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इस मुंडेश्वरी मंदिर में बिना जीव हत्या के दी जाती है बलि!

बिना जीव हत्या के दी जाती है बलि

भारत में देवी पूजा में बलि प्रथा आम बात है.

बलि में पशु को पूजा करके उसका सर धड से काटकर अलग दिया जाता है. यह सामान्य रूप से बलि प्रथा में होता है.

लेकिन हम आज आपको एक ऐसी बलि प्रथा के बारे में बताएँगे जो बलि की  विचित्र और अनोखी प्रथा है.

यह प्रथा बिहार के मुंडेश्वरी मंदिर  की है, जो बिहार के सबसे प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है. यह मंदिर बिहार के कैमूर ज़िले के भगवानपुर अंचल में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊँचाई पर स्थित है.

यह मंदिर भारत की सुंदर मंदिरों में से एक है. मंदिर का वास्तुशिल्प अनूठा है. प्राचीन तांत्रिक यंत्र, श्री यंत्र के समान मंदिर का बाहरी आवरण है. इसमें 44 कोण हैं, जैसे आदिगुरु शंकराचार्य ने सौन्दर्य-लहरी में जिस श्री यंत्र का वर्णन किया है.

मुंडेश्वरी मंदिर के चार द्वार से इसकी समानता है. मंदिर परिसर में चारो ओर बिखरे पत्थर व मूर्तियां लाल पत्थर, काला पत्थर व बालुकाश्म की हैं.कला कृतियां मथुरा शैली में हैं. मां की मूर्ति का केश विन्यास गांधार शैली की है जबकि मंदिर पर नागर शैली का प्रभाव है.

यह मंदिर प्राचीनतम शक्तिपीठों में  से एक है.  यहां मां मुंडेश्वरी के विभिन्न रूपों में पूजा की जाती है. पौराणिक व धार्मिक प्रधानता वाले इस मंदिर के मूल देवता हजारों वर्ष पूर्व नारायण अथवा विष्णु थे.

यहाँ के लोग कहते है कि चंड-मुंड के नाश के लिए जब देवी प्रकट  हुई थीं, तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गए थे और यहीं पर माता ने उसका वध किया था.

अतः यह मुंडेश्वरी माता के नाम से स्थानीय लोगों में जानी जाती हैं.

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है यहाँ की पशुबलि प्रथा है. जो  प्राचीन और पारंपरिक है.

यहाँ बकरे की बलि चढ़ाई जाती है लेकिन काट कर नहीं बल्कि  मंत्र से बकरे को बेहोश किया जाता है.

एक आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि मन्नत पूरी होने पर लोग मनौती वाले बकरे को लेकर मां के दरबार में पहुंचते हैं. माता रक्त की बलि नहीं लेतीं इसलिए सात्विक बलि चढ़ाई जाती है. जब बकरे को माता की मूर्ति के सामने लाया जाता है. पुजारी चावल के दाने को मूर्ति को स्पर्श कराकर बकरे पर फेंकते है. बकरा उसी क्षण अचेत या बेहोश  हो जाता है और थोड़ी देर के बाद जब चावल के दाने फेंकने की प्रक्रिया फिर से होती है तब बकरा उठ खड़ा होता है. जैसे ही बकरा उठ खड़ा होता है उसे मुक्त कर दिया जाता है.

यह प्रचीन मंदिर पुरातात्विक धरोहर के रूप में स्थापित होने के साथ तीर्थ और पर्यटन स्थल भी है.

अगर आप इस अद्भूत बलि प्रथा को देखना चाहते हैं तो एक बार इस मंदिर में जरुर जाएँ.