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अकबर का खूनी इतिहास! इसको पढ़कर आपका खून खौल उठेगा ! अकबर एक मक्कार और जल्लाद शासक था

अकबर का खूनी इतिहास

अकबर को आप एक बहादुर और वीर योद्धा इसीलिए समझ सकते हैं क्योकि आपने आज तक कभी अकबर की सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की है.

किताबों में जो पढ़ा है आप उसी को अंतिम सच समझकर अपने रास्ते चलते बनते हैं. वैसे भी अगर आप अकबर का खूनी इतिहास पढेंगे, अकबर का सच जान लेंगे तो कौन-से बड़े अफसर बन जाओगे.

कुछ ऐसा ही तो हम सोचते हैं. तो अगर आप ऐसा सोचते हैं तो सोचते रहिये लेकिन हमने भी तय किया है कि हम असलियत को खोजकर लिखते रहेंगे.

इसी क्रम में आइये आज आपको असली अकबर से मिलाते हैं और बताते है अकबर का खूनी इतिहास –

अकबर का खूनी इतिहास अकबरनामा पढ़ा है क्या आपने?

अकबरनामा के अनुसार 3 मार्च 1575 को अकबर ने बंगाल विजय के दौरान इतने सैनिकों और नागरिकों की हत्या करवाई कि उससे कटे सिरों की आठ मीनारें बनायी गयी थीं. जब वहाँ के हारे हुए शासक दाउद खान ने मरते समय पानी माँगा तो उसे जूतों में भरकर पानी पीने के लिए दिया गया.

वाह, वाकई में अकबर इतना महान था. अब आप अकबरनामा पुस्तक को ऐसा वैसा मत मानिये. असल में अकबर नामा के अन्दर ही अकबर का सारा इतिहास लिखा हुआ है.

अकबर का खूनी इतिहास

अकबरनामे से एक और सबूत :-

अकबर की चित्तौड़ विजय के विषय में अबुल फजल ने लिखा था- ”अकबर के आदेशानुसार प्रथम 8000 राजपूत योद्धाओं को बंदी बना लिया गया था और बाद में उनका वध कर दिया गया था. उनके साथ-साथ विजय के बाद प्रात:काल से दोपहर तक अन्य 40000 किसानों का भी वध कर दिया गया था जिनमें 3000 बच्चे थे. (अकबरनामा, अबुल फजल, अनुवाद एच. बैबरिज)

तो इन दोनों तथ्यों के आधार पर देखें तो महान अकबर ने तो सीधे हिन्दुओं का ही क़त्ल करना शुरू कर दिया था.

पढ़िए औरतों का कितना सम्मान करता था अकबर :-

सन् 1561 में आमेर के राजा भारमल और उनके 3 राजकुमारों को यातना दे कर उनकी पुत्री को साम्बर से अपहरण कर अपने हरम में आने को मज़बूर किया था. औरतों का झूठा सम्मान करने वाले अकबर ने सिर्फ अपनी हवस मिटाने के लिए न जाने कितनी मुस्लिम औरतों की भी अस्मत लूटी थी. इसमें मुस्लिम नारी चाँद बीबी का नाम भी है.

सम्राट अकबर ने 1564 में गोंडवाना की महारानी दुर्गावती पर अकारण आक्रमण किया था. रानी दुर्गावती समस्त मध्यकालीन भारतीय इतिहास की सबसे महान योधा थीं. दो दिन के भयंकर विश्व युद्ध के बाद रानी ने खुद को सिर्फ और सिर्फ इसलिए ही मारा था क्योकि वह अपवित्र नहीं होना चाहती थी.

(इतिहास की पुस्तक- भारत का इतिहास पेज नम्बर 22)

अकबर का खूनी इतिहास

अकबर, इन लोगों से डरता था : –

असल में जवाहरलाल नेहरू ने भारत एक खोज के अन्दर अकबर को महान राजा बोला और उसके बाद लाल झंडे वाले वामपंथियों ने जब इतिहास की पुस्तकों के साथ खेल किया तो उसमें अकबर की असलियत को हटा दिया गया था. अकबर ने हिन्दुओं पर कितना अत्याचार किया है यह बात भारत के लोग आज जानते ही नहीं है.

असल में आप अगर सच्चाई से वाकिफ हो जायें तो अकबर का इतिहास से नाम मिटा दें.

अब आप यह और जान लीजिये कि अकबर ने चित्तौड़ पर दो हमले किये हैं.

पहला हमला 1576 में हुआ था और यहाँ अकबर का मुकाबला उदय सिंह से हुआ था. दूसरी बार 1576 में अकबर महाराणा प्रताप से लड़ा था. दोनों ही युद्ध हिन्दुओं के लिए वीरता का स्तंभ हैं लेकिन लाल झंडे वालों ने इतिहास ही बदल दिया है. महाराणा प्रताप से अकबर कुछ भी नहीं जीत पाया था, बस अकबर एक हाथी जीता था.

रणथम्भौर की सन्धि में बूंदी के सरदार को शाही हरम में औरतें भेजने की “रीति” से मुक्ति देने की बात लिखी गई थी. जिससे बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि अकबर ने युद्ध में हारे हुए हिन्दू सरदारों के परिवार की सर्वाधिक सुन्दर महिला को मांग लेने की एक परिपाटी बना रखी थीं और केवल बूंदी ही इस क्रूर रीति से बच पाया था.

इसी तरह से अकबर हिन्दू सैनिकों (अपनी सेना के) को आगे की तरफ रखता था था ताकि काफिर लोग पहले मरें. और तो और ऐसा भी होता था कि जब दोनों सेना लड़ रही होती थीं तो अकबर के बड़े सैनिक आँख बंदकर लोगों को मारते थे. ऐसा इसलिए था कि कोई भी मरे लेकिन हिन्दू ही मरेगा.

अकबर की आखिरी बहादुरी : –

”हल्दी घाटी में जब युद्ध चल रहा था और अकबर की सेना से जुड़े राजपूत और राणा प्रताप की सेना के राजपूत जब परस्पर युद्धरत थे और उनमें कौन किस ओर है, भेद कर पाना असम्भव हो रहा था, तब मैनें शाही फौज के अपने सेना नायक से पूछा कि वह किस पर गोली चलाये ताकि शत्रु ही मरे.

तब कमाण्डर आसफ खाँ ने उत्तर दिया कि यह जरूरी नहीं कि गोली किसको लगती है क्योंकि दोनों ओर से युद्ध करने वाले काफिर हैं, गोली जिसे भी लगेगी काफिर ही मरेगा, जिससे लाभ इस्लाम को ही होगा.”

(मुन्तखान-उत-तवारीख : अब्दुल कादिर बदाउनी)

ये था अकबर का खूनी इतिहास – अब आप ही बताओ कि क्या अब भी आप अकबर को इतना ही महान बोलेंगे.

बेशक पत्रकारिता का अर्थ कड़वा लिखना नहीं है किन्तु सच को सामने लाना भी पत्रकारिता का ही कर्म है और हम सबूतों के आधार पर सच आपको बताते रहेंगे.

अकबर का खूनी इतिहास पढ़कर अब कभी अकबर को महान बोलने की गलती आप कभी ना करें.