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देश के भविष्य के साथ हो रहे खिलवाड़ से कैसे बचे

child-trafficking

जहा देख़ो वहा बलात्कार, खून, धोखा धड़ी, देशी विदेशी आतंकवाद, घोटाले, राजनीति के ख़बरे हम रोजाना देखते है.

एक समय था बच्चों की गुमशुदगी के खबरे देख कर लोग कुछ हद तक जागृत होते थे. लेकिन टीआरपी के जमाने में सभी को कुछ एक्सट्रा ह्यूमन ओरिएन्टेड चाहिए.

इसके चलते लोगो में जागरुकता कम हो रही है.

लोग अपने बच्चों को आया, परिचित, पलना घर चलने वालों के भरोसे बच्चों को सुरक्षित समझते है.

गाँव के बच्चों का जितना ट्रॉफिंकिंग होता है, उतना ही शहर के बच्चे असुरक्षित है.

बच्चों का ट्रैफिकिंग करके क्या किया जाता है?
कुछ दशक पहले बच्चों को अगवा करके उन्हें दूसरे राज़्यों में घरेलू काम करने के लिए बेचा जाता था. किन्तु बदलते जमाने के साथ ऐसे बच्चों की मांग अनगिनत कामो के लिए बढ़ती चली आई है. बच्चों को घरेलु कामो के लिए बेचना. घरो में नौकर बना कर रखना. 24/7 इन बच्चों से काम लेना. भीख मांगने के लिए इस्तेमाल करना.

अधिक भीख मिलने के लिए बच्चों के हात पैर तोड़कर उन्हें विकृत बनाया जता है. नवजात बच्चों को अफ़ीम खिलाई जाती है, ताकि वो ज्यादा शोरशराबा ना कर सके.  दिखने में भी वो दयनीय स्थिती में दिखे, जिससे लोगो की सहानुभति मिले और भीख का कारोबार बढ़ सके.

कई बड़ी पार्टियों में इन बच्चों के साथ यौन शोषण होता है, मानसिक विकृति इस हद तक बढ़ गई है कि वो मासूम बच्चो का यौन शोषण के बाद प्रताड़ना के रूप में सिगरेट से जलाना, जंजीरों में बांद कर रखते है.

अशलील विडियोज़ बनाने के लिए भी इन मासूमों का खूब इस्तेमाल हो रहा है.

देश भर में आपको ऐसे गुमशुदा हुए बच्चों की अनगिनत कहानिया सुनने को मिलेंगी.

 

कौन से बच्चे इसका अधिक शिकार होते है?
गरीब राज्यों से बच्चे अधिकतर बच्चों का ट्रैफिकिंग के शिकार होते है.

बेरोजगारी और भुखमरी पर अभी तक सरकार ने कोई ठोस उपाय नहीं लाये है, और लाया भी है तो मात्र पेपर फाईलो तक ही सिमट यह कार्य रह गया है. कुछ बच्चे खुद पैसे और शोहरत के झासें की चपेट में आते है. तो कई माँ बाप अपने बच्चों को भुखमरी से बचाने के लिए बेच देते है.
उनको यह पता नहीं होता की सच में उनके बच्चों का क्या होने वाला है.

शहरों में बच्चों को उठाना बेहद आसान है.

अपने परिसर में क्या गलत हो रहा है, यह देखने के लिए दौड़ती भागती दुनिया में किसी को वक़्त नहीं रहा अब.

बच्चों को अगवा करने वाले या शोषण करने वाले अधिक तर बच्चो के सगे सम्बन्धी या जानने वाले ही होते है.

 

सरकार की उपाय योजना
सरकार ने प्रत्येक शहर एवं राज्य मे बच्चों के लिए हेल्प लाइन नंबर शुरू किये है. मगर कुछ चलते है, तो कुछ बेकार है. जो चलते है उसका उपयोग लोग नहीं कर पा रहे. ख़ास करके नक्सल प्रभावित राज्ययों में शिक्षा की कमी की वजह से यह अमानवीय धंधा जोरो पर है.

पुलिस को यह चाइल्ड ट्रॉफिंकिंग आम बात लगती है.

वहा पर पुलिस कर्मियों को ऐसा लगता है की नौकरी और घूमने के चक्कर में यह बच्चे दूसरे शहरों में जाते है. योजनाये तो कई है मगर ऐसे जगह पर अधिक तर सिस्टम नहीं है.

फंड के अभाव के चलते आदिवाशी हॉस्टल भी अपराध के चपेट में है.

ऐसे हॉस्टल से माईनर लड़कियों को मजबूर करके सेक्स रैकेट में धकेल दिया जाता है.

 

ऐसी स्थिति में देश के भविष्य को कैसे बचाऐ?
पहले बात करते है शहर के बच्चों की.

व्यस्त दिनचर्या में बच्चों को पूरी तरह से किसी के पास ना सौंपे. अगर कोई परिजन भी हो तो भी एक सतर्कता रखे कि आपका बच्चा सही सलामत है. बच्चों के साथ बच्चा होकर उनके साथ बचपन से ही संवाद साधे. किसी बात पर डांटने से पहले उनकी बाते सुनले और दोनों तरफ के परिणाम सोचकर कदम उठाये. बच्चों को ढ़ील देकर उन पर नज़र रखे. इससे बचपन से ही वो जिमेदार बनेंगे और परिणामो पर विचार करेंगे.

किसी पर विश्वास दिखाइए किन्तु विश्वास ना करने की भी शिक्षा दे. बाहर अकेले होने पर दोस्तों और अंजानो से कैसे बर्ताव करे यह बताइये.
खाने पीने की चीज़े, सफ़र करते वक़्त कैसे सतर्क रहना चाहिए, यह बताइये. सीधे तरीके से नहीं मगर उनको उदाहरण देकर अलग अंदाज़ से बताइये. ताकि उनको यह सारी बाते बकवास और व्याख्यान ना लगे.

सब से महत्वपूर्ण बात सारी बाते उनके आयु और एक्टिविटीज़ देख कर थोड़ी थोड़ी बताइये. मुसीबत के समय क्या करना है इसका भी ज्ञान बेहद आवस्यक है. खुद की और दूसरे मुसीबत में फसे बच्चों को भी मदद करना सिखाइए.

अगर सब लोग इस तरह जागरूक होकर अपने अपने जीवन में आगे बढ़ेंगे तो पुलिस और कानून का सहारा बहुत कम लेना पड़ेगा.

वैसे बच्चे चाहे अपने हो या पराये वो घर एवं देश का भविस्य है.इन्हें संभालना हमारा दायित्व है, बच्चो के सुरक्षित भविष्य पर ही देश का सक्षम और बेहतर भविष्य बनेगा.

सरकार की जिम्मेदारी है की कायदों क़ानून को जमीन पर लाये और इस तरह हो रहे अपराध को जड़ से उखाडे. लेकिन इससे अधिक माता पिता की ज़िमेदारी है कि वो उनका समुचित खयाल रखे.

हमारा दायित्व है की सजग रहे, सतर्क रहे, जिससे एक स्वस्थ व् सुन्दर समाज के निर्माण में योगदान दे सके.