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अर्जुन ने आखिर क्यों नहीं की थी उर्वशी की कामवासना शांत?

Arjun Refused Sex With Urvashi

महाभारत में एक कथा आती है जब अर्जुन ने उर्वशी की कामवासना शांत करने से मना का दिया था.

इस कथा को हम पढ़ तो लेते हैं किन्तु इससे सीखने का कोई भी प्रयास नहीं करते हैं. अर्जुन की इस कहानी के पीछे बहुत बड़ी वजह जुड़ी हुई है जो आज हमको नरक के पाप से बचा सकती है.

आइये पहले वह कहानी पढ़ते हैं  

चित्रसेन अर्जुन को संगीत और नृत्य की शिक्षा दे रहे थे, वहाँ पर इन्द्र की अप्सरा उर्वशी आई और अर्जुन पर मोहित हो गई. अवसर पाकर उर्वशी ने अर्जुन से कहा, “हे अर्जुन! आपको देखकर मेरी काम-वासना जागृत हो गई है, अतः आप कृपया मेरे साथ विहार करके मेरी काम-वासना को शांत करें.”

उर्वशी के वचन सुनकर अर्जुन बोले, “हे देवि! हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था. अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं. देवि! मैं आपको प्रणाम करता हूँ.”

अर्जुन की बातों से उर्वशी के मन में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और उसने अर्जुन से कहा, “तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं, अतः मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम एक वर्ष तक पुंसत्वहीन रहोगे.” इतना कहकर उर्वशी वहाँ से चली गई.
 
तो आखिर क्यों अर्जुन ने संबंध बनाने से मना किया था

इस बात के पीछे का पहला तर्क तो खुद अर्जुन ने ही दिया था कि आपसे हमारे पूर्वजों ने विवाह करके वंश का गौरव बढ़ाया था इसलिए आप माता के सामान हैं. और शास्त्र कहता है कि शारीरिक संबंध बनाते समय इंसान को रिश्तों का ध्यान देना चाहिए. गरुण पुराण में इस तरह के व्यक्ति के लिए सजा का उल्लेख है.

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि शास्त्रों में पर स्त्री से संबंध बनाने की मनाही की गयी है. एक स्त्री महिला जिससे अपना कोई रिश्ता नहीं है या वह हमारी पत्नी नहीं है तो उस महिला से संभोग की मनाही की गयी है.

तीसरी मुख्य बात अर्जुन ने उर्वशी से कही थी कि में यहाँ विद्या ग्रहण करने आया हूँ. अर्थात मैं विद्यार्थी हूँ और एक विद्यार्थी को सम्भोग से दूर रहने की शिक्षा हमारे शास्त्र देते हैं.

लेकिन आज हम इन तीनों ही महत्वपूर्ण बातों को इस कहानी से नहीं सीखते हैं.

असल में हमारे वेद और ग्रंथ ही हमें जीवन का सही आचरण सिखा सकते हैं किन्तु हम उनसे कुछ भी अच्छा ग्रहण करने को तैयार नहीं हैं.