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इंग्लैंड में जब अंग्रेज संस्कृत सीख रहे थे तब भारत से संस्कृत खत्म हो रही थी !

British Conspiracy To Destroy Sanskrit

विश्व की संस्कृत इकलौती ऐसी भाषा थी जिसके वजूद पर कोई ऊँगली नहीं उठा सकता था.

हमारे वेद संस्कृत में हैं और हमारी ताकत भी संस्कृत ही थी किन्तु अंग्रेजों ने ऐसे प्रयास किये कि देश से संस्कृत का नामों निशान ही लगभग खत्म हो चुका है.

आज अगर कोई व्यक्ति संस्कृत बोलता है तो वह हीन समझा जाता है. आज संस्कृत को खत्मकर भारत की ताकत को ही खत्म कर दिया है. किन्तु अंग्रेजों ने भारत से तो संस्कृत को खत्म कर दिया था वहीँ दूसरी ओर खुद इंग्लैंड में संस्कृत सीखना और सिखाना दोनों प्रारंभ किये थे.

अंग्रेज समझ गये थे कि संस्कृत में वह दम है जिसके आधार पर संसार पर राज किया जा सकता है.

आज हम सिद्ध करेंगे कैसे सोच-समझ कर खत्म की गयी विश्व की एक महान भाषा संस्कृत को-

संस्कृत इतनी खराब थी तो खुद को पढ़ रहे थे अंग्रेजों

1810 में ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में पहली बार संस्कृत की शिक्षा प्रारंभ हुई थी. कर्नल जोसेफ बोउन जो उस समय भारत में रहे थे इन्होनें ऑक्सफ़ोर्ड में ‘संस्कृत संकाय’ की स्थापना के लिये अपनी समस्त सम्पति दान दी थी. न्यायालय में अपनी वसीयत को रजिस्टर्ड कराते हुए कर्नल बोउन लिखते हैं –

“मैं अपनी समस्त सम्पति ऑक्सफ़ोर्ड विश्व विद्यालय को दान देता हूँ. वे इसे विश्व विद्यालय या किसी कालेज में, जहाँ वे उचित समझे प्रयोग करें ताकि मेरे देश (इंग्लैंड ) वासियों को संस्कृत भाषा का समुचित ज्ञान प्राप्त हो सके , जो भारत के मूल निवासियों के धर्मग्रंथों को समझने और उनके ईसाईयत में धर्मांतरण में सहायक हो सकें…”

‘यह अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद है’

सन 1932 तक बोडन चेयर के लिये कोई सुयोग्य प्रतिनिधि नहीं मिला था| 1932 में एच.एच.विल्सन को बोडन चेयर पर अधिष्ठाता नियुक्त किया गया.  वह भी भारत में 1801 से 1832 तक मेडिकल अधिकारी के रूप में रहे थे| उसी दौरान इन्होनें संस्कृत भाषा सीखी थी| अधिष्ठाता बनने के बाद विल्सन ने एक पुस्तिका लिखी – “दि रिलीजन एंड फिलोसिफिकल सिस्टम्स ऑफ़ दी हिन्दुज ”. इस पुस्तिका को लिखने का उद्देश्य में इन्होनें लिखा –

“यह लेखमाला उन व्यक्तियों की सहायता के लिये लिखी गई हैं जो कि जों मयूर द्वारा स्थापित दो सौ पौंड के पुरस्कार के लिए प्रत्याशी हों और जो हिन्दू धर्म ग्रंथों का सर्वोतम प्रकार से खंडन कर सकें.“

इसाई धर्म को फैलाने के लिए अंग्रेजी

1960 में प्रो. विल्सन के निधन के बाद बोडन चेयर का अधिष्ठाता मौनियर विलियम्स बने.  इन्होनें संस्कृत-इंगलिश डिक्शनरी लिखी.  “ए संस्कृत इंगलिश डिक्शनरी ” की भूमिका में लिखा–

अर्थात् “जब हिन्दू धर्म के मजबूत किलों की दीवारों को घेरा जाएगा , उन पर सुरंगे बिछाई जाएंगी और अंत में ईसामसीह के सैनिकों द्वारा उन पर धाबा बोला जाएगा तो ईसाईयत की विजय अंतिम और पूरी तरह होगी.

तो यहाँ एक सरल सा सवाल कोई अंग्रेजों से पूछे कि संस्कृत को खत्म कर और अंग्रेजों को लाने से उनको क्या फायदा हुआ है?

क्या अंग्रेज इतने अच्छे थे कि वह अपनी भाषा और विचार हमें मुफ्त में दे रहे थे?

तो इसका जवाब नहीं है क्योकि अंग्रेजी के आने से हमें गुलाम बनाया गया है. यह जो ऊपर बातें कहीं गयी हैं उन्हें आप बहुत सी पुस्तकों में देख सकते हो. पुस्तक भारतीय वेद भाष्यों का अनुवाद नामक पुस्तक में आप इन सबूतों को देख सकते हैं.

तो अब हम बोल सकते हैं कि भारत से संस्कृत को खत्म करना अंग्रेजों की ही चाल थी ताकि हमारे बच्चे इंग्लिश स्कूल में पढ़े और वह पढ़े कि पश्चिम की हर चीज अच्छी है और हमारे संस्कार खोखले हैं.

आज हम ऐसा ही कुछ पढ़ भी रहे हैं.