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भारत के इस मंदिर के आगे चाँद पर पहुंचने वाले वैज्ञानिक भी मान गए हार !

भगवान जगन्नाथ मंदिर

भगवान जगन्नाथ मंदिर – चंद्र पर पहुंचने वाले वैज्ञानिक आज तक किसी अंधविश्वास के आगे नहीं झुके हैं लेकिन भारत के एक मंदिर ने उन्हें अपने आगे घुठने टेकने पर मजबूर कर दिया.

आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं वह दुनिया का एक अनोखा अजूबा है जिसके पीछे छुपे रहस्य और दिव्य शक्तियों के आगे आज सारी दुनिया सर झुकाए खडी है.

जी हाँ दोस्तो और यह और कोई मंदिर नहीं बल्कि भगवान जगन्नाथ मंदिर –  भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा का मंदिर है.

भगवान जगन्नाथ मंदिर

इन सभी देवी देवताओं की मूर्तियां एक रत्न मंडित पाषाण चबूतरे पर गर्भ गृह में स्थापित हैं. यह विश्व का सबसे बड़ा, भव्य और ऊंचा मंदिर कहलाता है. चार लाख वर्गफूट में फैला और करीब 214 फुट ऊंचे मंदिर का शिखर आसानी से नहीं देखा जा सकता. यह मंदिर जितना विशाल हैउतना ही आधुनिक विज्ञान की समझ से परे है. इस मंदिर के बारे में एक हैरान करने वाली बात सामने आई है जिसके मुताबिक मंदिर के शिखर पर लहराती ध्वजा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराती है. मंदिर वक्र रेखीय आकार का है.

वक्र जिस शिखर पर स्थित है वहाँ पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र मंडित है. इसे नीलचक्र भी कहते हैं, जो अष्टधातुओ से निर्मित है तथा इसे देवप्रतिमा की तरह अति पावन और पवित्र माना जाता है. आज तक मंदिर के गुंबद के आसपास कभी कोई पक्षी उड़ता नहीं देखा गया. पक्षी शिखर के पास भी उड़ते नजर नहीं आते. सिंह द्वार से मंदिर परिसर में प्रवेश करने पर सागर की लहरों की आवाज नहीं सुनाई देती, जबकि बाहर निकलते ही समुद्र की लहराई जोर-जोर से सुनाई देती हैं.

भगवान जगन्नाथ मंदिर

मंदिर की रसोई में प्रसाद तैयार करने के लिए सात बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकडियों पर ही पकाया जाता है. इस प्रक्रिया एन शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है. यानी सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है. यहाँ पांच सौ रसोइए प्रसाद बनाते हैं.

मंदिर के रसोई घर में इतना खाना बनाया जाता है कि उत्सव के दिनों में बीस लाख व्यक्ति तक भोजन कर सके. कहते हैं कि प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए बनाया गया हो, तो भी लाखो के लिए कम नहीं पड़ता, न ही व्यर्थ जाता है. यहाँ जगन्नाथ जी के साथ के मंदिरो में भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी हैं. तीनों की मूर्तिया काष्ठ की बनी हुई हैं. बारहवें वर्ष में एक बार प्रतिमा नई जरूर बनाई जाती हैं, लेकिन इनकार आकार और रूप वही रहता है. कहा जाता है कि मूर्तियो की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं.

भगवान जगन्नाथ मंदिर की मान्यता विश्व भर में फैली हुई है और यहाँ इनके दर्शन के लिए लोग विदेश तक से आते हैं लेकिन जो सबसे खास बात है वो ये है की इस मंदिर के चमत्कारों के आगे विज्ञान भी सर झुकाए इनके चरणों में विराजमान हो चुका है. आज तक कोई ये नहीं बता पाया कि आखिर इस मंदिर के ये चमत्कार हो कैसे रहे हैं या इनके पीछे क्या वजह है.