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यहाँ पर महिलाओं के ब्रैस्ट से बताई जाती है उनकी पवित्रता !

चर्च में सेक्स एजुकेशन

चर्च में सेक्स एजुकेशन – वैसे तो हमारे देश में सेक्स शब्द को किसी Taboo की तरह ही लिया जाता है.

भले ही इतिहास में हमारा देश कामसूत्र की धरती वाला रहा हो लेकिन आज भी यहाँ पर सेक्स शब्द को ना तो सार्वजनिक जगहों पर बोल सकते है और ना ही इसके बारे में किसी को बता सकते है, क्योंकि इसी शब्द से आपके सभ्य और असभ्य होने का पता चलता है.

आजकल हमने देखा है कि सरकारें सेक्स एजुकेशन की खूब वकालत करती है लेकिन ऐसा सुनने में नहीं आया है कि किसी स्कूल या कॉलेज में सेक्स एजुकेशन दिया जा रहा हो. लेकिन आज हम आपको केरल के एक ऐसे चर्च के बारे में बताने जा रहे है उस चर्च में सेक्स एजुकेशन पर ना सिर्फ खुलकर बात की जाती है बल्कि सेक्स को लेकर लोगों की जिज्ञासाओं और भ्रांतियो को शांत भी किया जाता है.

चर्च में सेक्स एजुकेशन

दरअसल सालों से केरल के इस चर्च में लोगों को सेक्स के बारे में खुलकर बताया जाता रहा है. चर्च में सेक्स एजुकेशन को बेहद पवित्र बताया जाता है, इसके साथ ही यहाँ पर स्तनों के आधार पर महिलाओं की पवित्रता के बारे में भी बताया जाता है. इस चर्च का नाम आलझुप्पा बिशप है, चर्च में सेक्स एजुकेशन के बारे में खुलकर बात की जाती है बल्कि इसके कई आध्यात्मिक फायदों के बारे में भी बताया जाता है. इस चर्च में हर महीने मुखरेखा नामक एक मासिक पत्रिका भी निकलती है जिसमे सेक्स से जुडी कई अच्छी बातें लिखी हुई होती है. इस पत्रिका के मुताबिक किसी भी व्यक्ति के शरीर की कामुकता कोई गलत बात नहीं होती है.

चर्च में सेक्स एजुकेशन

इस पत्रिका में हाल ही में एक लेख भी छपा है जिसमे सेक्स और आयुर्वेद के बारे में बात की गई है. इस लेख को लिखने वाले डॉक्टर संतोष थॉमस का कहना है कि “सेक्स शरीर और दिमाग के लिए एक पवित्र उत्सव की तरह होता है. बिना शारीरिक संबंधों के प्यार बिना पटाखों के त्यौहार जैसा ही रह जायेगा”. उनका मानना है कि अगर दो मन आपस में जुड़ना चाहते है तो फिर उनके शरीर को भी आपस में एक-दूसरे से जुड़ जाना चाहिए.

चर्च में सेक्स एजुकेशन

इतना ही नहीं इस लेख में एक आदर्श महिला के बारे में भी बताया गया है जिसमे वाग्भाता के शास्त्रीय आयुर्वेद लेख आष्टांग ह्रदयम कहता है कि स्तनों के आकार के आधार पर महिलाओं को चार वर्गों में बांटा जा सकता है. जिसमे पद्मिनी, चित्रिणी, संघिनी और हस्तिनी वर्ग आते है. महिलाओं के स्तनों के आकार पर इन चार वर्गों में उन्हें बांटा गया है जिसमे एक आदर्श महिला और उसकी पवित्रता के बारे में भी कई बातें बताई गई है.

हालाँकि भक्तिमार्ग पर चलने वालों का मानना है कि सेक्स आध्यात्मिक जीवन के लिए अच्छा नहीं होता है, उनका मानना है कि सेक्स सिर्फ प्रजजन के लिए ही होता है और सेक्स को सिर्फ प्रजजन तक ही अहमियत देना चाहिए.

चर्च में सेक्स एजुकेशन – लेकिन समय-समय पर कई लोगों द्वारा सेक्स के बारे में ऐसी बातें बताई गई है जिसमे सेक्स के न सिर्फ शारीरिक बल्कि कई मानसिक फायदें भी बताये गए है.

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जीवन शैली