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हिंदुस्तान अभी भी गाँव ही है! नहीं यक़ीन तो देख लो!

हिंदुस्तान विकासशील देशों की श्रेणी में आता है और जल्द ही अपने आप को विकसित घोषित किये जाने की होड़ में लग जाएगा|

इस विचार में कोई खराबी नहीं है लेकिन विकसित देशों के गाँव और शहरों में ज़मीन आसमान का अंतर होता है|

हमारे यहाँ तो ऐसा लगता है जैसे पूरा हिंदुस्तान ही गाँव है!

आपको बात बुरी लगी हो तो माफ़ कीजियेगा पर ज़रा सोचिये कि क्या सिर्फ ऊँची-ऊँची इमारतें भर बना देने से शहर बस जाया करते हैं? क्या सिर्फ उसे ही शहर कहते हैं जिसकी जनसँख्या सैकड़ों में नहीं बल्कि लाखों-करोड़ों में हो? ऐसे ही कई सवाल हैं जो सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि आखिर हम थे कहाँ और आये कहाँ हैं?

कोई भी देश या शहर या गाँव सिर्फ़ ईंठ-पत्थर की इमारतों से नहीं जाना जाता| उसका अस्तित्व होता है वहाँ रहने वाले लोगों से, उनके विचारों से, उनकी जीवन जीने की शैली से| अगर इस मापदंड से देखा जाए तो हमारा देश गाँव से भी पिछड़ा हुआ शायद आदिवासी इलाका ही माना जाएगा!

उदहारण देके समझाते हैं आपको|

दिल्ली को ही लीजिये| रिख्शे वाले, दूध वाले, सब्ज़ी वाले, और आपकी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने वाले ज़्यादातर लोग दिल्ली के नहीं हैं! ये सब आये हैं दिल्ली के बाहर से छोटे-छोटे गाँव से अपनी जीविका कमाने| कोई बस चलता है तो कोई कचरा उठता है| यानि एक तरीके से देखें तो शहर को चलाने वाले यह सब गाँव के ही लोग हैं जो शहर में रहते हुए भी अपनी सोच, अपने मूल्यों, अपनी जड़ों से अलग नहीं हुए हैं| यकीन नहीं है तो कभी इन लोगों से आराम से बैठ कर बात कर के देख लीजिये और आपको पता चल जाएगा कि कैसे यह सभी लोग सिर्फ़ रोज़ी-रोटी के लिए एक समझौते की ज़िन्दगी जी रहे हैं| वरना दिलो-दिमाग़ से तो अभी भी यह गाँव से ही हैं|

गाँव कोई बुरी चीज़ नहीं है लेकिन वहाँ की पिछड़ी सोच, पुराने ढंग के रीति-रिवाज़, और समय के साथ न बदल पाने की हिम्मत ही गाँव में तरक्की को रोके हुए है!

शहरों में मध्य-वर्गीय जनसमुदाय भी कम नहीं है लेकिन समाज के उस हिस्से में भी ऐसे बहुत से लोग मिल जायेंगे जो इस बात की पुष्टि करेंगे की गाँव छोड़ शहर में रहने के बावजूद सोच को बदल पाना नामुमकिन है!

इसी की वजह है कि आये दिन जब हम चोरी, बलात्कार, हिंसा की खबरें पढ़ते हैं तो पता चलता है कि ज़्यादातर आरोपी किसी गाँव से ही आये थे जीविका कमाने लेकिन असफ़ल होने के बाद अपराध का आसान तरीका अपना लिया! इसका ये मतलब नहीं की सभी गाँव वाले अपराधी हैं पर सिर्फ़ इतना कि शहर अभी गाँव से बेहतर नहीं हुआ, बल्कि एक बड़ा गाँव बन चुका है!

अगर लोगों की बात न कर के शहर के बुनियादी ढाँचे के बात करें तो शायद जल्दी सहमत हो जायेंगे आप| अपने आस-पास की सड़कों को देख लीजिये, सड़क पर यहाँ वहाँ बिखरे कचरे के पहाड़ों को नाप लीजिये, गलियों में खुले-आम पाये जाने वाले कुत्तों-गायों के झुण्ड को देख लीजिये और फिर कहिये कि आप एक विकासशील देश के उभरते हुए शहर में रहते हैं!

कह सकेंगे?

चलिए मिल जुल के शहरों को शहर जैसा बनाएँ|

सोच बदलें और हमारे बाकी देशवासियों की सोच में भी पॉजिटिव बदलाव लायें!

ऐसे ही नहीं बन जाया करते विकसित देश!

आओ ज़रा हाथ बँटायें!

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