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बैसाखी – देश और धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोविन्दसिंह ने उठाई थी तलवार – जन्म हुआ था खालसा का

बैसाखी सिख धर्म के अनुयायिओं का सबसे बड़ा पर्व है.

पंजाब और हरियाणा में इस पर्व को विशेष रूप से मनाया जाता है.

बैसाखी सिखों का नया साल होता है. ये फसलों का त्यौंहार है. फसल काटने के बाद नए मौसम की शुरुआत उत्सव मनाकर की जाती है.

इन सब के अलावा बैसाखी के दिन का बहुत बड़ा ऐतिहासिक महत्व भी है.

इसी दिन सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने खालसा की स्थापना की थी. जब औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर की सरेआम हत्या कर दी थी तो उसके बाद उनके पुत्र गोविन्द सिंह को गुरु की गद्दी मिली.

गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब के अत्याचारों और जबरन धरम परिवर्तन करवाने के खिलाफ आवाज़ उठाई थी. लेकिन उस समय सिक्ख धर्म एक शांतिप्रिय धर्म था और युद्ध और हथियारों के मामले में पीछे ही था.

गुरु तेगबहादुर की नृशंस हत्या के बाद 30 मार्च 1699 के दिन गुरु गोविन्द सिंह ने आनंदपुर के पास केशगढ़ साहिब में बैसाखी के दिन एक विशाल सभा बुलाई. हजारों की संख्या में सिख गुरु गोविन्दसिंह का आशीर्वाद लेने आये.

लेकिन जब गुरु अपने तम्बू से बाहर आये तो उनके हाथ में एक तलवार थी और चेहरे पर अद्भुत तेज.  उन्होंने आये हुए लोगों के सामने एक बहुत ही जोशीला भाषण दिया और उस भाषण के अंत में उन्होंने कहा कि कोई भी महान कार्य करने के लिए महान बलिदान की ज़रूरत होती है. जब तक त्याग और बलिदान नहीं करेंगे तब तक अत्याचारी इसी तरह दमन करते रहेंगे.

ऐसा कहकर गुरु गोविन्दसिंह ने पूछा कि कौन अपना बलिदान धर्म और देश रक्षा के लिए देने को तैयार है? पहली दो आवाजों में कोई भी आगे नहीं आया लेकिन तीसरी आवाज़ में एक युवा आगे बाधा और बोला कि वो तैयार है बलिदान के लिए.

गुरु गोविन्द सिंह उस युवा को अंदर ले गए और जब बाहर आये तो उनके हाथ में खून सनी तलवार थी.  उसके बाद ये प्रक्रिया चार बार दोहराई और चार अन्य युवा भी इसी तरह तम्बू के अंदर गए और जब गुरु बाहर आये तो उनके हाथ में खून सनी तलवार थी. लोगों को लगा कि गुरु ने उन पाँचों को मार दिया है.

गुरु गोविन्दसिंह लोगों के चेहरे देख कर मुस्कुराए और एक बार फिर से अपने तम्बू में गए और इस बार उनके साथ वो पांचों सिख भी थे.

उन पाँचों ने अब सिर पर भगवा पगड़ी और शरीर पर भी केसरिया कपडे पहने थे और उनके भी हाथों में गुरु गोविन्द सिंह की तरह तलवार थी.

गुरु के इन पांच शिष्यों को पंज प्यारे का नाम मिला और इसी के साथ जन्म हुआ खालसा का.

खालसा पंथ की सबसे खास बात ये थी कि किसी भी धर्म, जाति का व्यक्ति खालसा बन सकता है. खालसा शब्द खालिस शब्द से बना है. खालिस का अर्थ है शुद्ध. मतलब एक सच्चा खालसा सबसे शुद्ध होता है उसमे बेईमानी, कायरता, घृणा जैसी कोई मिलावट नहीं होती है.

गुरु गोविन्दसिंह के पंज प्यारों की सबसे खास बात ये थी कि इनमें सभी तरह के लोग थे सवर्ण भी और दलित भी लेकिन उनमें कोई भेदभाव नहीं किया गया. सभी को गुरु ने सिंह अर्थात शेर की उपाधि दी.

इसी दिन सभी सिक्खों ने अपने नाम के आगे सिंह लगाया. गुरु गोविन्द राय से गुरु गोविन्द सिंह बन गए.

इस तरह वैसाखी के दिन से खालसा पंथ की शुरुआत हुई. खालसा पंथ के उद्भव के बाद से ही मुगलों को मुश्किलें होनी शुरू हो गयी क्योंकि खालसा न सिर्फ बहादुर था अपितु वो हथियार चलाने में भी माहिर था.

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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Yogesh Pareek

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