इसके पीछे का मुख्य कारण वहां के हालात ही है. यहाँ रखा गया एक बच्चा थोड़े समय बाद मानसिक रूप से बीमार होने लगता है. यहाँ के वातावरण में बच्चा सही मायने में क्रिमिनल बनने लगता है. कई बार यहाँ इनका शोषण किया जाता है.

आंकड़ों पर नजर डालो

आंकड़े देखे तो, अपराध कर जेल आने वाले बच्चों की संख्या 1994 में 17203 सालाना थी किन्तु 2004 में यह संख्या 30994 हो गयी. चौकाने वाली बात यह है कि इन बच्चों में अनाथ बच्चों की संख्या मात्र 8 फीसदी रहती है. मतलब की अधिकतर बच्चों के माता-पिता है लेकिन गरीबी के कारण ये लोग वकील तक नहीं कर पाते हैं.

मुद्दा

आज मुद्दा यह है कि क्या देश में गरीबों के लिए कोई कानून नहीं है? क्या गरीब होना पाप होता है? आखिर कारण क्या हैं कि बच्चों के केस 8-8 साल तक चलते रहते हैं? एक सरकारी वकील इन बच्चों को बाहर लाने की कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाते हैं? अमीर आदमी तो जेल भी नहीं जाता और वह रिहा हो जाता है और ये मासूम, उनमें मभी कुछ ऐसे मासूम जिन्होनें कुछ किया ही नहीं, पुलिस बस इन्हें उठा लाती है, उनका क्या कसूर है?

जल्द ही हमारे कानून और न्याय सिस्टम को इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि इन मासूमों को बचाया जा सके, देश का संविधान सभी नागरिकों को बराबर अधिकार देता है जिसके तहत जल्द न्याय प्राप्त करना इन मासूमों का भी अधिकार है.

Chandra Kant S

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Chandra Kant S

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