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चंद्रशेखर आजाद ने मजिस्ट्रेट को दिए थे ऐसे जवाब कि गोरा जज आग बबूला हो गया !

चंद्रशेखर आजाद

आपने आजादी की लड़ाई के दौरान चंद्रशेखर आजाद का नाम तो सुना ही होगा.

असल में यदि चंद्रशेखर आजाद नहीं होते तो गर्म दल काफी पहले ही खत्म हो गया होता और भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे नाम भी हमारे सामने नहीं आ सकते थे. इस व्यक्ति ने उस समय अंग्रेजों से जिस तरह से संघर्ष किया था, उसकी तुलना में चंद्रशेखर आजाद को उनका हक़ नहीं मिला है.

आज भी आजादी के बाद इनको असली क्रांतिकारी होने का तबका नहीं मिल पाया है. ऐसा लगता है कि दूसरे क्रांतिकारियों से चंद्रशेखर आजाद का कद काफी छोटा है. किन्तु ऐसा नहीं है, सच यह है कि अगर चंद्रशेखर आजाद नहीं होते तो दूसरे कई क्रांतिकारी जन्म ही नहीं ले सकते थे.

आज हम आपको चंद्रशेखर आजाद के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें बताने वाले हैं-

जब पहली बार गये थे आजाद जेल

चंद्रशेखर आजादचंद्रशेखर आजाद

अब देखिये ना, क्या कोई मात्र 12 साल का बच्चा यह सोच सकता है कि उनको भारत की आजादी के लिए लड़ना है?

लेकिन चंद्रशेखर आजाद ने ना सिर्फ यह सोचा बल्कि करके भी दिखाया क्योकि मात्र 12 साल की उम्र में आजाद काशी चले गये थे, आजादी की लड़ाई पूरी करने के लिए. इसी क्रम में बोला जाता है कि साल 1912 में एक आन्दोलन के दौरान चंद्रशेखर आजाद देखते हैं कि अंग्रेजी सैनिक हिंसा का उपयोग कर रहे हैं तो इन्होनें भी अंग्रेजी सैनिकों को पीटना शुरू कर दिया था. जब इनको पहली बार गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था, तब अदालत में पेशी के दौरान जज आजाद से पूछता है कि

जज- तुम्हारा नाम क्या है?
चंद्रशेखर- मेरा नाम आजाद है| (यह आवाज काफी कड़क थी.)

जज- तुम्हारे पिता का नाम क्या है?
चंद्रशेखर- स्वतंत्रता मेरे पिता का नाम है.

जज- (गुस्से में) तुम्हारा घर कहाँ है?
चंद्रशेखर- जेलखाना ही मेरा घर है.

यह सुन जज को गुस्सा आ जाता है और वह आजाद को 15 बेंत मारने की सजा देता है.

अदालत में आजाद को 15 बेंत मारे जाते हैं. किताबें बताती हैं कि हर बेंत पर आजाद जोर से भारत माता की जय बोलते थे. दर्द भले कितना ही हो रहा हो किन्तु आजाद हँसते ही रहे थे. इस तरह से यह आजाद का पहली बार जेल जाना था.

इसके बाद तो आजाद हमेशा से ही अंग्रेजों की नाक में दम भरते ही रहे थे. सन 1925 में अंग्रेजों की ट्रेन लूट ली गयी थी. अंग्रेजों पागलों की तरह से आजाद को खोज रहे थे. साथी पकड़े गये थे किन्तु आजाद हमेशा चकमा देने में कामयाब रहे. इसके बाद लाला जी की हत्या का बदला लिया गया था और भगत सिंह को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार किया गया था.

तो चीन जाना चाहते थे चंद्रशेखर आजाद

जब भगत सिंह को फांसी होने वाली थी तो आजाद को लगने लगा था कि अगर देश को आजाद कराना है तो देश के बाहर से मदद मिलनी चाहिए. उन दिनों चीन ब्रिटिश लोगों के खिलाफ था. चीन से सेना अगर अंग्रेजों पर हमला कर देती है तो अंग्रेजों को भारत से भागना पड़ेगा, यह प्लान आजाद बना रहे थे. अल्फर्ड पार्क में जो आखरी लड़ाई आजाद ने लड़ी थी, उससे पहले इसी पार्क में चीन जाने की योजना पर ही विचार किया जा रहा था. अचानक किसी अपने ने धोखा दिया और वहां पुलिस आ जाती है. आजाद अपने सभी साथियों को यहाँ से भगा देते हैं और खुद आखरी गोली, अंग्रेजों से लड़ते हुए अपने मार लेते हैं.

इस पूरी कहानी को जब आप किताबों में पढेंगे तो आप समझ जायेंगे कि चंद्रशेखर आजाद कितने महान क्रांतिकारी थे.

असल में ऐसा देश भक्त व्यक्ति तो आज तक भारत देश में जन्म नहीं ले पाया है. फिर भी ना जाने क्यों, आजादी के बाद भी चंद्रशेखर को उनका हक़ नहीं दिया गया है.

(इस लेख की प्रमाणिकता के लिए आप सरला भटनागर की पुस्तक क्रान्ति के कर्मवीर पढ़ सकते हैं)