अभियान

अब भिक्षा मजबूरी नहीं धंधा बन गया है

एक समय था जब लोग मजबूरी में भीख मांगते थे।

भीख मांगते समय उनकी भाषा जहां मार्मिक होती थी तो वहीं उनकी आंखों में लाचारी और शर्म का भाव होता था।

लोग मजबूरी में भिक्षा मांगने जाते थे तो निगाह शर्म से नीचे करके केवल उतनी ही भिक्षा मांगते थे जितने में उनका गुजारा हो जाये।

लेकिन आज के इस समय में भिक्षा एक व्यवसाय बन गया है।

लोग मजबूरी में नहीं फायदे के लिये भिक्षा मांग रहे हैं। हद तो तब होती है जब भिक्षा मांगने वाले लोग शर्म से निगाह नीचे करने के बजाए अकड़ के साथ जोर जबरदस्ती करके पैसे मांगते हैं।

इतना ही नहीं, कई बार तो भिखारी भिक्षा मांगते समय ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं जिनको सुनने के बाद गुस्सा तक आ जाता है। कई भिखारी तो भिक्षा नहीं देने पर गाली गलौच पर भी आते हैं। हालात इतने तक खराब है कि आजकल भिखारी भीख मांगते हुए खुद जलालत महसूस करने के बजाए देने वालों को ही जलील कर देते हैं।

भिखारी इसके लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, उनमें ये आपने अक्सर सुने होंगे।

जिसे मालिक ने दिया है वही देगा। जो दाता है और देने वाला है वह तो बुलाकर देता है। जो खुद नहीं खा सकते वह भला किसी को क्या खिलायेंगे आदि आदि शब्दों के जरिए ये लोगों को परेशान करते हैं।

आज वह सभी लोग, जो रोज सड़कों पर चलते हैं, अच्छी तरह से जानते हैं कि भीख मांगना आज एक पेशा बन गया है। कानून होने के बावजूद भी भीख मांगने पर रोक नहीं लग रही है।

इसलिए यंगिस्थान इस बार यह प्रण लेकर आया है कि समाज से भीख जैसी बीमारी को अब खत्म करके ही दिखाया जाये। भारत कोई भिखारियों का देश नहीं है बल्कि भारत तो स्वाभिमानी लोगों देश है, ऐसी भारत की छवि हम सभी को विश्व के सामने पेश करनी है। यंगिस्थान चाहता है कि भिखारी मुक्त भारत का निर्माण करने में समाज का हर व्यक्ति हमारा साथ दे क्योकि जन सहयोग के बाद ही भारत भिखारी मुक्त देश बन सकता है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक एक आम भिखारी रोज 1000 रुपैय तो कमा ही लेता है और त्यौहार के दिनों में वह 2000 तक कमा लेता है। इसमें से फिर हिस्सा बंटता है और क्षेत्र के बड़े-बड़े लोगों तक उनका हिस्सा पंहुचा दिया जाता है। ये आंकड़े दर्शाते है कि भिक्षा एक व्यवसाय ban गया है।

यहीं नहीं भिखारियों में एक और प्रवृति देखने को मिलती है। वह है ये जरूरत के हिसाब से अपने हुलिया और धर्म तक बदल लेते हैं। जहां हिन्दू आबादी है वहां ये हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर तथा मुस्लिम आबादी में खुदा के नाम पर भिक्षा मांगते हैं।

भीख के धंधे में लिप्त इन लोगों के इलाके और समय तक बंटे होते हैं।

ये लोग गल्ली मोहल्लों में महिलाओं और बच्चों को भेजकर मीख मंगवाते हैं। इसके लिए ये दो-दो या तीन-तीन की टुकड़ी में मुहल्लों में उनको उस समय भिक्षा मांगने के लिए भेजते हैं जब अधिकांश पुरुष अपने काम पर चले जाते हैं। ताकि चिकनी चुपड़ी बातें करके महिलाओं को अपने छोटे बच्चे और अपने परिवार में पति आदि की बीमारी का बहाना बनाकर उन्हें इमोशनल करके उनसे पैसा ऐंठ सके।

भिखारियों के लिए काम करने वाले लोगों ने कई बार प्रयास किया किया लेकिन ये भीख मांगने का धंधा छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं है। देखा गया है कि जब जब इन भिखारियों को पुनर्वास के लिए ले जाकर कहीं बसाया गया तो, उनमें से अधिकतर भाग जाते हैं और वापस आकर उसी भीख मांगने के कार्य में लग जाते हैं।

ये सब बताता है कि आजकल लोगों के लिए भीख मांगना मजबूरी नहीं बल्कि भिक्षा एक व्यवसाय बन चुका है।

वह भी मुनाफे का, जिसमें कोई इनवेस्टमेंट नहीं है।

यही वजह है कि आज इस काम को संगठित गिरोह बनाकर अंजाम दिया जा रहा है। इसके पीछे माफिया और एक पूरा तंत्र काम करता है, जो कई बार तो जबरन बच्चों का अपहरण कर उनसे भीख मंगवाते हैं।

ऐसे में अब आपको तय करना है कि भिक्षा एक व्यवसाय को बंद करवाना है. भगवान के नाम पर भीख मांगने वाले लोगों को भिक्षा देकर कहीं आप भिक्षावृति को बढ़ावा तो नहीं दे रहे हैं। क्योंकि जब तक इन्हें पैसे, खाने का सामान आदि आसानी से मिलता रहेगा तब तक ये मेहनत करने के बारे में नहीं सोचेंगे।

अब समय आ गया है कि हम आस्था और लाचारी के नाम पर इनको भीख देने की बजाय इन जरूरतमंदों के पुनर्वास केंद्र स्थापित कर अन्य तरीकों से मदद करेंऔर भिक्षा एक व्यवसाय को बंद करवाए।

यंगिस्थान चाहता है कि सभी लोग जो चाहते हैं कि भारत भिखारी मुक्त होना चाहिए, वह हमारे साथ इस अभियान से जुड़े ताकि भारत को जल्द से जल्द भिखारी मुक्त देश बना दिया जाये।

Vivek Tyagi

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