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अंग्रेजों में इस योद्धा का था इतना खौफ की इसका नाम सुनकर थर-थर कांपती थी लाखों की सेना!

Raja Bakhtawar Singh

हमारे इतिहास में देश और भारत की रक्षा के लिए शहीद होने वालों की कोई कमी नहीं रही है.

इन लोगों के नाम इतने हैं कि कभी सोचों की एक जगह सभी के नाम जोड़ते हैं तो साल-दो साल तो मात्र रिसर्च करने में ही खत्म हो जाएगी.

पहले मुस्लिम शासकों से टक्कर लेने वालों की कमी नहीं थी तो बाद में जब अंग्रेज आये तो इस देश में अंग्रेजों को भी टक्कर देने वाले एक से एक योद्धा पैदा हुए हैं. यहाँ सबसे बड़ी बात यह थी कि सभी एक से एक थे और अलग खूबी के साथ पहचान कायम किये हुए थे.

ऐसा ही एक नाम है राजा बख्तावर सिंह का.

यह नाम इतिहास की बहुत की कम पुस्तकों में नजर आता है लेकिन कहते हैं कि इस अकेले व्यक्ति से ही अंग्रेजों की पूरी एक सेना डरती थी. वह सेना जिसमें कम से कम लाख सैनिक तो होते ही थे वह सभी इस योद्धा से इतना खौफ खाते थे कि वह डर से थर-थर कांपते थे.

बख्तावर सिंह की बहादुरी

यह बात सन 1856 की है. मध्य प्रदेश में तब एक धार जिला होता था. यहाँ के राजा का नाम बख्तावर सिंह था. सभी इस राज्य में अपने राजा से पूरी तरह खुश थे. लेकिन एक साथी की गद्द्दारी से राज्य इनके हाथ से निकल गया था और इनको पहले अपनी जान बचाकर भागना पड़ा था.

इसके बाद साल 1857 में जब अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की आग लगी थी तब इसी क्रांति में राजा बख्तावर सिंह ने भी अपने राज्य को वापस लेने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था.

बख्तावर सिंह ने 10 अक्तूबर, 1857 को भोपावर नामक जगह पर हमला बोल दिया.

इस बार राजगढ़ की सेना भी उनके साथ थी. तीन घंटे के संघर्ष के बाद सफलता एक बार फिर राजा बख्तावर सिंह को ही मिली. युद्ध सामग्री को कब्जे में कर उन्होंने सैन्य छावनी के सभी भवनों को ध्वस्त कर दिया.

अंग्रेजों की तोप का सामना राजा ने अपनी तलवार से किया था. यहाँ की लड़ाई कहते हैं कि इतनी भयंकर लड़ी गयी थी कि अंग्रेज सैनिक डरकर भागने पर मजबूर हो गये थे.

इसके बाद एक बार फिर से अंग्रेजों ने राजा की सेना पर हमला करने की योजना बनाई और अंग्रेज सेना यह बात सुनते ही डर रही थी.  लेकिन युद्ध हुआ और यहाँ पर राजा को उनके मित्र से ही धोखा मिला और वह गिरफ्तार कर लिए गये.

जब फांसी का समय आया

जब राजा बख्तावर सिंह को फांसी दी जा रही थी तब उन्होंने अनुरोध किया कि उनके दोस्तों से पहले उनको फांसी दे दी जाए. वह अपने दोस्तों से पहले मरना चाहते थे.

10 फरवरी, 1858 को इन्दौर के एमटीएच कम्पाउण्ड में देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले राजा बख्तावर सिंह को भी फांसी पर चढ़ा दिया गया.