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भारत का यह गाँव है एशिया का सबसे साफ-सुथरा गाँव जिसे कहा जाता है भगवान का बगीचा !

सबसे साफ-सुथरा गांव

हमारे देश की ज्यादातर आबादी आज भी छोटे-छोटे गांवों में बसती है लेकिन विकास के नाम पर देश के ज्यादातर गांवों की हालत आज भी बहुत खस्ता है.

अधिकांश गांवों में पानी, बिजली, सड़क, स्वच्छता और शौचालय जैसी कई मुलभूत सुविधाओं की कमी है. हालांकि देश के प्रधानमंत्री ने पूरे देश में स्वच्छता अभियान चलाया है ताकि देश के शहरों के साथ ही तमाम गांव भी स्वच्छता की ओर अपने कदम बढ़ा सकें.

लेकिन आज हम आपको भारत के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे सिर्फ हमारे देश का ही नहीं बल्कि पूरे एशिया का सबसे साफ-सुथरा गांव माना जाता है. इसके प्राकृतिक सौंदर्य और स्वच्छता को देखकर इस गांव को भगवान का बगीचा भी कहा जाता है.

मावल्यान्नॉग गांव है भगवान का बगीचा

खासी हिल्स डिस्ट्रिक्ट का मावल्यान्नॉग गांव मेघालय के शिलांग और भारत-बांग्लादेश बॉर्डर से करीब 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

मेघालय का मावल्यान्नॉग गांव पूरे एशिया का एकमात्र सबसे साफ-सुथरा गांव माना जाता है. इसलिए इसे भगवान का बगीचा भी कहा जाता है. साल 2014 की जनगणना के अनुसार इस गांव में 95 परिवार रहते हैं.

शिक्षा के मामले में भी अव्वल है यह गांव

साफ-सफाई के साथ यह गांव शिक्षा के मामले में भी अव्वल है. यहां की साक्षरता दर 100 फीसदी है यानी इस गांव में रहनेवाले सभी लोग पढ़े-लिखे हैं. इतना ही नहीं यहां रहनेवाले ज्यादातर लोग सिर्फ अंग्रेजी में ही बात करते हैं. हालांकि सुपारी की खेती ही इन लोगों की आजीविका का मुख्य साधन है.

पूरे गांव में लगे हैं बांस के डस्टबिन

यहां लोग अपने घर से निकलनेवाले कूड़े-कचरे को बांस से बने डस्टबिन में जमा करते हैं और उसे एक जगह इकट्ठा कर खेती के लिए खाद की तरह इस्तेमाल करते हैं.

इस गांव की खासियत यह है कि यहां के लोग साफ-सफाई के मामले में किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतते हैं इसलिए पूरे गांव में जगह-जगह पर कचरा डालने के लिए बांस से बने हुए डस्टबिन लगाए गए हैं.

गांववाले खुद करते हैं साफ-सफाई

मेघालय के इस गांव को साल 2003 में एशिया के सबसे साफ-सुथरे गांव के तौर पर चुना गया और साल 2005 में यह भारत का सबसे साफ-सुथरा गांव बना.

इस गांव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां की सारी साफ-सफाई कोई और नहीं बल्कि खुद गांववाले ही करते हैं. स्वच्छता के लिए यहां के लोग किसी तरह से प्रशासन पर निर्भर नहीं हैं.

महिला, पुरुष और बच्चों समेत किसी भी गांववाले को अगर कहीं गंदगी नजर आती है तो वो फौरन सफाई में लग जाते हैं. सफाई के प्रति इनकी जागरुकता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अगर सड़क पर चलते हुए उन्हें कोई कचरा नजर आता है तो वो वहीं रुककर पहले कचरे को डस्टबिन में डालते हैं फिर आगे बढ़ते हैं.

पर्यटकों को भी लुभाता है ये गांव

इस गांव के आसपास कई ऐसे खूबसूरत पर्यटन स्थल हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. यहां वाटरफॉल, पेड़ों की जड़ों से बने प्राकृतिक ब्रिज और बैलेंसिंग रॉक्स भी हैं.

इसके अलावा जो पर्यटकों को खासा पसंद आता है वो है 80 फीट ऊंची मचान पर बैठकर शिलांग की प्राकृतिक खूबसूरती को निहारना.

कुदरत का करिश्मा हैं ये प्राकृतिक पूल

इस गांव में एक छोर से दूसरे छोर तक जाने के लिए जिन पूलों का इस्तेमाल किया जाता है उसे किसी ने नहीं बनाया है बल्कि ये पूल प्राकृतिक रुप से बने हुए हैं.

पेड़ों की जड़ों से बने ये प्राकृतिक पूल समय के साथ और मजबूत होते जाते हैं. इन पूलों के बारे में कहा जाता है कि इस तरह के पूल पूरी दुनिया में सिर्फ मेघालय में ही देखने को मिलते हैं.

इस गांव के टी स्टॉल हैं कमाल के

इस गांव में आनेवाले पर्यटकों के लिए कई जगहों पर जलपान की सुविधा के लिए बिल्कुल ग्रामीण अंदाज में टी स्टॉल बनाए गए हैं. जहां पर्यटक चाय की चुस्की का आनंद उठा सकते हैं इसके अलावा यहां मौजूद रेस्टॉरेंट में लाजवाब खाने का स्वाद भी चख सकते हैं.

ऐसे पहुंचे एशिया के इस स्वच्छ गांव में

मावल्यान्नॉग गांव शिलांग से करीब 90 किलोमीटर और चेरापूंजी से करीब 92 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जहां आप सड़क के रास्ते पहुंच सकते हैं. अगर आप चाहें तो देश के किसी भी हिस्से से हवाई सफर करके शिलांग तक पहुंच सकते हैं.

ये है भारत का सबसे साफ-सुथरा गांव – हर गांव भगवान का बगीचा तो नहीं बन सकता लेकिन इस गांव से स्वच्छता का सबक लेते हुए भारत के हर गांव के लोग अगर साफ-सफाई की ओर अपना एक कदम बढ़ाते हैं तो वो दिन दूर नहीं जब भारत का हर गांव स्वच्छ गांवों की फेहरिस्त में शामिल हो जाएगा.