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बौद्ध धर्म क्यों नहीं बढ़ पाया भारत में?

buddha

भारत शुरू से ही धर्म और संस्कृति का देश रहा हैं.

हिन्दू धर्म के अलावा यह और कई धर्म बने और आगे भी बढे. उन्ही  मे से एक धर्म था बौद्ध धर्म जिसकी स्थापना गौतम बुद्ध ने की थी. नेपाल के लुमिबिनी नामक स्थान में राजा शुध्दोधन और महारानी महामाया के पुत्र सिद्धार्थ आगे चल कर गौतम बुद्ध कहलायें.

कहते हैं कि बौद्ध धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म के भी पहले अस्तित्व में आ चूका था पर मतभेदों के चलते यह इतना बढ़ नही पाया जितना इस्लाम और ईसाई धर्म बढे. बौद्ध धम्र दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म हैं. इसके मानने वाले लोग ज्यादातर चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और भारत हैं. लेकिन भारत से निकला यह धर्म भारत से ज्यादा दुसरे देशों में अधिक प्रचलित हुआ.

अहिंसा को अपना मूल सिद्धांत मानने वाला यह धर्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व से शुरू हुआ था लेकिन गौतम बुद्ध के बाद यदि किसी ने इस धर्म के प्रचार में योगदान दिया तो वह थे मौर्य वंश के आखरी राजा सम्राट अशोक. अखंड भारत के राजा के रूप में इन्होने कई युद्ध जीते लेकिन कलिंग युद्ध के बाद इन्होने अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए गौतम बुद्ध के मार्ग पर चलना आरम्भ किया. सम्राट अशोक ने अपनी संतानों में से पुत्र महेंद्र और संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के भारत के बाहर कई और देशों में भी भेजा. जिसका परिणाम हुआ की बौद्ध धर्म तीसरा सबसे माना जाने वाला धर्म बना.

लेकिन भारत से निकले इस धर्म की जड़े भारत में ही कमज़ोर हो गयी, जिसके पीछे की वजह इस धर्म को मानने वाले अनुयायी ही बने.

जब तक गौतम बुद्ध थे तब तक यह कोई धर्म या सम्प्रदाय नहीं बना था, लेकिन उनके निर्वाण के बाद द्वितीय बौद्ध संगति में भिक्षुओं में आपसी मतभेद हो गया और तब बौद्ध धर्म दो भागों में अलग हो गया. इन दो भागों में से पहला भाग हिन् यान कहलाया और दूसरा भाग महायान कहा जाने लगा. बौद्ध धर्म के इस तरह दो भागों में बटने के बाद भी इसका विखंडन होना जारी रहा, जिससे महायान के बाद एक तीसरा भाग भी आया जो विज्र यान कहलाया. इसके बाद इस सम्प्रदाय के झेन, ताओ, शितो जैसे कई और सम्प्रदाय बन गए जो इनके अंतर्गत ही आये.

जहाँ बौद्ध धर्म अपने इन आपसी मतभेदों में उलझा हुआ था वहां अन्य समुदाय खुद के विस्तारवादी रवियें के चलते इस सम्प्रदाय से काफी आगे निकल चुके थे.जिसका खामियाज़ा बौद्ध धर्म को भुगतना पड़ा.

विडम्बना यह हैं कि जिस धर्म की शुरुआत ही भारत से हुए थी वह मतभेदों के चलते यहाँ बढ़ने के बजाये दुनिया के बाकि देशों में ज्यादा माना जाने लगा और अपने ही देश में इसके अनुयाई कम हो गए.

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