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लाठी नहीं बंदूकों से डरकर भागे हैं भारत से अंग्रेज! आजाद हिन्द फ़ौज ने कराया था भारत को आजाद

आजाद हिन्द फ़ौज

अंग्रेज एक बात अच्छी तरह से जानते थे कि महात्मा गाँधी आजादी के लिए कोई भी हिंसक कदम नहीं उठाने वाले हैं.

वहीं गाँधी जी को तो अंग्रेजों से कोई समस्या भी नहीं हो रही थी. 1947 से पहले गांधी जी ने जो आन्दोलन किये थे, उनका कोई बड़ा असर अंग्रेजों पर हुआ भी नहीं था.

किन्तु फिर अचानक से ही गांधी जी आजादी के हीरो बन जाते हैं और अंग्रेज जाते-जाते शर्त रखते हैं कि एक तो विभाजन होगा और दूसरा कि सुभाष चंद्र बोस मिलते हैं तो उनको इंग्लैंड को सौपना होगा.

तब आखिर ऐसा क्या था कि सुभाषचंद्र बोस से अंग्रेज इतना जल रहे थे और अपना गुस्सा सरेआम जाहिर भी कर रहे थे.

असल में अंग्रेजों की नाक में सबसे ज्यादा दम भरने वाले व्यक्ति का यही नाम है. हकीकत यह है कि अगर सुभाषचंद्र बोस नहीं होते तो देश को आजादी नहीं मिल सकती थी.

आइये थोड़ा विस्तार से समझ लीजिये

सन 1933 से 1936 तक नेताजी यूरोप में रहे थे. तब अगर आप इतिहास पढ़ते हैं तो पायेंगे कि यूरोप में यह दौर हिटलर के नाजीवाद और मुसोलिनी के फासीवाद का चल रहा था. नाजीवाद और फासीवाद का निशाना इंग्लैंड था. जिसने पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर एक तरफा समझौते थोपे थे. वे उसका बदला इंग्लैंड से लेना चाहते थे. अब देखिये कि नेताजी मदद लेने दुश्मन के दुश्मन के पास गये थे. क्योकि दुश्मन का दुश्मन, हमारा दोस्त होता है. नेता जी मानते थे कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए भारत को सेना की आवश्यकता जरुर पड़ेगी.

सन 1943 में सुभाष जी जर्मनी से जापान पहुंचे थे.

अभी जर्मनी ने भारत की मदद के लिए हाँ कर दी थी. इस बात से अंग्रेजों की हवा खराब हो चुकी थी. जापान से नेताजी सिंगापुर पहुँचते हैं यहाँ पर जो होता है वह तो अंग्रेजों की जड़े ही हिला देता है. नेताजी जी आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान अपने हाथों में ले लेते हैं. अब देश के अन्दर संघर्ष शुरू हो चुका था.

अंग्रेज समझने लगे थे कि एक तरफ हमको विश्वयुद्ध लड़ना है और दूसरी तरफ भारत से भी लड़ना पड़ेगा.

1947 में ही अंग्रेजों ने भारत क्यों छोड़ा

देश के अंदर महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट का भी गठन किया गया था. इसकी कप्तान लक्ष्मी सहगल बनी थीं. अपने आगामी लेख में हम रानी झांसी रेजिमेंट का उल्लेख करेंगे.

सन 1947 में ही भारत को क्यों आजाद किया था?

जब यह सवाल एक अंग्रेज अधिकारी से किया गया था तो क्लेमेंट ने जवाब दिया था कि जब भारत की सेना ने विद्रोह कर दिया था तो हमें भारत छोड़ना पड़ा था. तो यह भारतीय सेना कौन-सी थी? यह आजाद हिन्द फ़ौज ही थी. आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिकों को गिरफ्तार किया जा रहा था लेकिन सभी अंग्रेज समझ गये थे कि लबे वक़्त तक आजाद हिन्द फ़ौज के सामने टिकना और स्थिति को संभालना मुश्किल है.

तो ऐसा नहीं है कि गांधी जी उस समय शांत बैठे थे लेकिन वह समझ गये थे कि अब देश को आजादी मिलने वाली है और नेताजी जो कर रहे हैं सही कर रहे हैं. इसलिए गांधी जी ने नेताजी का मार्ग रोकने की कोशिश नहीं की थी.

वैसे इस थ्योरी पर आपको काफी शक होंगे तो ऐसे में आप सबसे पहले तो अनुज धर की सुभाषचंद्र बोस के ऊपर लिखी सभी पुस्तकें पढ़ लीजिये. तब उसके बाद क्लेमेंट के लेख पढ़ लीजिये. अनुज धर ने सुभाषचंद्र बोस के ऊपर लिखी पुस्तक “व्हाट हैपेंड टू नेताजी ?”  में हिन्द फ़ौज का सफरनामा लिखा है.

इस तरह से अचानक से ही सन 47 में भारत को आजादी दे दी जाती है लेकिन हम आजाद हिन्द फ़ौज के असली नायकों को आज तक उनका सही अधिकार भी नहीं दे पाए हैं. देश का यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है?

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